देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी की आज पुण्यतिथि है।
मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के आह्वान पर विभिन्न संगठनों और सामूहिक कार्यकर्ताओं ने बाबा मोहन उत्तराखंडी जी के शहादत दिवस को संकल्प दिवस के तौर पर मनाया।
देहरादून में संघर्ष समिति के आह्वान को पहाड़ी स्वाभिमान सेना ने समर्थन दिया। कचहरी स्थित शहीद स्मारक में राज्य आंदोलनकारी और राजधानी गैरसैंण के लिए शहादत देने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए उनके अधूरे सपने पहाड़ों की राजधानी गैरसैंण को लेकर संकल्प दोहराया गया।
मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के सह संयोजक लूशुन टोडरिया ने कहा कि बाबा मोहन उत्तराखंडी इस राज्य की महान विभूति हैं। उन्होंने गैरसैंण राजधानी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। उनके शहादत दिवस पर हमें उनके सपनों को पूरा करने का संकल्प लेना है।
उन्होंने कहा कि एक सितंबर को होने वाली मूल निवास स्वाभिमान महारैली बाबा मोहन उत्तराखंडी जी के सपनों की राजधानी गैरसैंण में आयोजित होगी।
पहाड़ी स्वाभिमान सेना के समन्वयक पंकज उनियाल ने कहा है कि बाबा मोहन उत्तराखंडी जी उत्तराखण्ड की जनता के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं । बेनीताल में उनका राजधानी को लेकर अनशन ऐतिहासिक रहा। यह इस राज्य का दुर्भाग्य है कि गैरसैंण को अभी तक कि सरकारों ने स्थायी राजधानी नही बनाया है।
संघर्ष समिति के सचिव प्रांजल नौडियाल ने कहा है कि बाबा मोहन उत्तराखंडी जी को सिर्फ याद करने से उनके सपने पूरे नही होंगे, अब सड़क पर जनता को पूरे जोर से आना होगा तभी हमे राजधानी से लेकर मूल निवास और मजबूत भू कानून का अधिकार मिलेगा।
इस अवसर पर उर्मिला शर्मा, माया डिमरी, कपिल रावत, जबर सिंह रावत पावैल, प्रमोद काला, लक्ष्मण सिंह बिष्ट, मंजीत पंवार, आशीष नौटियाल व ब्रजेश ने बाबा मोहन उत्तराखंडी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।
वहीं, बाबा मोहन उत्तराखंडी जी के 20वें बलिदान दिवस पर कीर्तिनगर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं युवाओं ने उनको श्रद्धांजलि देकर याद किया।
इस मौके पर मूल निवास भू कानून समिति के गढ़वाल संयोजक अरुण नेगी एवं कीर्तिनगर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रमोहन चौहान ने कहा कि उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी गैरसैंण को बनाए जाने के अडिग संकल्प को लेकर बाबा मोहन उत्तराखंडी ने 38 दिनों के भीषण आमरण अनशन के बाद अपने प्राणों का बलिदान किया था।
2 जुलाई 2004 को चमोली जनपद के बैनीताल में अपना अनशन शुरु करने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी की मांग को तत्कालीन नारयण दत्त तिवारी सरकार ने नज़रअंदाज़ किया, जिसके कारण लगातार 38 दिन के अमरण अनशन के बाद 9 अगस्त 2004 को बाबा मोहन उत्तराखंडी का राज्य के लिए बलिदान हो गया लेकिन आज तक भी राज्य को अपनी स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई।
सभा में मौजूद लोगों ने यह भी कहा कि बाबा मोहन उत्तराखंडी के बलिदान को उत्तराखंड की सरकारों ने भूला दिया। समय रहते अगर उनकी मांग मान ली जाती तो शायद वो उस अनशन को विवश ना होते।
वक्ताओं ने बाबा मोहन उत्तराखंडी जी के बलिदान के इतिहास को भी स्कूली शिक्षा में शामिल करने का भी विचार रखा और कहा की उत्तराखंड की आने वाली पीढ़ी को भी उनके गौरवशाली इतिहास की जानकारी दी जानी चाहिए।
इस मौके पर जसवीर नेगी,संजय भट्ट,दीपक,अनिल तिवारी,कुलबीर,राहुल समेत बड़ी संख्या में स्थानीय जन मौजूद रहे।