Uttarakhand: Fate-changing holy place: Almora-Nainital National Highway, Kainchi Dham: Baba Neeb Karauli Dham: हल्द्वानी, प्रेस15 न्यूज। देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास है। यही वजह है कि इस पावन धरती में ऐसे अनगिनत अलौकिक शक्तिपीठ और धाम हैं जहां दर्शन मात्र से ही मन को शांति और अपार ऊर्जा का एहसास होता है। आज हम आपको देवभूमि उत्तराखंड के एक ऐसे ही दिव्य शक्तिपीठ की यात्रा पर ले जा रहे हैं जो नैनीताल- अल्मोड़ा नेशनल हाईवे पर भवाली से महज नौ किलोमीटर की दूरी पर बसा है। हम बाबा नीब करौली के पावन धाम कैंची धाम की बात कर रहे हैं। जी हां, जिसने भी बाबा के इस अद्भुत धाम के दर्शन किए वह भाग्यवान हो गया। दरअसल, बाबा के कैंची धाम की महिमा ही कुछ ऐसी है। यहां प्रवेश करते ही मन आनंदित हो उठता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस होने लगते हैं।
1964 में हुई कैंची धाम की स्थापना
बताया जाता है कि नैनीताल- अल्मोड़ा नेशनल हाईवे पर स्थित कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार आए। यहां उन्होंने अपने पुराने मित्र और भक्त पूर्णानंद के साथ मिलकर आश्रम बनाने का विचार किया। जिसके बाद बाबा के आशीर्वाद से 1964 में आश्रम की स्थापना हुई। नीब करौली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स के साथ ही बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा, क्रिकेटर विराट कोहली, बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल का नाम शामिल है। जितने भी सैलिब्रिटी बाबा के इस धाम में पहुंचे उनका जीवन बदल गया। रिचर्ड एलपर्ट उर्फ रामदास ने नीब करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने बुलेटप्रूफ कंबल का जिक्र भी किया। बताते चलें कि नीब करौली बाबा हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे। यही वजह है कि आज भी बाबा के भक्त उनके मंदिर में कंबल भेंट करते हैं। बदले में उन्हें प्रसाद स्वरूप बाबा का कंबल भी मिलता है।
17 साल में बाबा नीबकरौली को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति
नीम करोली बाबा का जन्म यूपी के अकबरपुर गांव में सन 1900 में होना बताया जाता है। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 साल की आयु में ही बाबा का विवाह हो गया था। 17 साल की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने 1958 में घर छोड़कर खुद को बजरंगबली हनुमान की भक्ति में लगा दिया। इस दौरान वह लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा, तलईया बाबा जैसे नामों से जाने जाते थे। एक सितंबर 1973 की रात बाबा वृंदावन स्थित आश्रम में पहुंचे थे। इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी तो सेवादार उन्हें अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाया लेकिन बाबा ने इसे लगाने से इंकार कर दिया। उन्होंने वहां मौजूद भक्तों से कहा अब मेरे जाने का समय आ गया है. उन्होंने तुलसी और गंगाजल को ग्रहण कर रात के करीब 1:15 बजे अपना शरीर त्याग दिया।
जब बाबा की शक्ति से रुक गई थी ट्रेन
एक बार बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में सफर कर रहे थे। इस दौरान बाबा के पास यात्रा का टिकट न होने के चलते टीटी ने उन्हें अगले स्टेशन नीब करौली में उतार दिया। जिसके बाद बाबा थोड़ी दूरी पर अपना चिपटा जमीन पर गाड़कर बैठ गए। गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई लेकिन ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी। जिसके बाद टीटी समेत ट्रेन के स्टाफ को बाबा की शक्ति का एहसास हुआ। सबने बाबा से माफी मांगी और सम्मान के साथ ट्रेन में बिठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली। तभी से बाबा अपने भक्तों के बीच नीब करौली नाम से प्रसिद्ध हो गए।
कैसे पहुंचे बाबा नीब करौली आश्रम
नैनीताल-अल्मोड़ा नेशनल हाईवे पर भवाली से महज नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा नीब करौली के धाम आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर आप सड़क मार्ग से आ रहे हैं तो दिल्ली, लखनऊ समेत अन्य शहरों से हल्द्वानी तक रोडवेज की बस सेवा संचालित है। हल्द्वानी से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर कैंची धाम जाने के लिए आप रोडवेज बस, केमू बस और प्राइवेट टैक्सी से पहुंच सकते हैं। अगर आप हवाई सेवा से कैंची धाम पहुंचना चाहते हैं तो सबसे करीबी पंतनगर हवाई अड्डा है। पंतनगर से बस या टैक्सी से हल्द्वानी या सीधे कैंची धाम पहुंच सकते हैं। ट्रेन से कैंची धाम का सफर तय करना है तो निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। काठगोदाम से नीब करौली बाबा के धाम की दूरी करीब 40 किलोमीटर है। दिल्ली से नैनीताल की दूरी करीब 325 किलोमीटर है। जबकि नैनीताल से बाबा के धाम की दूरी करीब 17 किलोमीटर है।