इन 04 मामलों से समझिए IAS दीपक रावत को क्यों कहते हैं दुखियारे ‘आप हमारे न्याय देवता हो’ 

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। कुमाऊं आयुक्त और मुख्यमंत्री के सचिव दीपक रावत का जनता दरबार लगातार आमजन की उम्मीद का बड़ा जरिया बनता जा रहा है। हर सरकारी दफ्तर और अधिकारी से निराश परेशान होकर पीड़ित न्याय की आस में आयुक्त दीपक रावत के पास आते हैं।

कोई दुखियारा जब न्याय पा जाता है तो खुशी में रोते हुए दीपक रावत की तुलना न्याय के देवता गोलू देव से करने में भी पीछे नहीं रहता।

साफ है कोई किसी को यूं ही न्याय के देवता गोलू देव की उपाधि नही देगा। जिस तरह से चंपावत, अल्मोड़ा और घोड़ाखाल धाम में न्याय देवता गोलू देव अपने भक्तों की अर्जी को स्वीकारते हैं। भक्त कागज और एफिडेफिट में अपनी पीढ़ा गोलू देव के सामने रखते हैं और गोलू देव का न्याय शुरू हो जाता है। यह तो भक्ति की शक्ति की बात हुई।

आईएएस दीपक रावत भी अपने हल्द्वानी और नैनीताल कैंप कार्यालय में हफ्ते में एक दिन एक एक कर सिस्टम के सताए और खुद की गलतियों के मारों को न्याय देने के साथ साथ भविष्य में ऐसी गलती न करने की सीख देते हैं।

जमीन धोखाधड़ी और ब्याज माफिया के बढ़ते मामलों को देखते हुए आयुक्त लोगों को समय समय पर आगाह भी करते हैं।

हर शनिवार को कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत हल्द्वानी स्टेडियम रोड स्थित अपने कैंप कार्यालय में आमजन की दिक्कतों को दूर करने के लिए दरबार लगाते हैं। हालाकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सचिव बनने के बाद उनकी जिम्मेदारी और व्यस्तता बढ़ गई है। बावजूद इसके दीपक रावत आमजन के लिए समय निकाल रहे हैं।

इस शनिवार को कैम्प कार्यालय में आयुक्त दीपक रावत ने जनसुनवाई कर मौके पर ही कई शिकायतों का समाधान किया। जन शिकायतों में अधिकांश शिकायतें भूमि विवाद, पारिवारिक विवाद , सड़क आदि से सम्बन्धित आईं। इनमें चार शिकायतों से समझिए कि आखिर क्यों आयुक्त दीपक रावत का दरबार आज कुमाऊं, उत्तराखंड ही नही देशभर के लोगों की उम्मीद का जरिया बना हुआ है।

कालिका कॉलोनी तल्ली हल्द्वानी निवासी विमला कन्याल ने बीते जनता दरबार में शिकायत की थी कि अनिल चंद्र सेन निवासी हरिपुरा, बाजपुर द्वारा उनको फर्जी कागजातों पर जमीन बेची गई। विमला कन्याल ने 67 लाख रुपए की धनराशि दी थी।

जब यह मामला आयुक्त दीपक रावत के पास आया तो उन्होंने अपने अंदाज में दोनों पक्षों से जानकारी जुटाई। और फिर फैसला भी सुना दिया। अनिल चंद्रसेन को अक्टूबर माह के अंत में 15 लाख और नवंबर माह के अंत में 15 लाख और बाकी शेष धनराशि को दिसंबर माह के अंत तक वापस करने के निर्देश दिए।

अपनी डूबी हुई रकम वापस आने की जो खुशी विमला कन्याल के आंखों में थी, वो साफ बता रही थी कि दीपक रावत उनके लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं।

आज के वक्त में जब रिश्तेदार और अपने मुसीबत में किनारा कर देते हैं , ऐसे वक्त में डूबे हुए एक दो हजार नहीं बल्कि 67 लाख रुपए वापस पाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। और ऐसे कई चमत्कार आयुक्त दीपक रावत के जनता दरबार में रोजाना होते हैं।

दूसरा मामला लीजिए। राकेश कुमार निवासी धानमिल  हल्द्वानी ने जमीन खरीदने के लिए रक्षित चिलवाल को एक लाख 90 हजार का बयाना दिया था। अब रक्षित चिलवाल द्वारा न तो जमीन की रजिस्ट्री कराई जा रही है और न ही बयाना वापस किया जा रहा है। सोचिए एक आम आदमी कैसे कैसे तिनका तिनका पाई पाई जोड़कर एक घर बनाने के सपना देखता है और जब वह जमीन खरीदता है तो उसे ठगने वाले बाजार में कई बैठे हैं।

इस मामले की सुनवाई में भी कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने समाधान करते हुए राकेश कुमार को रक्षित चिलवाल से 50 हजार रुपए तत्काल दिलवाए और शेष धनराशि 15 दिन के भीतर देने वापस लौटने के निर्देश दिए।

इसके अलावा एक मामला कुल्यालपुर नवाबी रोड से आया। यहां निवासी पूनम देवी ने कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत को बताया कि बीते दिनों उनकी दुकान में अज्ञात महिला ड्रग्स का पैकेट छोड़ गई थी, जिसके कारण उसके पति सूरज टम्टा को एंटी नारकोटिक्स टीम ने गिरफ्तार कर लिया। जिनका इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं है।

इस संबंध में कुमाऊं आयुक्त ने एसएसपी प्रहलाद नारायण मीणा को मामले की जांच कराने के लिए कहा। ताकि बेगुनाह के साथ अन्याय न हो सके।

जनसुनवाई में ओखलकांडा ब्लॉक से कई क्षेत्रवासी पूर्व विधायक दान सिंह भण्डारी की अगुवाई में पहुंचे। ग्रामीणों ने बताया कि भीड़ापानी-ज्योसूडा मार्ग जिसकी लम्बाई करीब 20 किमी है, इस सड़क की कई वर्षों से मरम्मत नही होने के कारण लोगो को आवाजाही में काफी परेशानी हो रही है। लेकिन जिम्मेदार विभाग के अधिकारी कोई सुध नहीं ले रहे।

जिस पर आयुक्त ने अधिशासी अभियंता लोनिवि को जांच कर कार्यवाही करने के निर्देश दिए। अब अक्टूबर माह में उक्त मार्ग में मरम्मत कार्य प्रारम्भ कर दिया जायेगा।

ये महज चार मामले बताने के लिए काफी हैं कि कैसे आयुक्त दीपक रावत अपने खुशमिजाज और सख्त अंदाज के बीच पीड़ितों के चेहरे पर खुशियां बिखर रहे हैं। कई मामले पारिवारिक विवाद के होते हैं। जिनमें आयुक्त साफ तौर पर कहते हैं कि कोशिश कीजिए कि आपस में बातचीत कर विवाद सुलझ जाए वरना मुकदमे की राह तो खुली ही है फिर झेलते रहिए आप..

हालाकि कई बार ऐसे मामले भी आयुक्त के पास लेकर लोग आ जाते हैं जिनका निपटारा निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा आसानी से हो सकता था।

जमीन और दूसरे विवादों में आयुक्त कागजी लिखत पढ़त में नहीं पड़ते। वो फरियादी से साफ कहते हैं कि कुर्सी में आराम से बैठकर अपनी बात रखिए, खड़े मत होइए। इतना ही नहीं जब साबित करने की बारी आती है तो आयुक्त पीड़ित के फोन पर मौके की ताजी तस्वीर देखना जरूरी समझते हैं जिससे तस्वीर साफ हो जाए। यानी साफ है फाइल और कागजों के पुलिंदे वाले न्याय के बजाय आयुक्त के दरबार में कभी फौरन तो कभी एक दो सुनवाई वाला और स्मार्ट न्याय मिलता है।

ऐसे में कई बार आयुक्त लोगों को साफ निर्देश भी देते हैं कि आप कम से कम एक बार शिकायत लेकर निचले स्तर के अधिकारियों के पास तो जाइए। हो सकता है आपको वहीं न्याय मिल जाए।

क्योंकि जनता दरबार में केवल हल्द्वानी और आसपास के लोग ही नहीं बल्कि पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, उधमसिंह नगर से भी न्याय की आस में लोग आते हैं। कई बार तो दिल्ली, हरियाणा तक से भी लोग दीपक रावत के कैंप कार्यालय में मदद की उम्मीद से आते हैं। यानी आयुक्त के दरबार का समय बड़ा कीमती है।

हल्द्वानी में हर शनिवार सुबह आठ बजे से ही फरियादियों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो देर रात आठ बजे तक रहता है। सुबह 10 बजे से आयुक्त दीपक रावत एक एक कर फरियादियों को सुनते हैं और दोपहर दो बजे बाद वो विवाद वाले दोनों पक्षों की सुनवाई करते हैं। सुबह 10 बजे से देर रात तक आयुक्त के दरबार यूं ही अनवरत बिना किसी ब्रेक के चलता है।

जनता दरबार में यूं तो पर्ची सिस्टम है लेकिन कुमाऊं आयुक्त की प्राथमिकता में सबसे पहले वो लोग होते हैं जो दूर पर्वतीय या मैदानी इलाकों से आए हुए होते हैं। इसके बाद बुजुर्ग और दिव्यांग फरियादियों को पहले बुलाया जाता है। छोटे बच्चों के साथ आई महिलाओं को भी प्राथमिकता दी जाती है।

सबसे खास बात यह है कि आयुक्त दीपक रावत के कैंप कार्यालय में आने वाला कोई भी छोटा बच्चा या बच्ची बगैर चॉकलेट या टॉफी लिए नहीं जाता। आयुक्त अपने खास अंदाज में बात करके बच्चों के चेहरे पर खुशी देते हैं।

दिनभर दुखियारे आते हैं, कुछ को समाधान वाली खुशी मिलती है तो कुछ शातिरों को सख्त फटकार… ऐसे में हम तो यही उम्मीद करेंगे कि आयुक्त का कैंप कार्यालय इसी तरह कुमाऊं के लोगों को खुशी और उम्मीद मिलती रहे।

लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि जब छोटे से लेकर बड़े मसले कुमाऊं आयुक्त के पास आ रहे हैं तो आखिर तहसीलदार, कानूनगो, एसडीएम, सिटी मजिस्ट्रेट, डीएम और एसएसपी क्या कर रहे हैं?

क्या जिलों में इन सभी अधिकारियों की कोई जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए? आखिर क्यों आमजन के लिए सुनवाई की पहल डीएम और एसएसपी स्तर से नहीं होती? जबकि इस बाबत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से समय समय पर निर्देश दिए गए हैं।

कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत के कैंप कार्यालय में पुलिस और प्रशासन का सताया हर फरियादी ये साफ बताता है कि निचले स्तर के लॉ एंड ऑर्डर में कहीं न कहीं चूक और मनमर्जी हावी है। ऐसे में अधिकारियों को कुमाऊं आयुक्त और मुख्यमंत्री के सचिव आईएएस दीपक रावत के वर्किंग स्टाइल से सीख लेते हुए अपना फर्ज निभाने को आगे आना चाहिए।

वैसे सिर्फ ढाई, तीन साल की नौकरी का इरादा पाले और छोटी छोटी वजहों से मीडिया की सुर्खियां बटोरने में माहिर अधिकारियों से ऐसी उम्मीद करना भी गलत ही है।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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