उत्तराखंड: पीआरडी जवान की सांसें और गरीब परिवार की उम्मीद की डोर टूटी, शुक्र मनाइए सरकार ने दिल्ली एम्स भेजा था

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Uttarakhand News: Six forest workers died in the fire in Binsar Sanctuary of Almora: अल्मोड़ा, प्रेस 15 न्यूज। 18 दिन पहले अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य में लगी आग की चपेट में आए भैंसियाछाना के खाकरी निवासी पीआरडी जवान कुंदन नेगी (44) ने भी उपचार के दौरान रविवार तड़के तीन बजे के करीब दिल्ली एम्स में दम तोड़ दिया। दिल्ली से कुंदन का शव देर रात या सोमवार सुबह तक उनके पैतृक गांव पहुंचेगा।

इससे पहले घटना के छठे दिन एम्स में फायर वॉचर कृष्ण कुमार की मौत हो गई थी। वाहन चालक भगवत सिंह और वन श्रमिक कैलाश भट्ट अब भी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।

इस हृदयविदारक घटना में जान गंवाने वाले वनकर्मियों की संख्या अब छह हो गई है। वहीं अल्मोड़ा जिले की बात करें तो इस साल जंगल की आग से जलकर 11 लोगों की मौत हो चुकी है।

बताते चलें कि बीते 13 जून को अल्मोड़ा जिले के बिनसर अभयारण्य में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया था। सूचना पर अधिकारियों ने वनकर्मियों को तत्काल आग बुझाने का आदेश दिया जिसके बाद आठ वनकर्मी मौके पर बिना आग बुझाने के पर्याप्त उपकरणों के ही दौड़ पड़े थे।

इस दौरान विकराल आग का सामना करते हुए वन बीट अधिकारी त्रिलोक सिंह मेहता, फायर वॉचर करन आर्या, वन श्रमिक दीवान राम और पीआरडी जवान पूरन सिंह की जिंदा जलने से मौके पर ही मौत हो गई थी।

जबकि फायर वॉचर कृष्ण कुमार, पीआरडी जवान कुंदन नेगी, वाहन चालक भगवत सिंह और वन श्रमिक कैलाश भट्ट बुरी तरह झुलस गए थे।

मीडिया में वन विभाग के अधिकारियों की आधी अधूरी तैयारियों और राज्य सरकार की घोर असंवेदनशीलता की खबरें आईं तो सरकार ने आननफानन में घायल चारों वनकर्मियों को पहले हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल और फिर हेली सेवा से दिल्ली एम्स भेजा था।

इस बीच सीएम धामी भी दिल्ली की अपनी सियासी यात्रा के दौरान घायलों के परिजनों से मिलने एम्स पहुंचे। इस दौरान सीएम का बयान था कि घायल वनकर्मियों के इलाज में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। जिसके बाद पीड़ित वनकर्मियों के परिवारजनों में भी आस बंध गई थी।

लेकिन एक बार फिर सत्ताधारियों का वादा हर बार की तरह झूठा निकला। चार वनकर्मी पहले ही वन विभाग के एसी दफ्तर में कुर्सीतोड़ अधिकारियों के निक्कमेपन की वजह से जंगल की आग में खाक हो गए और बुरी तरह झुलझे चार वनकर्मियों में से दो ने अब तक जान गंवा दी है। अब भी दो वनकर्मी जिंदगी की खातिर एम्स दिल्ली में भर्ती हैं।

सवाल उठता है कि क्या अगर इन लाचार वनकर्मियों की जगह सरकार में बैठे किसी माननीय नेता या सचिवालय में बैठे किसी उच्च पदस्थ नौकरशाह का परिजन होता तो क्या तब भी उसका ऐसे ही इलाज होता? जवाब आपको हम ही दे देते हैं।

अगर किसी सत्ताधारी नेता या नौकरशाह का कोई अपना इस हाल में होता तो अब तक वह देश की सीमा से निकलकर विदेशी धरती के एक नंबर अस्पताल में इलाज करा रहा होता।

यानी साफ है कि उत्तराखंड में एक आम इंसान की जिंदगी की कीमत सत्ताधारियों की नजर में इतनी ही है। ये क्या कम है जिन पीआरडी वनकर्मियों को कई महीने से मानदेय तक न मिला हो उन्हें सरकार ने हेलीकॉप्टर में बैठाकर दिल्ली एम्स पहुंचा दिया।

जो अगर आम आदमी होता तो पहले 108 का इंतजार करता और फिर थक हारकर प्राइवेट गाड़ी कर हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती होता।

यहां भी किस्मत ठीक रहती तो इलाज मिलता वरना रेफर रेफर चिल्लाने वाला सरकारी अस्पताल उन्हें मरने को छोड़ देता। ऐसा भी हो सकता था कि कोई 108 वाला कमीशन के चक्कर में उन्हें किसी लूट के अड्डे यानी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा देता। उत्तराखंड में एक गरीब के साथ यही तो होता है।

शुक्र मनाइए कि धामी सरकार ने घायल वन कर्मियों को दिल्ली एम्स पहुंचा दिया। अब आगे उनकी किस्मत…चार में से दो वनकर्मियों की सांसों की डोर अब तक टूट चुकी है।

अब भगवान से यही प्रार्थना है कि जिंदगी की जंग लड़ रहे वाहन चालक भगवत सिंह और वन श्रमिक कैलाश भट्ट की जान बच जाए क्योंकि पीछे गरीब परिवार और मासूम बच्चे राह तक रहे हैं

पीआरडी जवान कुंदन अपने अपने पीछे पत्नी गंगा (37), बेटे सुमित (13), प्रियांशु (15) और बेटी प्रीति(13) को रोता बिलखता छोड़ गए हैं। बाकी वन विभाग, सरकार और दुनिया की नजर में तो वो खबर मात्र ही हैं।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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