नैनीताल, प्रेस 15 न्यूज। खाली दिमाग शैतान का घर यूं ही नहीं कहते। आज के वक्त में भले ही कुछ युवा पढ़ लिखकर पैसा कमाने के लायक हो गए हों लेकिन दिमाग से वो पैदल ही रहते हैं।
आप कहेंगे आखिर ऐसा हम क्यों कह रहे हैं। दरअसल नैनीताल के होटल में जो करतूत दो युवाओं और एक युवती ने की, उसने आज के उन चंद कमाऊ युवाओं के दिमाग पर प्रश्नचिन्ह लगाया है जिनके दिमाग में फिजूल के अलावा कुछ नहीं भरा रहता।
नैनीताल स्थित एक होटल में रूकने आए दिल्ली और गाजियाबाद के दो युवक और एक युवती ने चैक आउट करने से पहले सफेद चादर को लपेट कर हुबहू डेड बॉडी बनाई और रफूचक्कर हो गए। लेकिन उनकी ये चालाकी ज्यादा समय तक नहीं चली।
दरअसल, 15 जून के दिन दो युवक और एक युवती नैनीताल के एक होटल में ठहरे थे। जब चेक आउट की बारी आई तो तीनों के दिमाग में शरारत सूझी। शरारत भी ऐसी कि जिससे रूह कांप जाए।
तीनों ने चैक आउट करने से पहले सफेद चादर को लपेट कर हुबहू डेड बॉडी बनाई और रही सही कसर चादर में सोस डालकर पूरी कर दी। और ये सब करके मुक्तेश्वर की वादियों में घूमने निकल पड़े। सोचा था होटल में लाश मिलने से हड़कंप मचेगा लेकिन कुछ ही घंटों में इन तीनों की लाइफ में ही भूचाल आ गया।
कुछ देर बाद जब सफाई कर्मचारी रूम में आए तो बैड में सफेद चादर में लिपटी डेड बाॅडी देखकर उनके होश उड़ गए। आनन फानन में होटल स्टाफ ने पुलिस को सूचित किया।
सूचना पर पहुंचीं पुलिस टीम ने जब पड़ताल की तो पाया कि बैड पर सफेद चादर में सॉस लगा कर, तकिया लपेटकर डैड बाॅडी दिखाने का प्रयास किया गया था। तीनों युवाओं ने नकली डेड बॉडी बनाकर पुलिस को गुमराह किया और आपातकालीन सेवाओं में बाधा उत्पन्न की।
जिसके बाद मल्लीताल पुलिस ने होटल मालिक से पूछताछ की तो पता चला कि उस कमरे में दो युवक और एक युवती रूके थे। सीसीटीवी जांच में तीनों को रूम से भागते हुए देखा गया।
सर्विलांस की मदद से तीनों की लोकेशन मुक्तेश्वर में मिली। कुछ देर बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को मुक्तेश्वर की वादियों का लुफ्त उठाते हुए धर दबोचा। तीनों से उनके इस दुस्साहसिक कृत्य के लिए माफी मंगवाई। और धारा- 81 पुलिस अधिनियम के तहत नगद चालान भरवाया।
पुलिस ने पर्यटकों और आम जनता से अपील है कि वे ऐसी अनुचित और गैर जिम्मेदाराना हरकतों से दूर रहें। इस प्रकार के कार्य न केवल कानूनी रूप से दंडनीय हैं, बल्कि इससे वास्तविक आपातकालीन सेवाओं में भी बाधा उत्पन्न होती है, जिससे अन्य जरूरतमंद लोगों की जान को खतरा हो सकता है।
उम्मीद है कि उत्तराखंड की शांत वादियों को अशांत करने के इरादे से आने वाले दिल्ली और गाजियाबाद के ये आजाद परिंदे दोबारा ऐसी गलती भूलकर भी नहीं करेंगें।