Situation of encroachment on government land in Uttarakhand: Action in Kathbangla area of Dehradun: देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। गजब का शासन चल रहा है उत्तराखंड में…यह कोई एक दो साल की बात नहीं बल्कि पिछले 24 साल की यही कहानी है।
देहरादून में एमडीडीए के अधिकारी कैनाल रोड पर रिस्पना नदी किनारे स्थित काठबंगला बस्ती में पूरी शिद्दत से घर ढहाने पहुंचे। इस दौरान जेसीबी के पंजे से लोगों के आशियाने तोड़ दिए गए। कहा गया कि साल 2016 से यहां रह रहे लोगों के घर तोड़ने के आदेश हैं।
अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई का दम भरने वाली सरकार से कोई ये पूछे कि आखिर अतिक्रमण होने कौन देता है? आखिर लोगों को अतिक्रमणकारी बनने की शह कौन देता है?
यहां साफ कर दें कि अतिक्रमण को जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन अतिक्रमण को शह देने वाले भी बक्शे नहीं जाने चाहिए। क्या यह संभव है कि पिछले नौ सालों में यहां रह रहे लोग बिना बिजली पानी के जीवित होंगे?
अगर नहीं तो फिर कार्रवाई उन सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर भी होनी चाहिए जो जिनकी शह पर यहां अतिक्रमण बसा।
नौ साल तक गरीबों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने वाले नेताओं के भी नाम उजागर होने चाहिए ताकि असल अतिक्रमकारियों की पहचान हो सके। गरीबों को अतिक्रमणकारी बनाने वाले सिस्टम में बैठे हर उस गुनहगार को सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में नजीर बने।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, सोमवार को एमडीडीए के अधिकारी सुबह करीब 10 बजे जेसीबी और बड़ी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवानों के साथ लेकर कैनाल रोड पर रिस्पना नदी किनारे स्थित काठबंगला बस्ती पहुंच गए।
जैसे ही ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर धूल उड़ाती हुई एक के बाद एक जेसीबी पहुंची तो बस्ती में रहने वाले दहशत में आ गए। इस दौरान राजनीति चमकाने की ख्वाहिश में कई नेता भी बस्ती के लोगों के साथ विरोध करने उतर आए। हालाकि पुलिस के डंडे के आगे किसी की नहीं चली।
जब बस्ती के कुछ लोगों ने घरों के वैध होने के कागजात देखने और समय दिए जाने की मांग की तो एमडीडीए के अधिकारियों ने कहा कि जांच के बाद ही सूची तैयार की गई है। अब कोई समय नहीं दिया जाएगा।
एक-एक कर शाम तीन बजे तक 26 मकानों को ध्वस्त कर दिया गया। इस दौरान हर तरफ रोते-बिलखते बेघर हुए लोग कभी आक्रोश दिखाते तो कभी गुहार लगाते दिखे। बताया गया कि अभी 100 से अधिक मकानों पर कार्रवाई बाकी है।
काठबंगला बस्ती में टूटते घरों को देखकर बगल की वीर गबर सिंह बस्ती निवासी 25 साल की सोनम को सदमा दे लगा। तबीयत बिगड़ी और कुछ ही देर में हार्ट अटैक से सोनम की मौत हो गई।
सोनम अपने पीछे पति आकाश, पांच साल की बेटी और चार माह का बेटा छोड़ गई। बस्ती में महिला की मौत के बाद आज लोगों ने सड़क पर जाम लगाकर गुस्से का इजहार भी किया।
अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई का दम भरने वाले एमडीडीए के अधिकारी और धामी सरकार यह भी बताए कि आखिर 2016 से रह रहे लोगों के तो एक झटके में घर ढहा दिए गए लेकिन जिस सरकारी तंत्र ने इन्हें यहां बसाया, उनका क्या??
असल में सच्चाई यही है कि आज उत्तराखंड का शायद ही कोई पहाड़ी और मैदानी जिला बचा हो जहां सरकारी भूमि पर कब्जा न हो। यहां बकायदा आधार कार्ड से लेकर राशन कार्ड और बिजली पानी तक के कनेक्शन हैं।
लेकिन किसी डीएम, एसएसपी की नजर इस पर नहीं जाती। जब मुद्दा राजनीति से जुड़ता है तब जाकर प्रशासन के अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है। यानी पहले अपनी आखों के सामने अतिक्रमण बसाते हैं और फिर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई का ढिंढोरा पीटते हैं।