मित्रता, सेवा और सुरक्षा का दम भरने वाली उत्तराखंड पुलिस में अभी और कितने राजेंद्र सिंह डांगी हैं??

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। मित्रता, सेवा और सुरक्षा…ये तीन शब्द ऐसे हैं जिन्हें सुनकर ही किसी परेशान पीड़ित को हौसला मिल जाता है। इन तीन शब्दों को उत्तराखंड की पुलिस ने अपने लोगो की शान बनाया है।

यानी उत्तराखंड पुलिस ये कहती तो है कि वह मित्रता, सेवा और सुरक्षा की राह पर अपनी ड्यूटी करती है लेकिन इस दावे की जमीनी हकीकत बेहद डरावनी और घिनौनी है।

रूद्रपुर में पुलिस की वर्दी की गर्मी में पीड़ित युवती से अश्लीलता की हदें पार करने वाला पंतनगर थाने के प्रभारी निरीक्षक राजेंद्र सिंह डांगी के बेनकाब होने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर उत्तराखंड पुलिस में अभी ऐसे कितने डांगी छुपे बैठे हैं जो वर्दी की आड़ में रोजाना पीड़ितों का शोषण बेखौफ कर रहे हैं।

एक जिम्मेदार पद पर रहकर इस प्रकार की हरकत घोर अनुशासनहीनता, लापरवाही और ताकत के दुरुपयोग का नमूना है।

युवती से अश्लील बातचीत का ऑडियो वायरल होने के मामले में पंतनगर थाने का प्रभारी निरीक्षक राजेंद्र सिंह डांगी नप गया। मीडिया में किरकिरी हुई तो मामले की शिकायत डीजीपी अभिनव कुमार तक पहुंची जिसके बाद एसएसपी ने एएसपी की आंतरिक तथ्यात्मक रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए डांगी को निलंबित कर दिया।

बृहस्पतिवार को किच्छा विधायक तिलकराज बेहड़ ने पंतनगर एसएचओ पर युवती से अश्लील बातें कर दबाव में लेने का आरोप लगाते हुए डीजीपी से शिकायत की थी।

किच्छा विधायक ने बताया था कि दो पक्षों में हुए विवाद के मामले में पुलिस ने एक पक्ष पर कार्रवाई की थी। जिस पक्ष पर कार्रवाई हुई थी, युवती उसी पक्ष की थी। वह दूसरे पक्ष पर केस दर्ज कराने की मांग उठा रही थी और इसको लेकर ही वह एसएचओ के संपर्क में आई थी।

पंतनगर थाने के प्रभारी निरीक्षक राजेंद्र सिंह डांगी ने पीड़ित युवती की बेबसी का फायदा उठाकर उसके साथ रंगरलियां बनाने का ख्वाब देखा था। बीते दिनों एसएचओ डांगी की अश्लील बातों का ऑडियो वायरल होने के बाद मामला सुर्खियों में आ गया।

जिसके बाद डीजीपी के आदेश पर एसएसपी ने आरोपी एसएचओ राजेंद्र सिंह डांगी को निलंबित करने का आदेश जारी किया। और एएसपी निहारिका तोमर को जांच सौंपी।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि अभी और कितने राजेंद्र सिंह डांगी उत्तराखंड पुलिस में छुपे बैठे हैं। क्या वर्दी को दागदार और बदनाम करने वालों की सजा सिर्फ निलंबन होनी चाहिए?

क्योंकि हकीकत यही है कि कुछ दिन का निलंबन, फिर कुछ दिन की पुलिस लाइन में तैनाती और फिर घूम फिरकर ऐसे दागियों को फिर से थाना चौकी का प्रभारी बना दिया जाता है। और फिर ये वर्दीधारी अपनी घिनौनी सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए एहतियात बरतते हुए पीड़ितों को शिकार बनाना शुरू कर देते हैं।

अब करीब दो साल पहले नैनीताल पुलिस का ही मामला ले लीजिए। हल्द्वानी के मुखानी थाना प्रभारी दीपक बिष्ट के खिलाफ दुष्कर्म पीड़िता की शिकायत पर केस दर्ज किया गया। तब भी पीड़िता ने मोबाइल पर बातचीत रिकार्ड करने के साथ तत्कालीन डीजीपी से मामले की शिकायत की थी।

यह मामला एनएसयूआई के पूर्व जिलाध्यक्ष तरुण साह से संबंधित था। तरुण पर महिला नेत्री ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था। तरुण ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

पीड़ित महिला का कहना था कि जब वह कांग्रेस के नेता के खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज कराने मुखानी थाने में गई तो तत्कालीन थाना प्रभारी दीपक बिष्ट ने आरोपी को पकड़ने की एवज में पांच लाख रूपये के अलावा शारीरिक संबंध बनाने की हिमाकत कर दी।

सोचिए न्याय दिलाने वाला ही पीड़ित महिला की इज्जत को तारतार करने की सोच रहा था।

पीड़िता ने पुलिस महानिदेशक को 13 पन्नों की शिकायत लिखकर पूरी आपबीती बयान की थी। पीड़िता ने मोबाइल पर बातचीत रिकार्ड करने के साथ डीजीपी तक इस बात की शिकायत की।

तत्कालीन डीजीपी के संज्ञान लेने के बाद नैनीताल पुलिस एक्शन में आई और एसएसपी नैनीताल ने आरोपी मुखानी थानाध्यक्ष दीपक बिष्ट को निलंबित किया। मामले में हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ की सख्ती के बाद पुलिस ने अपने ही मुखानी थानाध्यक्ष के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया था।

कोर्ट में एकलपीठ में सुनवाई के दौरान मामले के विवेचनाधिकारी और रामनगर सीओ बीएस भाकुनी ने बताया था कि दीपक बिष्ट के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

तत्कालीन एसएसपी पंकज भट्ट ने सजा के तौर पर आरोपी थानाध्यक्ष को निलंबित करते हुए पुलिस लाइन नैनीताल अटैच कर दिया था।

गौर करने वाली बात यह है कि दो साल के भीतर ही आरोपी एसओ सारे आरोपों से मुक्त हो गया। और रामनगर क्षेत्र में तैनाती के बाद घूम फिरकर कुछ ही वक्त में वह हल्द्वानी क्षेत्र की महत्वपूर्ण चौकी का प्रभारी बनकर सुशोभित भी हो गया।

यह तो एक बानगी है कि ऐसे कई मामले हैं जहां पर पुलिस की वर्दी पहने शूरमाओं ने उत्तराखंड पुलिस को बदनाम किया और कुछ दिन निलंबित होने के बाद दोबारा वर्दी पहनकर शोभायमान भी हो गए।

ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि जिस दौर में पीड़ित व्यक्ति अपनी जायज शिकायत को लेकर थाना चौकी में जाने से डरता हो। आम पब्लिक में बदमाश से ज्यादा पुलिस का खौफ हो, ऐसे वक्त में खाकी को शर्मसार करने वाले इन वर्दीधारियों को क्या पुलिस महकमे से निष्कासित नहीं करना चाहिए?

आज पंतनगर थाने के एसएचओ ने पूरे प्रदेश और देश में उत्तराखंड पुलिस को शर्मशार किया है। क्या उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक राज्य के जनता को यह आश्वासन दे सकते कि भविष्य में पुलिस की वर्दी में जिम्मेदार पदों में बैठे अधिकारी ऐसा घिनौना काम नहीं करेंगे?

ताकि मित्रता, सेवा और सुरक्षा जैसे सुकून भरे शब्दों का सहारा लेने वाली उत्तराखंड पुलिस पर आमजन की भरोसा बना रहे, जो बेहतर समाज के लिए जरूरी भी है।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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