बागेश्वर को तबाह करने वाले खड़िया खनन पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया

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नैनीताल/बागेश्वर, प्रेस 15 न्यूज। सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो। गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो

उफ! तुम्हारी ये खुदगर्जी , चलेगी कब तक ये मनमर्जी। जिस दिन डोलेगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती। लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्यापारी-तब क्या होगा?

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वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी-तब क्या होगा? योजनाकारी-तब क्या होगा? नगद- उधारी तब क्या होगा?

जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की ये कालजयी पंक्तियां आज फिर याद आ गईं। खनन के नाम पर पहाड़ को खोखला करने वालों के खिलाफ एक बार फिर अदालत ने फैसला सुनाया है।

उच्च न्यायालय ने बागेश्वर में अवैध खड़िया खनन से आई दरारों संबंधी स्वतः संज्ञान (पीआईएल) और कुछ अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए खनन पर लगी रोक को जारी रखा और खनन से बने गड्ढों को भरने की अनुमति दे दी।

जनहित याचिका को सुनते हुए, न्यायालय ने गड्ढों को भरते वक्त केंद्रीय भू-जल बोर्ड के अधिकारियों के सामने गड्ढों की जीओ टैगिंग कराने को कहा है, ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर उसकी मदद से खोला जा सके।

न्यायालय ने कहा कि गड्ढों को भरने का जो खर्चा आएगा, उसकी वसूली खनन स्वामी से की जाए। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि जो खनन सामग्री है उसकी नीलामी पद्मश्री शेखर पाठक की अध्यक्षता में कराई जाए और उसके लिए टेंडर निकाला जाय। मामले की सुनवाई 6 सप्ताह बाद के लिए तय हुई है।

बता दें कि पूर्व में बागेश्वर कांडा तहसील के ग्रामीणों ने मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजकर कहा था कि अवैध खड़िया खनन से उनकी खेतीबाड़ी, घर, पानी की लाइनें क्षतिग्रस्त हो चुकी है। जो धन से संपन्न थे, उन्होंने अपना आशियाना हल्द्वानी व अन्य जगह पर बना लिया है। अब गावों में निर्धन लोग ही बचे हुए हैं। उनके जो आय के साधन थे उनपर अब खड़िया खनन के लोगों की नजर टिकी हुई है।

इस संबंध में कई बार उच्च अधिकारियों को प्रत्यावेदन भी दिए, लेकिन उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ। इसलिए उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।

(नैनीताल से वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट)

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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