देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। देशभर में आज 12 अक्तूबर को अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य को जीत का पर्व दशहरे मनाया जा रहा है। रावण और उसके परिवार के सदस्यों के पुतले फूंके जाएंगे।
वहीं, उत्तराखंड का एक गांव ऐसा भी है जहां इससे उलट एक अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यहां अरबी के पौधों के तनों से युद्ध खेला जाता है। है ना अनूठी परंपरा…
जौनसार बावर क्षेत्र के गांव उद्पाल्टा में दो गांवों के लोग आज दशहरा के दिन गागली युद्ध करेंगे। पांइता पर्व दो बहनों की कुएं में गिरकर मृत्यु होने और दो गांवों में युद्ध की किंवदंती पर आधारित है।
जौनसार बावर में सदियों से चली आ रही एक परंपरा के तहत कुरोली और उद्पाल्टा गांवों के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध होगा।
गांव के बड़े बुजुर्गों के अनुसार, यह मान्यता रानी और मुन्नी दो बहनों से जुड़ी है। दोनों बहने पानी लेने के लिए उद्पाल्टा गांव के पास स्थित क्याणी नामक स्थान पर गई थीं। जहां पैर फिसलने से रानी की कुएं में गिरने से मृत्यु हो गई। मुन्नी को उसकी मौत का जिम्मेदार न ठहराया जाए, इसके डर से मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।
मान्यता है कि दो बहनों की मौत से ग्रामीणों को श्राप लगा और इससे मुक्ति के लिए दोनों गांवों के लोग आपस में गागली यानी अरबी के पौधों के तनों से युद्ध करते हैं।
पर्व की तैयारियों के तहत दोनों गांवों में रानी और मुन्नी के प्रतीक के तौर पर गागली के तनों पर फूल सजाकर घरों में रखे गए हैं। जहां दो दिनों तक उनकी पूजा होगी। दशहरे के दिन घरों में रखे इन प्रतीकों को ग्रामीण उसी कुएं में विसर्जित करते हैं।
ग्रामीणों के अनुसार, इस बार पाइंता पर्व के लिए पंचायती आंगन को सजाया गया है। अतिथियों के स्वागत के लिए घरों में पारंपरिक और स्थानीय व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं। दशहरा के दिन दूसरे गांव के लोग भी इस पर्व की हिस्सा बनने पहुंचते हैं।
पाइंता पर्व के अवसर पर जौनसार बावर क्षेत्र के सिमोग, कनबुआ, बमराड, पंजिया मंदिरों में शिलगूर व बिजट देवताओं की पालकियां और देव चिह्न मंदिरों को भक्तों के दीदार के लिए गर्भ गृह से बाहर लाया जाता है।