
नैनीताल, प्रेस 15 न्यूज। नैनीताल में “ढोंग” वाले सिस्टम की वजह से विश्व विख्यात नैनी झील साल दर साल दम तोड़ रही है। इस वीवीआईपी जिले और वीवीआईपी शहर में हर कोई काबिज होना चाहता है लेकिन यहां की धरोहरों को बचाने से किसी का वास्ता नहीं। बैठकों की खानापूर्ति से तंत्र चलाने वालों से उम्मीद भी कैसी।
नैनी झील में हर बरसात टनों कूड़ा समा जाता है, जो इसकी जिंदगी को धीरे धीरे खत्म कर रहा है। कूड़े से झील प्रदूषित भी हो रही है और इसकी गहराई भी लगातार कम हो रही है। वर्षों बाद इस वर्ष 5 दिन मलबा निकालने की मुहिम चली, लेकिन जैनरेटर खराब होने से ज्यादा मलबा नहीं निकल सका।

नैनीताल की विश्व विख्यात नैनीझील में इसके चारों तरफ बने 62 नालों और 10 उप नालों से कूड़ा और मलबा जाता है। ब्रिटिश काल में इसे रोकने के लिए नालों में सीढ़ियां और पिट(गड्ढे)बने थे, जिसमें कूड़ा और मलबा (डेबरी) रुक जाता था।
इसे, नगर पालिका और नालों की देखरेख करने वाली लोक निर्माण विभाग/सिंचाई विभाग अपनी ‘गैंग’ से साफ करा देते थे। समय के साथ इन सीढ़ियों और गड्ढों को पाट दिया गया। अब कूड़ा सीधे झील में जाने लगा, हालांकि कुछ नालों में जालियां लगाकर कूड़े को रोकने का प्रयास किया गया, लेकिन समय समय पर सफाई नहीं होने से जालियां बन्द हो गई और बेशर्म कूड़ा जाली नांगकर झील में पहुँच गया।
अक्सर नगर पालिका कर्मचारी झील से भी कूड़ा निकालते दिख जाते हैं, हालांकि भारी कूड़ा और मलबा तो झील में समा गया होता है।
हर वर्ष झील से मलबा निकालने की आवाज उठती हैं, तो सात आठ वर्षों बाद चार पांच दिन मलबा निकालने का ‘ढोंग’ चलाकर खानापूर्ति की जाती है। नैनीताल के पश्चिमी छोर पर बसी बड़ी आबादी के बीच से गुजरते लगभग 23 नालों से मुख्यतः यह कूड़ा और मलुवा झील तक पहुंचता है।
सूत्रों ने बताया कि वर्षों पहले हुई एक सर्वे में खुलासा हुआ था कि झील की तलहटी में लगभग 16 फीट की गाध जमा हो गई है जिसने उस हिस्से को डेड(मृत)कर दिया है। सोमवार सवेरे की बरसात में भी सड़कों से नालियों और वहां से कूड़ा और मलबा सीधे झील में जाता नजर आया।
(नैनीताल से वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ✍️)
