Uttarakhand News: Holy Dham of Lord Shiva: Jageshwar Dham: Do not use saw on more than 1000 devadaar trees: Almora News: अल्मोड़ा, प्रेस15 न्यूज। जिसका डर था वही हुआ, एक बार फिर खोखले विकास की डगर ने आस्था और पर्यावरण पर चोट करने की ठान ली है। इस बार निशाना भगवान शिव की तपस्थली और निवास स्थान जागेश्वर धाम के समीप वो पवित्र जंगल हैं जो स्थानीय लोगों के साथ-साथ हर आस्थावान के लिए पूजनीय हैं।
कहा जा रहा है कि धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान को धरातल पर उतारा जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर 1000 वनों की बलि देकर धाम का कैसा विकास होगा? आखिर टू-लेन सड़क बनाने के लिए 1000 से अधिक देवदार के पेड़ों पर आरी चलाना कितना जायज है? वह भी तब जबकि ये वन इस धाम की आत्मा और मूल हैं। ये भले ही विकास का पैमाना खींचने वालों के लिए महज एक जंगल हो लेकिन जागेश्वर और पहाड़ के लोगों के लिए यह गहरी आस्था का सवाल है। जिसे निति नियंताओं का भली भांति समझना होगा। यही वजह है कि स्थानीय लोगों ने एक भी पेड़ पर आरी चलाए बगैर सड़क का एलाइनमेंट बदलने की मांग की है। ऐसा न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दी है।
बताते चलें कि जागेश्वर में मास्टर प्लान के तहत सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 1000 देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी की जा रही है। कार्यदायी संस्था लोक निर्माण विभाग ने चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों का चिह्नीकरण करना शुरू कर दिया है। आरतोला से जागेश्वर तक की करीब तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। ऐसे में पवित्र दारुक वन के 1000 पेड़ों की खबर ने स्थानीय लोगों की रातों की नींद छीन ली है।
क्षेत्र के लोग किसी कीमत में आराध्य महादेव के प्रिय इन दारुक के वनों पर आरी चलता नहीं देख सकते। ऐसे में स्थानीय लोग खुलकर विरोध में उतर आए हैं। स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने सोमवार को बैठक कर कहा कि यहां स्थित देवदार के पेड़ों को शिव-पार्वती, गणेश, पांडव वृक्ष के रूप में पूजा जाता है। ऐसे में इनका कटान नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने एसडीएम एनएस नगन्याल को भी ज्ञापन दिया।
जान लीजिए पावन पवित्र जागेश्वर धाम की महिमा
जागेश्वर धाम में भगवान शिव को समर्पित 124 मंदिर केदारनाथ शैली से बने हुए हैं। यहां के मंदिर करीब 2500 वर्ष पुराने माने जाते हैं। अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर को भगवान शिव की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां सप्तऋषियों ने तपस्या की थी और यहीं से लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा शुरू हुई थी।
खास बात यह है कि यहां भगवान शिव की पूजा बाल या तरुण रूप में भी की जाती है। कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग पर स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि गुरु आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ के लिए प्रस्थान करने से पहले जागेश्वर के दर्शन किए और यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुन: स्थापना भी की।