
देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। उत्तराखंड समाज कल्याण विभाग में ट्रांसफर पोस्टिंग का खेल हम पहले ही खबर के माध्यम से सामने रख चुके हैं कि कैसे अधिकारियों कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते ट्रांसफर पॉलिसी का मजाक बनाया जा रहा है।
हैरानी की बात यह है कि खबर प्रकाशित होने के बाद भी समाज कल्याण विभाग के जिम्मेदारों ने कार्रवाई तो दूर की बात पक्ष रखना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे में समझा जा सकता है कि उत्तराखंड में नौकरशाही किस कदर बेलगाम है।

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अब उत्तराखंड सचिवालय को ही लीजिए यहां भी तबादला नीति (संशोधित) को जारी हुए करीब दो महीने होने जा रहे हैं, लेकिन अब तक सचिवालय के भीतर पॉलिसी के अनुरूप ट्रांसफर नहीं हो पाए हैं। इससे सवाल खड़े हो रहे हैं कि खुद सचिवालय भी पारदर्शी व्यवस्था लागू नहीं करवा पा रहा है तो राज्य के भीतर क्या होगा?
क्योंकि कार्यपालिका के रूप में सचिवालय किसी भी राज्य का सर्वोच्च कार्य क्षेत्र है, जहां से पूरे प्रदेश के लिए नीतियां तैयार की जाती हैं।
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सचिवालय में मुख्य सचिव आनंद वर्धन के हस्ताक्षर से सचिवालय कर्मियों के लिए संशोधित स्थानांतरण नीति 2025 जारी की गई। उम्मीद जगी कि सचिवालय में लंबे समय से एक ही पद पर बैठे कर्मचारी और अधिकारियों को पॉलिसी आने के बाद ट्रांसफर किया जा सकेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
बड़ी बात ये है कि इस मामले में उत्तराखंड सचिवालय संघ भी मुख्य सचिव के सामने अपनी बात रख चुका है और तबादला नीति को लागू करवाने की भी बात कह चुका है।
वैसे तो उत्तराखंड में सचिवालय कर्मियों के लिए नई संशोधित ट्रांसफर पॉलिसी करीब 14 जुलाई को ही ला दी गई थी और इसके बाद सरकार के पास 31 जुलाई तक सचिवालय कर्मियों के तबादले करने का समय था। ऐसा इसलिए क्योंकि, तबादला सत्र 31 जुलाई तक ही रहता है।
इससे पहले कहा गया कि विधानसभा सत्र गैरसैंण होने के कारण सचिवालय कर्मियों के तबादले नहीं किया जा सके, लेकिन अब सत्र खत्म होने के लंबे समय बाद भी इस पर सन्नाटा पसरा है।
इस मामले पर उत्तराखंड सचिवालय संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी भी कहते दिख रहे हैं कि पॉलिसी आने के बाद भी कुछ ऐसे तबादले किए गए हैं, जो नई संशोधित पॉलिसी के अनुरूप नहीं थे।
उन्होंने कहा कि सचिवालय संघ को पारदर्शी तबादलों के लिए बेहतर प्रयास करने चाहिए जिससे अधिकारी तबादला पॉलिसी के अनुरूप तबादला सूची जारी कर सकें। जो 3 और 5 साल का मापदंड तय किया गया है, उसका पालन किया जाना चाहिए। पॉलिसी आने के बाद भी गुपचुप तरीके और नियम विरुद्ध तबादले हुए हैं। इन तबादलों को सचिवालय प्रशासन को एक्शन लेना चाहिए।
