देहरादून के ISBT में खड़ी बस के ड्राइवर कंडक्टर के घर परिवार में बेटियां तो होंगी ना?

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देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। वो तारीख 16 दिसम्बर 2012 थी, जब देश की राजधानी दिल्ली में इंसानी भेष में छुपे छह दरिदों ने एक बेटी की दर्द वाली मौत दी थी। तब उस बेटी को निर्भया नाम दिया गया था और देश भर में दरिदों के खिलाफ फांसी की सजा की मांग हुई थी।

16 दिसंबर 2012 की रात को 23 साल की पेरामेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में 6 लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। आठ साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद 20 मार्च 2020 को गैंगरेप के चार दरिदों को फांसी पर लटका दिया गया। जबकि एक आरोपी ने तिहाड़ में आत्महत्या कर ली थी। जबकि, एक नाबालिग को रिहा कर दिया गया था।

12 साल पहले देश भर के मां बाप यही दुआ कर रहे थे कि निर्भया के दरिदों को फांसी के बाद महिला अपराधों में कमी आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

कोलकाता में होनहार डॉक्टर बिटिया के साथ फिर वही हैवानियत दोहराई गई और देशभर के डॉक्टरों ने विरोध और गुस्से में ओपीडी ठप कर दी। ये सुरक्षित माहौल पाने के लिए डॉक्टर्स की एकता की ताकत थी। और पूरे देश में सरकारी और निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद हो गए।

देशव्यापी विरोध का परिणाम हुआ कि नीति नियंताओं ने संज्ञान लिया और सख्त कदम उठाने की अपनी मंशा जाहिर की। ऐसे में सवाल उठता है क्या डॉक्टर्स का ये विरोध देशभर में फैल चुकी विकारी मानसिकता का अंत कर पाएगी?

क्या देश की सरकारों से ये उम्मीद की जा सकती है कि वो देश में ऐसी व्यवस्था लागू करेंगे जिससे बेटियों के जन्म पर माता पिता खुशी के साथ साथ उनकी सुरक्षा के लिए फिक्रमंद न हो सकें।

लेकिन सवाल यह है जब महिला अपराध का यही दरिंदा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हुआ होगा, तब क्या होगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि हमने उत्तराखंड में देखा है कि कैसे पौड़ी की बेटी अंकिता को दर्द वाली मौत देने वालों में सत्ता के करीबियों का हाथ था।

अंकिता की बूढ़ी नानी इस उम्मीद में ही स्वर्ग सिधार गईं कि उनकी हंसमुख नातिन को तड़पा तड़पाकर मारने वाले दरिदों को फांसी की सजा मिलेगी लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो सका। सच कहें तो कोई उम्मीद भी नहीं है क्योंकि जो सत्ता का करीबी दरिंदा पुलकित आर्य जेलर के साथ हाथापाई कर सकता है, आप उसके इस आत्मविश्वास से ही अंदाजा लगाइए कि वो किस हवा में जेल में बंद है।

साफ है एक पहाड़ी मूल के परिवार ने अपनी बेटी को खोया और दरिंदे को आज दिन तक सत्ता से ऑक्सीजन मिल रही है। भला हो आशुतोष नेगी जैसे पहाड़ी मानुष का जो आज दिन तक अंकिता के बूढ़े मां बाप की ढाल बने हुए हैं।

दिल्ली की बेटी निर्भया, कोलकाता की डॉक्टर बिटिया,  पौड़ी की अंकिता जैसी बेटियों के साथ पिछले 12 साल में हुए अनगिनत जघन्य अपराधों के बाद अब पंजाब की 16 साल की बेबस लाचार बेटी के साथ देहरादून के आईएसबीटी बस अड्डे में खड़ी रोडवेज बस में हुई दरिंदगी की वारदात को भी जान लीजिए।

दून आईएसबीटी में 16 साल की किशोरी से रोडवेज बस में सामूहिक दुष्कर्म की वारदात सामने आई है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की टीम को देहरादून आईएसबीटी पर 13 अगस्त की शाम को किशोरी बदहवास हालत में मिली थी। सहमी किशोरी ने मौके पर कुछ नहीं बताया। इसके बाद उसकी काउंसलिंग कराई गई, तो घटना का खुलासा हुआ।

काउंसलिंग में पता चला कि किशोरी के साथ दरिदों ने बस में सामूहिक दुष्कर्म किया था। किशोरी पंजाब की रहने वाली है। वह पंजाब से दिल्ली फिर मुरादाबाद और फिर देहरादून पहुंची थी।

साफ है कि किशोरी के साथ इस दरिंदगी में रोडवेज बस के ड्राइवर और कंडक्टर भी शामिल होंगे। और ये भी तय मानिए कि इन दरिदों के घर में बेटियां भी होंगी। यानी अपनी बेटी बेटी और दूसरे की बेटी गंदी नजर और दुष्कर्म का सामान….

फिलहाल पटेलनगर पुलिस ने मामले में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है और जांच चल रही है। फिलहाल उस बस का पता चल पाया है जिसमें बेबस बेटी के साथ दरिंदगी हुई। ऐसे में शैतान ड्राइवर और कंडक्टर की पहचान भी नहीं हो सकी है। अब आखिरी उम्मीद बस अड्डे के सीसीटीवी पर टिकी है। हालाकि पूरे आसार हैं जब यह वारदात हुई होगी, तब सरकारी सीसीटीवी बंद होगा।

पता चला है कि किशोरी के माता पिता नहीं हैं। वह अपनी विवाहित दीदी के साथ रहती थी लेकिन कुछ दिन पहले दीदी ने भी उससे दूरी बना ली। जिसके बाद किशोरी एक शहर से दूसरे शहर भटक रही थी। और भटकते भटकते जब वो देहरादून बस अड्डे पहुंची तो इंसानी भेड़ियों ने उसे शिकार बना लिया। और काले मुंह के साथ सभी शैतान बेखौफ अपने घर परिवार चले गए।

अब देखना होगा पुलिस लाचार बेटी के साथ दरिंदगी करने वालों को पकड़ पाती भी है या यूं अज्ञात में मुकदमा लिखा रह जाएगा।

ये सच है कि बेबस और लाचार पर सदियों से ज्यादती होती आई है। ये भी एक सच है कि महिला अपराधों के प्रति देश के नीति नियंता आज दिन तक कोई ठोस दंड देने वाली नीति नहीं बना सके।

अब आप ही बताइए निर्भया के माता पिता ने आठ साल तक बेटी की न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ी। पौड़ी की बेटी अंकिता के बूढ़े माता पिता पिछले दो साल से राजनीति पोषित गुनहगारों से लड़ रहे हैं। अब कोलकाता की बेटी का परिवार दरिंदों के खिलाफ मुखर है।

लेकिन एक सच ये भी है कि आज महिला अपराध के बढ़ते मामलों में कहीं न कहीं महिलाएं भी जिम्मेदार बन रही हैं। आप अभी जिस स्मार्टफोन या डेस्कटॉप में ये खबर पढ़ रहे हैं, उसमें मौजूद इंस्टाग्राम और फेसबुक भी आप चलाते ही होंगे। तो आपको ज्यादा क्या कहें…

अश्लीलता की हदें पार करने वाली हर नुमाइश में सबसे आगे महिलाएं हैं। अगर कहें कि सोशल मीडिया के ये प्लेटफार्म चलते फिरते अश्लीलता के गढ़ बने हुए हैं तो कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा।

अपने घर या किसी बंद कमरे में कैमरे के सामने रील और फोटो खिंचाने के बाद पहले व्यूज और फिर पैसा कमाने की चाहत में युवतियां और उम्रदराज महिलाएं खुलेआम शरीर बेच रही हैं। यानी फोन पर करे कोई और सड़क पर भरे कोई…

देहरादून के आईएसबीटी बस अड्डे में खड़ी रोडवेज बस के अंदर जिन इंसानी भेड़ियों ने बेबस किशोरी का जख्म दिया, तय मानिए वो सभी अपने फोन पर फेसबुक और इंस्टाग्राम में उन्हीं विकारी महिलाओं के वीडियो देखते होंगे जो अपने शरीर की नुमाइश कर विकारी दिमाग वालों को पाप करने का दुस्साहस देती हैं।

सवाल उठता है क्या सिर्फ और सिर्फ दरिदों के लिए फांसी की मांग करने भर से महिला अपराध रुक जाएंगे? वो भी तब जब महिला अपराध के खिलाफ देश में कानूनों की कोई कमी नहीं है।

ऐसे में क्या सोशल मीडिया में अपने शरीर की नुमाइश करने वाली देश की विकारी महिलाओं की करतूत के खिलाफ भी आवाज नहीं उठनी चाहिए?

खुद सोचिए जिस देश में एक तरफ खुद महिलाएं ही घिनौनी और विकारी मानसिकता की कारगुज़ारियों में तल्लीन रहेंगी, उस देश में बेबस और लाचार बेटियां कैसे सुरक्षित रह सकती हैं। वो भी उपभोक्तावाद के उस दौर में जब परिवारों में बेटा और बेटी के लिए संस्कारों की पालना किसी चुनौती से कम नहीं है।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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