
भीमताल, प्रेस 15 न्यूज। हरे भरे पहाड़ों में सेल्फी खींचकर सोशल मीडिया में पोस्ट करना बड़ा अच्छा लगता है लेकिन पहाड़ में रहकर जीवन बिताना उतना ही कष्टकारी है। पहाड़ में रहने वालों का जीवन आज भी पहाड़ जैसी चुनौतियों से भरा है।
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड गठन के बाद कई सरकारें बदलीं। मुखिया बदले। मगर नहीं बदली तो दूर गांवों की ये कष्टकारी तस्वीर और ग्रामीणों की तकदीर। उत्तराखंड के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में कई गांव हैं जो विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं । उन्हीं में से एक नैनीताल जिले का भीमताल क्षेत्र है।

यहां पहाड़ की तलहटी में बसे गांवों के लोगों को सड़क तक आने के लिए कई किलोमीटर तक पथरीले, संकरे और खतरनाक रास्तों को पैदल पार करना पड़ता है। ग्रामीण मरीजों को डोली में लेकर सड़क तक पहुंचाते हैं उसके बाद निजी गाड़ियों में या फिर 108 के माध्यम से अस्पताल लाते हैं।
ऐसे में अक्सर गंभीर रूप से बीमार मरीजों की समय से इलाज ने मिलने के कारण जिंदगी खतरे में आ जाती है। युवाओं के कंधों में घर की जिम्मेदारी के समय मरीजों को कुर्सी डोली में मरीज ढोलना के लिए गाँवो में रह गए है।
भीमताल विधानसभा के धारी ब्लॉक के देवनगर के तोक सिकिंजला निवासी 21 वर्षीय मुकेश बेलवाल का हर्निया का बीते दिनों ऑपरेशन हुआ था। इस बीच सोमवार को घर में अचानक तबियत बिगड़ने से आननफानन में परिवार और ग्रामीण अस्पताल लेकर गए। लेकिन गाँव में सड़क नही होने से कुर्सी में बैठाकर 3 किमी सड़क तक 4 घण्टे में पहुँचे। जिसके बाद 108 से हल्द्वानी भेजा गया।
युवा ग्रामीण कमल बृजवासी, किशोर तिवारी ने बताया कि आजादी के बाद से अब तक ग्रामीण सड़क से वंचित है। गाँव में 500 से अधिक लोग है। कहा कि किसी जनप्रतिनिधियों ने आज तक सड़क नही पहुँचाई। ग्रामीण भरोसे में लेकर वोट मांगते है। लेकिन सड़क आज तक नही बनी।
कहा मुख्यमंत्री जल्द गाँव की सड़क का संज्ञान अब स्वयं लें जिससे ग्रामीणों सड़क से जुड़ सके। आए दिन गर्भवती महिलाओं और बीमारों को कुर्सी डोली में लेकर आना पड़ता है। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री से जल्द सड़क बनाने की मांग की है। कहा अगर सड़क नही बनी तो आगे किसी भी चुनाव में ग्रामीण वोट नही देंगे।

