संजय पाठक, प्रेस15 न्यूज। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तराखंड की जनता 19 अप्रैल को मतदान करेगी और चार जून को ये पता चल जाएगा कि जनता ने किसके सिर जीत का सहरा बांधा है।
यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो अब लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है। ऐसे में जो नेता चुनाव के मैदान में हैं उनकी धड़कनें बढ़ना भी लाजिमी है।
लेकिन हैरानी कि बात यह है कि उससे भी अधिक बुरा हाल इस वक्त उत्तराखंड कांग्रेस के उन नेताओं का है जिनकी न कोई विचारधारा है और न ही कोई राजनीतिक ईमान…जो पाला बदलने में या यूं कहें रंग बदलने में गिरगिट को भी पीछे छोड़ दें।
उत्तराखंड की राजनीति की थाली में बैगन की तरह लोटने वाले इन नेताओं की फेहरिस्त यूं तो बड़ी लंबी है जिन्हें आप भली भांति जानते भी होंगे। ये भी सच है कई बार जनता कन्फ्यूज भी हो जाती है कि फलां नेता आजकल किस पार्टी में है, ये तो कभी कांग्रेस में था क्या आजकल भाजपा में है!
उत्तराखंड के लोगों ने देखा है कि पिछले 10 सालों में ही खुद को कट्टर कांग्रेसी कहने वाले कई नेता भाजपा का पट्टा पहने नजर आए।
उगते सूरज को सब प्रणाम करते हैं लेकिन ये बात कम से कम नेताओं पर तो लागू नहीं होती। वो इसलिए जब देश और राज्य में विपक्ष की नहीं रहेगा तो सरकार के जनविरोधी फैसलों को कैसे पलटा जायेगा। क्योंकि संसद और विधानसभा में बैठकर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ नेताओं के पास ही है।
वैसे पिछले कुछ सालों में बतौर विपक्ष कांग्रेस ने उत्तराखंड में मित्र विपक्ष की ही भूमिका निभाई है। फिर चाहे वो यूकेएसएसएससी घोटाला हो, अंकिता भंडारी हत्याकांड हो या फिर मूल निवास भू कानून का मामला, या फिर हल्द्वानी अतिक्रमण कांड में जिला प्रशासन और नगर निगम की आधी अधूरी तैयारियों के बीच हुई कार्रवाई के बाद हुआ बवाल ही क्यों न हो, कांग्रेस के नेताओं ने हल्द्वानी, देहरादून में महज एक पुतला फूंक कर इतिश्री कर दी।
उत्तराखंड के लोगों के लिए न्याय की इस लड़ाई को कांग्रेस ने बीच मंझधार में छोड़कर भाजपा के जनविरोधी फैसलों को उत्तराखंड में ताकत दी। यही वजह है आम जनता का विश्वास कांग्रेस पाने में पिछड़ गई।
ऐसे में सोचिए कैसे आम जनता कांग्रेस से जुड़ेगी? जब कांग्रेस के बड़े नेता अपने निजी हित साधने के लिए खामोश रह सकते हैं और सरकार पर लोकतांत्रिक ढंग से हमला करना भी जरूरी नहीं समझते, तो फिर काहे जनता आप पर भरोसा करे साहब… यही वजह है कि कांग्रेस के चतुर नेता इस खतरे को भांप चुके हैं और भाजपा की गोद में बैठने को लालायित हो रहे हैं।
2014 के बाद से जिस तरह से भाजपा केंद्र में काबिज हुई है, उसके बाद लगातार दो पारियों के बाद मानो अब हर गैर भाजपाई को अपना भविष्य अंधकार में जाता नजर आ रहा है।
कुछ बिन पैदे के लोटे नेता तो ऐसे भी हैं जो भाजपा में डुबकी लगाकर वापस कांग्रेस में मुंह उठाकर चले आए। ना ना ना…लौट के बुद्धू घर को आए वाली कहावत भी इन दलबदलू नेताओं पर फिट नहीं बैठती।
क्योंकि जान लीजिए ये नेता बिना राजनीतिक स्वार्थ के कहीं नहीं टिकते। ऐसे नेता न तो भाजपा के होते हैं और न हीं कांग्रेस के …ये सिर्फ और सिर्फ अपने खुद के हित साधने के लिए वर्तमान पार्टी में टीके रहते हैं।
अब देखिए ना दलबदलुओं की बात करते करते असल खबर पर बात ही नहीं हुई। पहले वो जान लीजिए… दरअसल रविवार को बदरीनाथ विधायक राजेंद्र भंडारी ने प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा को अपना त्यागपत्र सौंपते हुए दिल्ली में भाजपा ज्वाइन की है।
इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और टिहरी से पूर्व विधायक धन सिंह नेगी ने भी इस्तीफा दे दिया है। 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज धन सिंह नेगी ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था।
2022 में धन सिंह नेगी ने टिहरी विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। धन सिंह भी किसी भी वक्त भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
इससे पहले शुक्रवार को उत्तराखंड कांग्रेस नेता एवं पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण और मालचंद ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था।
शनिवार को पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति गुसाईं ने भी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में दोनों नेताओं यानी विजयपाल सजवाण और मालचंद को पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई दी।
कांग्रेस नेता अनुकृति गुसाईं ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है। माना जा रहा है जल्द ही अनुकृति गुसाईं भी भाजपा में शामिल हो जाएंगी।
जिन्हें नहीं पता है उन्हें बता दें कि पिछले दिनों ही अनुकृति के ससुर जी यानी पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के पीछे देश की संवैधानिक संस्था ईडी पड़ी हुई थी। जमकर खबरें भी छपी थी। अब ईडी क्यों पीछे पड़ी थी और अखबारों और चैनलों में खबरें क्यों चल रही थी, ये तो आप जानते ही हैं।
एक नौकरशाह के साथ मिलकर सैकड़ों हरे भरे पेड़ ठिकाने लगाने के मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी इन्हें खूब खरी खरी सुनाई थी। उन्हीं पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
कुछ लोग तो ये भी कह रहे हैं कि अनुकृति का कांग्रेस से ये इस्तीफा यूं हीं नहीं है। ससुर जी यानी हरक सिंह रावत पर ईडी सीबीआई के हमलों से सबक लिया गया एक बुद्धिमानी भरा कदम है। जो कहीं न कहीं हरक सिंह रावत के काम ही आएगा।
अब सोचिए जो नेता पिछले दिनों तक भर भर के बीजेपी को गरियाते थे, अब भाजपा की जय जयकार करेंगे। ऐसे में जनता को भी इन नेताओं से सीख लेने की जरूरत है।
कम से कम अपने परिचितों, दोस्तों और जानने वालों से भाजपा कांग्रेस के नाम पर बैर न करें। जिन पार्टी और नेताओं की वजह से आप आपस में एक दूसरे से उलझते हैं, जब उनका ही कोई दीन ईमान नहीं तो आप क्यों अपने रिश्तों को खराब और खट्टा करते हैं।
याद रखिए ये नेता अभी जहां टिके हैं और जिस पार्टी की महिमा गाते फिर रहे हैं, ये तब तक ही है, जब तक इनके सपने इस पार्टी में पूरे हो रहे हैं। जिस दिन लगा कि अब पार्टी काम की नहीं तो दूसरे पट्टे और झंडे को थाम लेंगे।
उत्तराखंड कांग्रेस का हाल ही देखिए… कभी कांग्रेस की नाव में सवार होकर मलाई खाने वाले अब कांग्रेस को डूबता जहाज समझकर भाजपा की नाव में सवार हो रहे हैं। अब कांग्रेस डूबती नाव है या नहीं ये आप खुद तय कीजिए।
बहरहाल, जिस समय पार्टी को अपने नेताओं की सबसे ज्यादा जरूरत है, उसी वक्त कांग्रेस से जुड़े तमाम नेता पार्टी को बीच राह में छोड़कर जा रहे हैं। बुरे वक्त में साया भी साथ छोड़ देता है, यह बात इन दिनों उत्तराखंड कांग्रेस के कट्टर, समर्पित और जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच आम है।
जनता को भी अब समझ जाना चाहिए जो नेता एक पार्टी के न हुए वो क्या खाक आपके होंगे। इसलिए जब 19 अप्रैल को आप ईवीएम का बटन दबाएं तो विवेकशील होने का प्रमाण जरूर दें क्योंकि इसलिए ही आप चार पांव वाले जानवर से अलग हैं।