संजय पाठक, प्रेस15 न्यूज। इन दिनों हर किसी की जुबान पर बस एक ही सवाल है आखिर होली कब है? इस सवाल का जवाब जानकार लोग तो जानते हैं लेकिन अधिकतर लोग अब तक असमंजस में हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम में हर कोई पोस्ट कर पूछ रहा है आखिर होली कब है?
सोशल मीडिया में इस सवाल का जवाब देने में अधिकतर लोग रुचि भी दिखा रहे हैं। लेकिन उनका जवाब सबको फिर से कंफ्यूज कर दे रहा है। दरअसल कुछ लोग 25 मार्च तो अधिकतर लोग 26 मार्च के दिन होली का रंग खेलने का विधान समझा रहे हैं।
ऐसे में उत्तराखंड की जानी मानी ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी ने आम जन की इस दुविधा का शास्त्रसम्मत और ज्योतिष विद्या के अनुसार समाधान किया है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी कहती हैं कि बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली जो कि कुमाऊं क्षेत्र में छलड़ी के नाम से प्रसिद्ध है, 26 मार्च दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। होली पर्व प्रतिपदा उदय व्यापनी तिथि में मानने का विधान है, प्रतिपदा उदया तिथि 26 मार्च को पड़ेगी।
25 मार्च को चंद्र ग्रहण है जो कि भारत में नहीं दिखाई देगा, ऐसे में इसका कोई सूतक भी नहीं लगेगा।
होली पर्व पर अबीर गुलाल लगाने का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यतानुसार, अबीर गुलाल छिड़कने की परंपरा राधा और श्री कृष्ण के प्रेम से हुई थी। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकाल से ही माता यशोदा से अपने सांवले और राधा के गोरे होने का उपालंभ किया करते थे। श्रीकृष्ण माता से कहते थे कि मां राधा बहुत ही सुंदर और गोरी है और मेरा वर्ण सावला क्यों ?
माता यशोदा उनकी इस बात पर मुस्कुरा देती थी और उन्होंने एक दिन भगवान श्रीकृष्ण को सुझाव दिया कि वह राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं उसी रंग को राधा के मुख पर लगा दें भगवान श्रीकृष्ण को यह बात भा गई।
वैसे भी भगवान श्रीकृष्ण चंचल और नटखट प्रवृत्ति के थे उन्होंने राधा को तरह-तरह के रंगों से रंगने का निश्चय किया और श्री कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ मिलकर लाल चंदन की लकड़ी से एवं लाल गुड़हल के पुष्प को पीसकर रंग बनाया राधा और सभी गोपियों को तरह-तरह के रंगो से रंग दिया। नटखट श्री कृष्ण की यह शरारत सभी ब्रजवासियों को भा गई। माना जाता है कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने का प्रचलन प्रारंभ हो गया।