उत्तराखंड में आलाकमान से बढ़कर कोई नहीं, कुछ ऐसे ये बात आज कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा को भी पता चली

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हल्द्वानी/देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। आलाकमान आलाकमान होता है, यह बात भूलनी नहीं चाहिए…खासकर उत्तराखंड की राजनीति के धुरंधरों को। आम जनता जानती भी है और समझती भी है कि 24 साल के उत्तराखंड को कभी उसके हिस्से की खुशी और विकास नहीं मिल सका।

जानते हैं क्यों, क्योंकि आलाकमान को उत्तराखंड अपने हिसाब से जो चलाना था। फिर चाहे वो कांग्रेस का आलाकमान हो या फिर भाजपा का…

अब आप कहेंगे खबर की हेडिंग तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का नाम था तो फिर आप ये आलाकमान के फ्लैसबैक में क्यों चले गए। दरअसल, आज जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा के पत्र को पढ़कर महसूस किया होगा, बिल्कुल वैसा ही पिछले 24 साल से उत्तराखंड की आम जनता फिर चाहे वो गांव पहाड़ की हो या मैदान की, उसने महसूस किया है।

अब मुद्दे की खबर भी जान लीजिए। दरअसल, पिछले दिनों उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने अपना अधिकार समझकर संगठन में विभिन्न पदों पर नियुक्तियां कर दी थीं। भाई, प्रदेश अध्यक्ष हैं वो भी उत्तराखंड कांग्रेस के तो इतना तो कर ही सकते हैं।

लेकिन यही करन माहरा की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। जैसे ही करन माहरा के इस फैसले की खबर पार्टी के जयचंदों के व्हाट्स एप और कॉल के जरिए उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा तक पहुंची तो फौरन एक पत्र उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नाम जारी हो गया।

उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा ने एक पत्र जारी कर लिखा है कि मेरे संज्ञान में आया है कि उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस संगठन व जिला/ब्लॉक संगठन में कुछ स्थायी और अस्थायी नियुक्तियां की गई हैं। ऐसी सभी नियुक्तियां जो एआईसीसी की मंजूरी के बिना की गई हैं, उन सभी नियुक्तियों को तुरंत रद्द किया जाता है।

पार्टी की प्रदेश प्रभारी ने पत्र की प्रतिलिपियां ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के सह प्रभारी सुरेंद्र शर्मा और परगट सिंह समेत नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य को भी भेजी हैं।

ऐसे में एक बार फिर आलाकमान ने ये साबित कर दिया कि उसे आलाकमान क्यों कहते हैं। अच्छे भले करन माहरा उत्तराखंड भाजपा से टक्कर ले रहे थे, लेकिन फिर भी आलाकमान ने उन पर यानी उनके फैसलों पर एक्शन ले ही लिया।

धामी सरकार के वो फैसले जो आम उत्तराखंडी के हक हकूक के खिलाफ हैं, उन्हें पलटने का साहस अब तक करन माहरा की अगुवाई वाली उत्तराखंड कांग्रेस दिखाना तो दूर दिखाने का नाटक भी ठीक से नहीं कर सकी है। आज भी उत्तराखंड कांग्रेस का विरोध केवल और केवल प्रतीकात्मक ही है। मित्र विपक्ष कहना ज्यादा ठीक रहेगा।

लोग तो यह भी कह रहे हैं कि उत्तराखंड कांग्रेस में जिस ऊर्जा और संचार की उम्मीद बतौर अध्यक्ष करन माहरा से की जा रही थी, फिलहाल वो उम्मीद पूरी होती दिख नहीं रही है। आखिर 100 साल पुरानी पार्टी जो ठहरी। पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को चुनावों में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के अंदरूनी धुरंधरों से ही लड़ना पड़ जाता है।

वही कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि करन माहरा के कार्यकाल का विश्लेषण करना अभी जल्दबाजी होगी। उन्हें अभी वक्त देना चाहिए। वो उत्तराखंड कांग्रेस में जान फूंक कर ही रहेंगे।

लेकिन सबसे बड़ी चर्चा तो ये है कि जिन पदों में नियुक्ति को प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा ने निरस्त किया है, अगर वो कांग्रेसी इस फैसले को दिल पर ले बैठे तो क्या होगा। वही होगा जो भाजपा का ख्वाब पूरा होने जैसा होगा। यानी पूरे आसार हैं कि कांग्रेस में मारामार की नौबत ना आ जाए। और अगर ऐसा हुआ तो उससे निपटना ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा की सबसे बड़ी चुनौती होगी।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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