हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है… रचनाकार अदम गोंडवी की ये पंक्तियां आज उत्तराखंड में सटीक बैठ रही हैं। आपको बता दें कि नीति आयोग ने आज 2023-24 की एसडीजी रिपोर्ट जारी की है जिसमें उत्तराखंड ने सर्वाधिक अंक लेकर पहला स्थान हासिल किया है।
प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि प्रदेश की देवतुल्य जनता के आशीर्वाद और सहयोग से ये उपलब्धि हासिल हुई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में हमारी डबल इंजन सरकार के विकासोन्मुखी प्रयासों से आज हमारा प्रदेश अग्रणी राज्य बनने की दिशा में आगे बढ़ा है। नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्य (SDG INDEX) 2023-2024 की रिपोर्ट में उत्तराखण्ड का शीर्ष स्थान प्राप्त करना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
राज्य सरकार में केबिनेट के सहयोगियों, शासन प्रशासन के अधिकारियों को भी बहुत बधाई। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार इकोलॉजी और इकोनॉमी के समन्वय के साथ ‘विकसित उत्तराखण्ड’ की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रही है। राज्य में पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करते हुए सर्वस्पर्शी एवं सर्वांगीण विकास करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
यहां तक तो थी सरकारी खबर अब असल खबर भी जान लीजिए मुख्यमंत्री जी… जिस डबल इंजन सरकार के विकास का आप दम भर रहे हैं और जिस विकास के आधार पर नीति आयोग ने 2023-24 की एसडीजी रिपोर्ट जारी कर उत्तराखंड को पहला स्थान दिया है, वह उत्तराखंड हकीकत में आपको ढूंढे नहीं मिलेगा।
राज्य गठन के 24 साल बाद भी आज उत्तराखंड राज्य जो जिसकी आत्मा पहाड़ों में बसी है, वह पलायन का दंश झेल रहा है। पहाड़ी जिले रोजगार, स्कूल, अस्पताल, पेयजल, सड़क के अभाव में पलायन की मार झेल रहे हैं। क्या नीति आयोग को ये नहीं दिखा??
राज्य में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सशक्त भू कानून न होने से लंबे समय से राज्य की उपजाऊ कृषि भूमि माफियाओं के नाम हो चुकी है। राज्य के मूल निवासी जमीन बेचने को मजबूर हैं और बाहरी प्रदेशों के लोग उन जमीनों को अपने नाम कर यहां अपनी ऐशगाह बना रहे हैं। क्या नीति आयोग की इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है??
राज्य में मूल निवास कानून न होने से राज्य के संसाधनों और सरकारी नौकरियों में बाहरी प्रदेशों के लोगों का आधिपत्य है। राज्य के युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं और स्थाई प्रमाणपत्र के नाम पर उनके मूल अधिकारों का हनन हो रहा है। जिसके चलते पढ़े लिखे युवा बेरोजगार बनकर घरों में बैठे हैं।
राज्य में स्मैक, चरस से लेकर शराब के नशे के गर्त में युवा फंस रहा है। बड़ी बात यह कि मैदानी जिलों से होता हुआ स्मैक का नशा आज पहाड़ी जिलों के युवाओं को खोखला कर रहा है। क्या नीति आयोग की इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है??
पहाड़ी जिलों में कहीं छात्र संख्या कम होने से सरकारी स्कूल लगातार बंद हो रहे हैं तो कहीं शिक्षकों का अभाव है। मुख्यमंत्री जी, क्या कारण है कि प्राइवेट स्कूल लगातार खुल रहे हैं और वहां राज्य के अभिभावक अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का सपना लेकर वहां भेज भी रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा आखिर ये स्थिति क्यों बन रही है?
क्या आप बता सकते हैं कि आपकी तीन साल के कार्यकाल के दौरान ही कितने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों ने किसी सरकारी विद्यालय में दाखिला लिया? क्या सरकारी स्कूल सिर्फ और सिर्फ कम आय वाले अभिभावकों के बच्चों के लिए ही हैं? अगर ऐसा है तो फिर सरकारी विद्यालयों में व्यवस्था और सैलरी के नाम पर क्यों सरकारी खजाने को तबाह किया जा रहा है। क्या आज की नीति आयोग की इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है??
जिन पहाड़ी जिलों में विकास के खातिर उत्तराखंड राज्य बनाने की मांग हुई। जिन दुर्गम पहाड़ी गांवों उत्तर प्रदेश के दौर में विकास की किरण नहीं पहुंच सकी, उन पहाड़ी जिलों में बसे लोग आज दिन तक छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए पहाड़ से मैदान तक जिंदगी की जंग लड़ने को मजबूर हैं।
पहाड़ी जिलों में सरकारी अस्पताल आज रेफर सेंटर बन चुके हैं। जिसके चलते राज्य के भोले भाले लोग जिंदगी बचाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों के लूट चक्र में फंसने को मजबूर हैं। कुछ समय पहले राज्य में ईएसआई कार्ड में इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की लूट बेपर्दा हुई थी जिसमें सामने आया था कि कैसे प्राइवेट अस्पताल बिल बढ़ाकर सरकार को चूना लगा रहे थे।
मुख्यमंत्री जी, क्या कभी आपने सोचा है कि राज्य के 13 जिलों के लोगों को उनको अपने ही जिले में इलाज क्यों नहीं मिल पाता?
क्या आज की नीति आयोग की विकास वाली रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है??
मुख्यमंत्री जी आपको डबल इंजन सरकार मुबारक। लेकिन आम जनता को आंकड़ों की बाजीगरी से मोहना अब बंद करना होगा। अब जनता को अखबारों में विकास के फुल पेज वाले विज्ञापनों के आंकड़ों को देखकर खुशी नहीं मिलती बल्कि दुख होता है। बड़ी बड़ी होर्डिंग में विकास के नारों को लिखने के बजाय सरकारी बजट को बचाइए और जमीन पर विकास की पटकथा लिखिए, फिर जनता खुद आपकी और आपकी डबल इंजन सरकार की मार्केटिंग दिल से करेगी।
मुख्यमंत्री जी, इस बात को स्वीकार कर लीजिए कि जब तक रोजगार, अस्पताल, पेयजल, सड़क, शिक्षा, मूल निवास, भू कानून जैसी पुकार का समाधान नहीं मिलेगा तब तक उत्तराखंड के लोगों को नीति आयोग की एसडीजी रिपोर्ट के आंकड़े खुशी नहीं दे पाएंगे।