
हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। अपनी जान की बाजी लगाकर लोगों के घरों – दफ्तरों से सांपों का रेस्क्यू करने वाले तराई केंद्रीय वन प्रभाग के सक्रिय सदस्य रोहित कुमार, सुभाष गंगोला, राहुल मेवाड़ी और सुरेश मनराल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। खासकर उनके लिए जो हल्द्वानी समेत रामपुर रोड, बरेली रोड, कालाढूंगी रोड और नैनीताल रोड क्षेत्र में रहते हैं। जिनके घरों और दफ्तरों में कभी न कभी सांप ने इंट्री ली हो।
बीते सालों में इस टीम के सदस्यों ने न जाने कितने ही घर परिवारों को सांप के खतरे और खौफ से बचाया है। साथ ही सांप को सुरक्षित जंगल में भी छोड़ा है।

लेकिन आप यह जानकर हैरान परेशान हो जाएंगे कि सालों से हल्द्वानी क्षेत्र के लोगों को सामान्य और जहरीले सांपों के खौफ से मुक्ति दिलाने वाले स्नैक कैचर रोहित कुमार (25), सुभाष गंगोला (38), राहुल मेवाड़ी (27) और सुरेश मनराल (44) अपने ही संवेदनहीन विभागीय सिस्टम के कारण मुफलिसी में जीने को मजबूर हैं।
तराई केंद्रीय वन प्रभाग की QRT यानी त्वरित कार्रवाई दल (Quick Response Team) में बीते कई सालों से सक्रिय सदस्य के तौर पर सेवाएं देने वाले इन कर्मचारियों को बीते करीब सात महीने से तनख्वाह तक नहीं मिली है।
ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कैसे महंगाई और परिवार की बेहतरी की ख्वाहिश में ये कर्मचारी अपने घर परिवार का पालन पोषण करते होंगे।
इतना ही नहीं सामान्य से लेकर जहरीले सांपों के रेस्क्यू के दौरान अपनी जान को झोंकने वाले इन कर्मचारियों को विभाग की ओर से मेडिकल और इंश्योरेंस तक की सुविधा नहीं मिलती। ऐसे में अगर रेस्क्यू के दौरान त्वरित कार्रवाई दल के ये जांबाज कर्मचारी कभी चोटिल भी हुए तो इलाज का खर्च भी खुद ही वहन करने को मजबूर होते हैं।
यह हाल उस विभाग का है जहां “जंगल में मोर नाचा किसने देखा” की कहावत मशहूर है। यानि घने जंगल की आड़ में सुबह से शाम तक कईयों को मालामाल होना जहां आम है वहां जमीन पर काम करने वाले इन कर्मचारियों के हितों की अनदेखी साफ बता रही है कि कैसे तराई पूर्वी वन प्रभाग में अंधेरगर्दी चरम पर है।
तराई केंद्रीय वन प्रभाग उत्तराखंड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिलों में फैला एक वन प्रभाग है। शिकायत है कि हल्द्वानी क्षेत्र में सेवाएं दे रहे QRT कर्मचारियों से काम तो हफ्ते के सातों दिन लिया जाता है लेकिन जब तनख्वाह की बारी आती है तो 26 दिन का मानेदय दिया जाता है।
ऐसे में इन कर्मचारियों के पास एक ही रास्ता बचता है या तो वन विभाग से नाता तोड़कर दूसरे रोजगार को पकड़ लें या फिर यूं ही वेतन की आस में सूख जाएं।
सोचकर देखिए महंगाई के इस दौर में वन विभाग जैसे संपन्न विभाग जहां एक से बढ़कर एक आईएफएस सेवाएं दे रहे हों, रेंजर से लेकर डीएफओ सेवाएं दे रहे हों, सबकी चमकदार ठीकठाक तनख्वाह है, वहीं एक फोन कॉल पर जमीन में रेस्क्यू करने वाले इन कर्मचारियों की मनोस्थिति क्या होगी, वही समझ सकता है जिस पर यह बीत रही हो।
जानकारी के अनुसार, पहले QRT के इन कर्मियों को 9100 का मानदेय मिलता था। जब हल्लाबोल हुआ तो बढ़कर 12400 हुआ लेकिन वो भी बीते करीब सात महीने से नहीं मिला है।
वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की इसी काहिली के चलते QRT के कई सक्रिय सदस्य अब तक ड्यूटी छोड़ने को मजबूर हुए हैं। जिनमें गौलापार निवासी जाने माने स्नैक कैचर दयाकिशन हर्बोला और जीवन आर्य शामिल हैं।
हल्द्वानी में लंबे समय से रिकॉर्ड सांप के रेस्क्यू करने वाले दयाकिशन हर्बोला भी बेबस होकर वन विभाग की नौकरी छोड़ने को मजबूर हुए। अब इस जांबाज स्नैक कैचर ने भी वन विभाग की मलाईदार कुर्सियों में जमी काहिली के खिलाफ हाईकोर्ट जाने का मन बनाया है।
हल्द्वानी रेंज में वाहन चालक और स्नैक कैचर रहे जीवन आर्य ने साल भर पहले वन विभाग से नाता तोड़ दिया। शिकायत है कि उन्हें भी महीनों से वेतन नहीं मिला। वर्तमान में जीवन एक कॉलेज के बस चलाकर जीवनयापन कर रहे हैं। कुल मिलाकर योग्य, कुशल स्नैक कैचर सिस्टम के संवेदनहीन रवैए के चलते वन विभाग से दूर हो रहे हैं।
बुधवार को तराई केंद्रीय वन प्रभाग की त्वरित कार्रवाई दल (क्विक रेस्पॉन्स टीम) के सक्रिय सदस्य रोहित कुमार और सुभाष गंगोला ने छह फीट लंबे रेट स्नैक सांप का रेस्क्यू किया।
बुधवार दोपहर लालडांठ स्थित तिलक नगर कॉलोनी के एक घर के वाटर टैंक के पास छह फीट लंबे रेट स्नैक सांप दिखाई दिया। दहशत बढ़ी तो सूचना पर आननफानन में स्नैक कैचर रोहित कुमार और सुभाष गंगोला मौके पर पहुंचे। सांप को रेस्क्यू के बाद सुरक्षित समीपवर्ती जंगल में छोड़ दिया गया।
सांप के रेस्क्यू दौरान रोहित कुमार ने बताया कि तीन साल से क्विक रिस्पोंस टीम के सदस्य हैं। बीते दिनों तिकोनिया स्थित बैंक में सांप के रेस्क्यू के दौरान वो दीवार से गिर गए जिससे हाथ में चोट लग गई। फिर भी लगातार ड्यूटी कर रहे हैं।
सुभाष गंगोला ने बताया कि कई बार रेस्क्यू के दौरान सांप हमलावर हो जाता है। बीते आठ साल से ड्यूटी कर रहे हैं। दो बार सांप ने भी काटा। बावजूद इसके पूरी शिद्दत से हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे मुस्तैद रहते हैं।
“प्रेस 15 न्यूज” ने क्विक रेस्पॉन्स टीम के सदस्यों को लंबे समय से तनख्वाह ने मिलने का सवाल तराई केंद्रीय वन प्रभाग के डीएफओ उमेश चंद्र तिवारी से पूछा। उन्होंने बताया कि वर्तमान में क्विक रेस्पॉन्स टीम में छह कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं। जहां तक अकाउंटेंट से उन्हें जानकारी मिली है तो इन कर्मियों को 15 फरवरी 2025 तक का मानदेय मिल चुका है। लेकिन बाकी दिनों का मानदेय तकनीकी खामी की वजह से नहीं मिला जबकि मार्च का मिल चुका है।
डीएफओ उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि कर्मचारियों के हितों के प्रति वो गंभीर हैं। बजट का प्रावधान हो गया है, आने वाले चार पांच दिनों में क्विक रेस्पॉन्स टीम के कर्मियों को रुका हुआ मानदेय मिल जाएगा। अब डीएफओ साहब का ये आश्वासन वाकई हकीकत बनता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा।
