हल्द्वानी, प्रेस15न्यूज। उत्तराखंड के जाने माने लोकगायक प्रहलाद मेहरा (53) का दिल का दौरा पड़ने से बुधवार दोपहर निधन हो गया।
लोकगायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार दोपहर में हल्द्वानी स्थित आवास में अचानक सीने में तेज दर्द की शिकायत हुई। आननफानन में परिजन उन्हें कृष्णा अस्पताल ले गए जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
इसके बाद परिजन उनके पार्थिव शरीर को लेकर बिंदुखत्ता के संजय नगर स्थित आवास में ले आए। जिसके बाद बड़ी संख्या में ग्रामीण और चाहने वाले उनके अंतिम दर्शन को एकत्र हो गए।
गुरुवार सुबह चित्रशिला घाट रानीबाग में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
सौम्य, सरल और पहाड़ के सुख दुख के साथी और पहाड़ की आवाज प्रह्लाद दा के निधन की खबर जिसने भी सुनी वो अवाक रह गया। इसके साथ ही उत्तराखंड के साथ साथ प्रवासी उत्तराखंडी समाज के लोगों में भी शोक की लहर दौड़ गई।
पहाड़ में मातृशक्ति के संघर्ष को आवाज देते हुए प्रह्लाद मेहरा ने ‘पहाड़ै की चेली लै कभै न खाया द्वि रवाटा सुखै लै’ गीत गाया तो वहीं ‘बार घंटै की ड्यूटी मेरी तनख्वाह ढाई हजार..’ से नौकरी के लिए महानगरों में धक्के खाते युवाओं की व्यथा को भी अपने सुमधुर कंठ से आवाज दी।
आम उत्तराखंडी के दिल में बसने वाले प्रह्लाद दा को कुमाऊं के सुर सम्राट स्व. गोपाल बाबू गोस्वामी, स्व. हीरा सिंह राणा, नैन सिंह रावल को सुन गाने-लिखने की प्रेरणा मिली थी। उन्होंने हमेशा पहाड़ के सुख दुख के इर्द-गिर्द ही गीत रचे। सुमधुर आवाज के धनी प्रह्लाद मेहरा को गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली सभी विधाओं में महारथ थी।
ये प्रह्लाद मेहरा के व्यक्तित्व की महानता ही थी कि उन्हें एक किशोर से लेकर बुजुर्ग तक प्रह्लाद दा कहकर पुकारते थे। यही सादगी और सरल व्यवहार प्रह्लाद मेहरा को उत्तराखंड संगीत जगत में सबसे अलग और सबसे खास बनाता था। वो इस नश्वर शरीर से हमारे बीच भले आज न हों लेकिन उनके गीत सदा गूंजते रहेंगे और प्रेरणा भी देंगें।
प्रेस 15 न्यूज की पूरी टीम की तरफ से उत्तराखंड के इस सौम्य, सरल और दिल की गहराइयों तक अपनी सुमधुर आवाज को उतार देने वाले कलाकार को शत शत नमन…आप जहां रहें वहां आपका जलवा सदा कायम रहे। बहुत याद आओगे प्रह्लाद दा…ॐ शांति