
देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में रहने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है। राज्य सरकार ने पहाड़ में रहकर पहाड़ को बचाने के लिए कदम उठाए हैं।
इस कदम से चीड़ का पिरुल इकट्ठा होने से जंगलों में आग की घटनाओं पर काफी हद तक लगाम कसेगी। सभी वन डिवीजनों को इसकी जानकारी दे दी गई है ताकि वे भी जंगलों से पिरुल इकट्ठा करवाएं।
राज्य सरकार वनाग्नि प्रबंधन को लेकर संजीदा है। जंगलों को आग से बचाने के लिए ज्वलनशील पिरुल इकट्ठा करने के लिए प्रोत्साहन राशि 3 ₹ से बढ़ाकर 10 ₹ प्रति किग्रा कर दी है। इसके लिए 50 करोड़ का बजट भी मंजूर किया गया है।
वनाग्नि की घटनाएं अमूमन चीड़ के जंगलों में होती है।गर्मियों में चीड़ से पिरुल भरपूर मात्रा में गिरता है। यह पिरुल वनाग्नि में ईंधन का काम करता है ऐसे में वनाग्नि पर नियंत्रण करना मुश्किल होता है।
राज्य के जंगलों में 15.25 प्रतिशत चीड़ वन क्षेत्र है। इसको देखते हुए साल 2023 में शासन ने ग्रामीणों, महिला मंगल दल, युवक मंगल दलों से पिरुल एकत्रीकरण योजना शुरू कराई थी। जिसमें पिरुल इकट्ठा करने पर 3 ₹ प्रति किग्रा के हिसाब से प्रोत्साहन राशि दी जाती थी।
इसका परिणाम सकारात्मक मिला था लेकिन प्रोत्साहन राशि कम होने से जनसहभागिता नहीं हो पा रही थी। इधर, राज्य सरकार ने जनसहभागिता बढ़ाने और जनता का सीधा जुड़ाव करने के मकसद से पिरुल एकत्रीकरण की प्रोत्साहन राशि को बढ़ाने का फैसला लिया है। इसमें राशि को 3 ₹ से बढ़ाकर 10 ₹ प्रति किग्रा कर दिया गया है।
इससे पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा उनकी आर्थिकी समृद्ध होगी और पलायन पर भी रोकथाम लगेगी। वहीं, जंगलों से वनाग्नि का ईंधन भी समाप्त होगा। इसके लिए 50 करोड़ का बजट भी निर्धारित किया गया है।
