खास खबर: जन्मदिन मुबारक पिथौरागढ़: 64 साल का सफर, पलायन के कारण आबाद गांवों की संख्या घटकर 1542 रह गई

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पिथौरागढ़, प्रेस15 न्यूज। देवभूमि उत्तराखंड का गठन नौ नवंबर 2000 को हुआ था लेकिन चीन और नेपाल की सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिला 24 फरवरी 1960 को अल्मोड़ा से अलग होकर अस्तित्व में आया। आज पिथौरागढ़ जिला अपना 64वां स्थापना दिवस मना रहा है। इन सबके बीच आज भी यह सवाल बना हुआ है कि जिस राज्य को हमने 42 शहादतों और खासकर मातृशक्ति के संघर्ष, मान सम्मान और अस्मिता को खोकर पाया, वो आज भी अपनी मूलभूत समस्याओं से घिरा हुआ है। या यूं कहें 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों की समस्याएं समाधान के बजाय बद से बदतर हो गई हैं।

लेकिन आज पिथौरागढ़ जिले की ही बात करें तो बीते 64 सालों में यहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव में करीब 41 फीसदी लोगों ने पलायन कर दिया है। जिस कारण यहां के दर्जनों खूबसुरत गांव अब बेजान और वीरान हो चुके हैं। पढ़ाई लिखाई से लेकर बेहतर इलाज और रोजगार के खातिर यहां के लोग मैदानी इलाकों में जाने को मजबूर हैं।

7090 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले पिथौरागढ़ की जनसंख्या- 483440 है जिसमें 244133 महिलाएं और 239306 पुरुष हैं। यहां साक्षरता दर करीब 82.2 फीसदी है जिसमें महिला साक्षरता 72.3 और पुरुष साक्षरता दर 92.7 फीसदी है। पिथौरागढ़ जिले में 12 तहसीलें, एक उप तहसील, आठ ब्लॉक, चार विधानसभा और 1600 गांव (आबाद गांव 1542) हैं।

आज भी जिले के लोगों को इलाज के लिए जिला अस्पताल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जिला अस्पताल में पिछले सात साल से हार्ट का डॉक्टर नहीं है। इसके अलावा जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं हैं। किसी तरह फार्मासिस्ट और दूसरे स्टाफ के भरोसे मरीजों को देखा जा रहा है। कुछ वक्त पहले राज्य सरकार ने बेस अस्पताल के संचालन के लिए पदों के प्रस्ताव को स्वीकृति दी लेकिन अभी तक नियुक्ति नहीं हो सकी है। यही वजह है कि जिले के लोग अपनों की जिंदगी बचाने के लिए मैदानी क्षेत्रों के निजी अस्पतालों में जाने और लूटने को मजबूर होते हैं। अगर यह कहें कि जिले के सरकारी अस्पताल सिर्फ रेफरल सेंटर हैं, तो कहना गलत नहीं होगा।

बात अगर शिक्षा की करें तो वह भी भगवान भरोसे है। जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का घोर अभाव है। यही वजह है कि जिन स्कूलों में कभी 800 से 1200 तक छात्र-छात्राएं हुआ करती थीं, वहां अब 100 से 200 ही रह गए हैं। बात अगर उच्च शिक्षा की करें तो पिथौरागढ़ महाविद्यालय को कैंपस बना दिया है, लेकिन अभी तक पूरी तरह से प्राध्यापकों की तैनाती नहीं हुई है।

पलायन आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो अब तक पिथौरागढ़ के गांवों से करीब 41 फीसदी से अधिक आबादी पलायन कर चुकी है। हाल ही में जल जीवन मिशन योजना के तहत गांवों को पेयजल पहुंचाने के लिए सर्वे किया गया था। रिपोर्ट में 58 गांवों के गैर आबाद होने की पुष्टि हुई थी। 2019 में पिथौरागढ़ में 1600 गांव आबाद थे। पलायन के कारण जिले में आबाद गांवों की संख्या घटकर 1542 पहुंच गई। पिथौरागढ़ जिले में बेड़ीनाग के 41 और गंगोलीहाट के 17 गांव आबादी विहीन हो चुके हैं।

इसके साथ ही पिथौरागढ़, डीडीहाट, बेड़ीनाग के लोगों को खेती किसानी के लिए जंगली जानवरों के कहर से जूझना पड़ रहा है। पेयजल किल्लत और बदहाल सड़कें भी हर रोज जख्म देती हैं। नई तहसीलों में एसडीएम तो दूर नायब तहसीलदार तक तैनात नहीं हैं। अधिकतर तहसील प्रभारियों के भरोसे चल रही हैं। पार्किंग के अभाव में सड़कें हर रोज जाम का दंश झेलती हैं। छोटा कैलाश, ओम पर्वत, बेड़ीनाग, चौकोड़ी, डीडीहाट, मुनस्यारी, धारचूला, थलकेदार, चंडाक, ध्वज, राष्ट्रीय उद्यान- अस्कोट वन्यजीव विहार जैसे दर्शनीय और मनभावन पर्यटक स्थलों वाले पिथौरागढ़ जिले को 64वें स्थापना दिवस की ढेरों बधाई… लेकिन जब तक शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, रोजगार, सड़क जैसी मूलभूत जरुरतों की पूर्ति नहीं होती तब तक यह बधाई भी किस काम की…

पिथौरागढ़ का एक खूबसूरत गांव।
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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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