(काव्य रचना) जीवन धारा नाव काठ की, मानव रूपी हाड़़मास की…

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जीवन की गति (कविता)

जीवन धारा नाव काठ की

मानव रूपी हाड़़मास की

दो साथी बाधे पाटल पतवार की

पार करनी लहर भविष्य निधि की…

चले सृष्टि रूपी सागर पर सवार

नैना रूपी दर्पण देह दर्शनों से प्यार

चल-चलें नव सुमनों से बगिया खिले

देह बाती दीप से दीप जले

जीवन सागर का करते उद्धार

नीर धारा से सागर बने

नारी रूपी पतवार से जीवन तरे

लहर रूपी जीवन में कोलाहल

चल संगिनी कल-कल करती चल 

वर्ष भर ॠतु परिवर्तन

यूं ही बदलता नारी तन-मन

चलनी प्रबोधनी पथ प्रदर्शन करती चल

तेरी मेरी देह नीर धारा 

सरयू,‌ गंगा, गोमती, सरस्वती बहती धारा

बेटी, बहना, अर्धांगिनी 

चंद्रमा की गति (देह) तन हमारा

वाणी से नित वाणी बदले

नित का संबोधन अपना रूप बदले

चलनी सजनी अपना रूप बदलें

समय परिवर्तन नव कलियां खिले

कर्म करणी बगिया में पुष्प खिले 

पतझड़ की ॠतु परिवर्तन माटी देह माटी में मिले

वरिष्ठ कवि का संक्षिप्त जीवन परिचय

गौरीशंकर वशिष्ठ ‘निर्भीक’

जन्म स्थान – ग्राम अधौड़ा, मल्लीताल, नैनीताल

जन्म तिथि – 23.10.1948

पत्नी – माधवी देवी

दो पुत्रियां (विवाहित), एक पुत्र (विवाहित)

लेखनी रूचि – बचपन से

आगामी लेखन कार्य- ‘ ममत्व ‘ प्रकाशन हेतु तैयार

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं