हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। जोंक थेरेपी के बारे में आप जानते होंगे जिसकी मदद से असाध्य रोगों का इलाज होता है लेकिन आज जो खबर हम आपसे साझा कर रहे हैं वो ऐसे जोंकों के बारे में है जो सरकारी अस्पतालों में पाए जाते हैं और सफेद कोट पहनकर कुमाऊं के गरीब, बेबस लोगों को लूटने का गिरोह लंबे समय से चला रहे हैं। अफसोस कि आज दिन तक जेल के बजाय ऐसे जोंक हल्द्वानी से लेकर पहाड़ों के सरकारी अस्पतालों में चिपके हुए हैं।
यहां साफ करते चलें कि हम उन कर्तव्यनिष्ठ और समर्पित सरकारी डॉक्टर्स की बात नहीं कर रहे हैं जो मरीजों को बेहतर इलाज देने में अपनी जान झोंक देते हैं। लेकिन सच यह भी है कि ऐसे डॉक्टर गिनतीभर के हैं।
डॉक्टर को धरती पर भगवान कहा जाता है, इस बात को बीमारों और उनके तीमारदारों ने बेहतर कौन महसूस कर सकता है। लेकिन एक सच ये भी है कि सफेद कोट पहनने वाले कई डॉक्टर ऐसे भी हैं जो महज कमाई के लिए इस पवित्र पेशे को शर्मसार करने से भी बाज नहीं आते।
ऐसे डॉक्टरों की भरमार सरकारी और प्राइवेट दोनों सेक्टर्स में है। ऐसे ही मामले बीते रोज सामने आए जिन्होंने डॉक्टर की पवित्र पेशे में छुपे शैतानों को पोल खोल कर रख दी।
शैतान इसलिए क्योंकि जहां भीमताल के ओखलढूंगा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डॉक्टर अस्पताल में महीने में सिर्फ दो दिन आते थे और वार्ड बॉय से अपनी हाजिरी पूरे 30 दिन की लगवाते थे। यानी पहाड़ के बेबस मरीजों को देखे बिना ही डॉक्टर हजारों रुपए की सरकारी तनख्वाह ठिकाने लगा रहे थे। जिसके बाद पहाड़ के लोग हल्द्वानी में जान बचाने के लिए दौड़ लगाते थे। और हल्द्वानी में सरकारी अस्पतालों में सेवाएं दे भले डॉक्टर मिले तो ठीक वरना लुटना तय है।
अब सिलसिलेवार डॉक्टरों के उस काले चेहरे और करतूत को भी जानिए। भीमताल के ओखलढूंगा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और कुमाऊं के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सुशीला तिवारी में तैनात डॉक्टरों का यह खेल यह बताने के लिए काफी है कि उत्तराखंड के दूरस्थ गांव और शहर में कैसे मरीज भगवान भरोसे हैं।
कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत शुक्रवार को हल्द्वानी हैडाखान मार्ग पर स्वास्थ्य केंद्र ओखलढूंगा पहुंचे तो हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई। यहां आयुक्त ने हाजिरी और ओपीड़ी रजिस्टर चेक किया। ओपीडी रजिस्टर में पाया गया कि डॉक्टर जुलाई महीने में सिर्फ दो दिन आकर पूरे महीने अनुपस्थित रहे, जबकि डॉक्टर की पूरे माह की उपस्थिति हाजिरी रजिस्टर में लगी हुई थी।
जानकारी लेने पर फार्मासिस्ट जगमोहन उप्रेती ने बताया कि चिकित्सक की हाजिरी वार्ड बॉय द्वारा लगाई जा रही थी, जिसका तत्काल संज्ञान लेते हुए कुमाऊं कमिश्नर ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी, एमओआईसी भीमताल सहित अन्य अधिकारियों को शनिवार दोपहर तीन बजे कैंप कार्यालय हल्द्वानी में तलब किया है।
वहीं, दूसरे मामले में कुमाऊं के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सुशीला तिवारी में तैनात डॉक्टर कमीशन का खेल खेलकर बेबस मरीजों की जेब पर डाका डालने में जुटे हुए थे। शुक्रवार को मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और सुरक्षा गार्डों ने ऐसे दो मामले पकड़े।
यहां डॉक्टरों की ओर से लिखी जाने वाली जांचों के सैंपल प्राइवेट डायग्नोसिस सेंटरों के कर्मचारी खुद अस्पताल में आकर ले जा रहे थे। मामला पकड़ में आने के बाद मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी ने मौके पर डायग्नोसिस सेंटरों के प्रबंधकों को बुलाया गया जिन्हें माफी मांगने पर सख्त हिदायत देकर छोड़ दिया गया।
दरअसल सुशीला तिवारी अस्पताल के कुछ डॉक्टरों का पेट सरकारी तनख्वाह से नहीं भर रहा है। इन डॉक्टरों ने अस्पताल में इलाज कराने के लिए आने वाले गरीब बेबस लोगों को इस काम के लिए चुना है।
सुशीला तिवारी अस्पताल के इन्हीं लुटेरे डॉक्टरों की शह के चलते हल्द्वानी के कुछ निजी डायग्नोसिस सेंटरों के संचालक बेखौफ होकर अस्पताल में आकर मरीजों को सैंपल ले रहे हैं। इतना ही नहीं अस्पताल में कुछ डॉक्टर ओपीडी के समय ही निजी डायग्नोसिस सेंटरों के पर्चे भी अपनी टेबल में रखे रहते हैं और बेबस मरीजों को जांच के नाम पर निजी लैब भेज देते हैं।
शुक्रवार सुबह प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी जब अस्पताल की व्यवस्थाओं की जांच को निकले थे तब उनकी नजर एक डॉक्टर के कक्ष के बाहर एक युवक पर पड़ी जो मरीज का सैंपल ले रहा था। अचानक प्राचार्य को वहां देखकर युवक वहां से खिसकने की तैयारी करने लगा।
जब प्राचार्य ने सख्ती से उसे रोककर पूछा तो उसने बताया कि वह निजी लैब का कर्मचारी है। उसी दौरान अस्पताल के सुरक्षा गार्ड ने भी एक अन्य व्यक्ति को सैंपल लेते देख लिया और पकड़ लिया। जिसके बाद दोनों से पूछताछ की गई।
प्राचार्य ने पुलिस की मौजूदगी में डायग्नोसिस सेंटरों के प्रबंधकों को बुलाकर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी। अपनी गर्दन फंसता देख डायग्नोसिस सेंटरों के प्रबंधक प्राचार्य के सामने गिड़गिड़ाने लगे। और भविष्य में दोबारा ऐसा नहीं करने का भरोसा दिया। अब पैसे के भूखे इन डॉक्टरों और डायग्नोसिस सेंटरों की लूट से बेबस मरीज कब तक बच पाते हैं, भगवान ही जानें।
राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी के अनुसार, सरकारी अस्पताल में आकर मरीज का सैंपल ले जाकर निजी लैब में जांच कराना बेहद गंभीर मामला है। ऐसे लोगों पर नजर रखने के लिए सुरक्षा गार्डों को हिदायत दी गई है। आगे से ऐसे मामले आने पर कॉलेज की ओर से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
हम तो यही उम्मीद करते हैं कि राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी की मंशा और नियत दोनों सफल हो जाए और कुमाऊं का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल डॉक्टर रूपी जोकों से सदा सदा के लिए मुक्त हो जाए जिससे गरीब और बेबस मरीजों का दुख कुछ कम हो सके।