हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। वट सावित्री का व्रत उपवास जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है। वट सावित्री पर विवाहित स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा करती है।
धार्मिक मान्यतानुसार वटवृक्ष की छांव में देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था, इसी दिन से वट वृक्ष की पूजा का विधान है। ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी बताती हैं कि 6 जून 2024 दिन गुरुवार को वट सावित्री का उपवास रखा जाएगा।
देहि सौभाग्य आरोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
पुत्रान देहि सौभाग्यम देहि सर्व कामांश्च देहि मे।
रुपम देहि जयम देहि यशो देहि द्विषो जहि।
साथ ही शनि जयंती ( भानु पुत्र, देवों के न्यायाधीश, कर्मफल दाता भगवान शनि का जन्मोत्सव) होने से वट सावित्री पर्व और भी विशेष रहेगा।
वट वृक्ष को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। बरगद के वृक्ष के तने में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास है इस वृक्ष में कई सारी शाखाएं नीचे की ओर रहती है, इन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है इसलिए धार्मिक मान्यतानुसार इस वृक्ष की पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है संतति प्राप्ति हेतु वट वृक्ष की पूजा करना लाभकारी माना गया है।
इस दिन अपने पति की दीर्घायु की कामना एवं सुखद वैवाहिक जीवन की कामना हेतु सभी विवाहित स्त्रियां वट सावित्री का उपवास रखती रखती हैं।
इस वर्ष वट सावित्री पर्व पर कुछ विशेष योग बनने जा रहे हैं गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, महालक्ष्मी योग, धृति योग, चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र अपनी उच्च राशि में बैठकर शुभ फल प्रदान करेंगे तथा शनिदेव अपनी स्वराशि कुंभ में विराजमान होकर सभी पर कृपा बरसाएंगे।
ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी बताती हैं कि इस वर्ष दांपत्य जीवन के कारक ग्रह शुक्र देव अस्त होने के कारण नव विवाहित स्त्रियां प्रथम बार उपवास प्रारंभ नहीं करेंगी।
पूजा मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ 5 जून 2024 सायं काल 7:07 से 06 जून 2024 सायं काल 6:09 तक।
वट सावित्री पूजा हेतु शुभ समय गुरुवार ब्रह्म मुहूर्त के साथ ही प्रारंभ हो जाएगा। परंतु वट सावित्री पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ रहेगा। अभिजीत मुहूर्त रहेगा प्रातः 11:52 से अपराहन 12:47 तक।
वट सावित्री पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी बताती हैं कि प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर संपूर्ण घर एवं पूजा स्थल को स्वच्छ करें। स्नानादि के बाद उपवास का संकल्प लें। सोलह श्रृंगार करें। सूर्योदय के उपरांत सूर्य देव को जल अर्पित करें। पूजा स्थल पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करें। बरगद के पेड़ पर सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें।
बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, रोली,कुमकुम,लाल फूल, फल और पंच मेवा,पंच मिठाई, पान सुपारी चढ़ाएं। माता सावित्री को सोलह श्रृंगार अर्पित करें, घी के दीपक से आरती करें।
बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें। वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चने लेकर इस व्रत की कथा सुनें। कथा सुनने के उपरांत आचार्य/पुरोहित जी को अन्न, वस्त्र व माता सावित्री को अर्पित किया हुआ श्रंगार व भेंट इत्यादि दान करें।
ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी कहती हैं कि माता सावित्री की कहानी हमें दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति और ईश्वर पर अटूट आस्था बनाए रखना व विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य न खोने की प्रेरणा देती है।
जिन जातकों की कुंडली में शनि की महादशा शनि की साढ़ेसाती एवं शनि की ढय्या का प्रभाव है उन सभी को शनि जयंती पर विशेष उपाय करें। शनि मंदिर में लोहे का चार मुखी दीप प्रज्वलित करें।
काली वस्तुओं का दान करें। हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें। काले कुत्ते को उड़द की दाल से बना हुआ भोजन कराएं। पितरों के निमित्त ब्राह्मण को अन्न वस्त्र दान करें।
वट सावित्री व्रत से जुड़ी अपनी जिज्ञासा को शांत करने और ज्योतिष संबंधी अन्य जानकारी के लिए आप ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी से 8395806256 पर संपर्क कर सकते हैं।