मिसाल: 24 साल में जो उत्तराखंड की सरकारें नहीं कर सकीं, वो टिटोली गांव के लोगों ने कर दिखाया

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Uttarakhand News: Titoli village of Kanda area of Bageshwar became an example in reverse migration : Happy Birthday Titoli village

संजय पाठक, प्रेस 15 न्यूज, हल्द्वानी। अपनी जन्मभूमि, पितरों की भूमि की बात ही निराली है। लेकिन एक सच यह भी है कि आज यही गांव पहाड़ की धरती पलायन का दंश झेल रही है। जो गांव पहाड़ कभी बच्चों की किलकारी, बुजुर्गों के आशीष और गौ वंशों से आबाद हुआ करते थे, आज वह अपने वजूद को बचाने की खातिर संघर्ष कर रहे हैं।

गांव पहाड़ वीरान होने के कई कारण हैं। हर किसी के पास गांव पहाड़ से दूर होने की अपनी कहानी है। कई मूलभूत समस्याएं भी हैं, जिनकी वजह से गांव में जीवनयापन करना बड़ा चुनौती बना हुआ है। लेकिन इतने सारे किंतु परंतु के बीच यह अटल सत्य है कि अपनी मातृभूमि, पितरों की भूमि का कोई सानी या यूं कहें विकल्प हो ही नहीं सकता।

इन सबके बीच कभी पलायन आयोग तो कभी रिवर्स पलायन जैसे दूसरे सिगूफों से राज्य की सरकारें गांवों को आबाद करने का दम भरती हैं लेकिन सच्चाई कोसों दूर है।

इन सबके बीच उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कांडा क्षेत्र के टिटोली गांव के लोगों ने असल में रिवर्स पलायन और अपनी विरासत को सहेजने की दिशा में मिसाल पेश की है। जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम ही है।

गांव को वीरान होने और पलायन रोकने के लिए ग्राम टिटोली के प्रवासी ग्रामवासियों ने अनोखी मुहिम शुरू की है।

इसके लिए ग्रामवासियों ने गांव का स्थापना दिवस मनाना शुरू किया है। आज ही के दिन 130 वर्ष पूर्व 24 जून 1894 को टिटोली गांव बसा था। आज गांव के स्थापना दिवस का श्रीगणेश 87 वर्षीय नारायण सिंह रौतेला जी ने केक काटकर किया।

नैसर्गिक सौंदर्य के बीच बसे छोटे से गांव टिटोली को 24 जून 1894 को स्व. भवान सिंह जी ने बसाया था। पलायन आदिकाल से चली आई परंपरा है कभी प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त, तो कभी धर्म के नाम पर महासंग्राम के कारण लोगों को पलायन करना पड़ा।

बताते चलें कि टिटोली गांव वीर सैनिकों की भूमि के लिए भी जाना जाता है। साल 1916 में गांव के गुमान सिंह रौतेला सेना में भर्ती होने वाले पहले व्यक्ति थे। धन सिंह रौतेला ने द्वितीय विश्व युद्ध और 1948 में हुए भारत-पाक युद्ध में वीरता का परिचय दिया था। इसके लिए उन्हें सेना के वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस समय भी गांव के कई लोग भारतीय सेना में अपने अदम्य साहस और जज्बे के दम पर शामिल हैं।

गांव के पुराने लोग बताते हैं कि ऐसे ही करीब 150 वर्ष पूर्व जब पूरे देश में हैजा का प्रकोप हुआ तो उस समय भी बहुत बड़ी संख्या में लोगों को पलायन करना पड़ा, इसी आपदा के कारण छाना बिलौरी से एक रौतेला परिवार धपोलासेरा के पास आकर बस गया। कालांतर में उन्होंने वर्तमान टिटोली में भूमि खरीदी और यहीं पर बस गए।

वर्तमान में स्व. भवान सिंह की छठी पीढ़ी है। टिटोली में रौतेला परिवार रहते है लेकिन वर्तमान समय में गांव में केवल गिने चुने परिवार ही निवासरत हैं। अधिकांश परिवार प्रदेश के अन्य गावों की तरह यहाँ से पलायन कर चले गए हैं।

साल 2022 मे गांव के सदस्यों ने एक समिति मातृभूमि रक्षा समिति का पंजीकरण कराया और सर्वप्रथम कार्य गांव में श्रीमद्भावत कथा साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ संपन्न करवाया। तभी यह निर्णय लिया गया कि जिस प्रकार हम लोग अपनी वैवाहिक वर्षगाँठ, जन्मदिन मनाते हैं, उसी प्रकार गांव में प्रत्येक वर्ष 24 जून को स्थापना दिवस मनाया जायेगा और 2022 से गांव में स्थापना दिवस मनाया जा रहा है।

मातृभूमि रक्षा समिति के अध्यक्ष मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि इस मौके पर गांव के जितने भी लोग प्रदेश के दूसरे हिस्सों या अन्य राज्यों में रहते हैं, वे वापस आते है और मिलजुल कर गांव का स्थापना दिवस मानते हैं। इस शुभ अवसर पर अधिकांश लोग गांव में आते है और पूरे जोश और हर्षोल्लास से गांव का स्थापना दिवस मनाते है।

इस बार भी दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, हल्द्वानी से सभी ग्रामवासी काफ़ी दिन पहले गांव लौट आए। सभी ने अपने घरों की साफ सफाई, पूजा अर्चना की और आज प्रातः पितरों का तर्पण किया गया और उसके बाद शाम को गांव का जन्मदिन मनाया गया।

इस शुभ अवसर पर गांव के युवा अभियन्ता मलय रौतेला का भी जन्मदिन मनाया गया। गांव के बड़े बुजुर्गों ने मलय को सुखी और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद दिया। मलय ने बताया कि यह उनके लिए बहुत सौभाग्य की बात है क़ि उनका जन्मदिन उस दिन है, जिस दिन उनके पूर्वजों द्वारा यह गांव बसाया गया।

मलय ने कहा क़ि प्रत्येक वर्ष वे इस दिन गांव आते हैं और आते रहेंगे। इस बार वे विवाह होने के बाद पहली बार सपत्नीक गांव आए हैं, ऐसे में खुशी दोगुनी हो गई है।

इसके साथ ही गांव के लोगों ने यह भी निर्णय लिया क़ि गांव के बाहर जिसका भी विवाह या शुभकार्य होंगें, वे गांव आयेंगे और गांव में पूजा अर्चना कर गांववालों के साथ सहभोज करेंगे।

मातृभूमि रक्षा समिति के अध्यक्ष मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि जबसे हमने यह अभियान शुरू किया तब से पलायन किए हुए लोगों की गांव आने की दर बढ़ गई है। अक्सर लोग वर्ष में दो बार जून और शारदीय नवरात्र के समय गांव आते है और सप्ताह या दस दिन तक गाँव में रहते है जिससे गांव में पहले जैसी रौनक रहती है।

मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि एकल परिवार जो अकेले शहरों में रह रहे हैं, उनके बच्चे गांव में अपने लोगों, रिश्तेदारों को पहचानने लगे हैं। ग्रामीण परिवेश के बारे में पता चल रहा है, बच्चे कुमाऊनी बोली बोलने और समझने का प्रयास करते हैं।

सबसे अहम बात यह कि बच्चे अपनी ज़मीन जो उनके दादा परदादा लोगों ने बहुत ही संघर्ष से आबाद की थी, जिससे अपना जीवन यापन किया था, बच्चों को जैसे तैसे स्कूल भेजा और आज इस योग्य बनाया क़ि वे बाहर आराम से नौकरी कर रहे हैं, उसके महत्व को जानते हैं।

गांव के स्थापना दिवस के अवसर पर कृपाल सिंह रौतेला, दीवान सिंह रौतेला, उम्मेद सिंह रौतेला, गोविन्द सिंह रौतेला, सुरेंद्र सिंह रौतेला, राजेंद्र सिंह रौतेला, संतोष रौतेला, चंचल सिंह रौतेला, हर्षित गुनिन समेत बड़ी संख्या में मातृशक्ति मौजूद रही।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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