12 साल बाद प्रयागराज में होने जा रहा महाकुंभ बेहद खास, तैयारियों में जुटे श्री महंत कालूगिरी महाराज

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। साल 2013 के बाद अब 12 साल बाद 2025 में अटूट आस्था का केंद्र महाकुंभ का आयोजन तीर्थराज प्रयागराज (इलाहाबाद) में होने जा रहा है।

धार्मिक मान्यता है कि इस मेले में पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साल 2025 में महाकुंभ मेला का आयोजन को लेकर योगी सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है ताकि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो।

अलख नाथ मंदिर एवं श्री कालूसिद्ध मंदिर धमार्थ समिति के अध्यक्ष एवं मठाधीश और श्री तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा पंचायती दसनाम नागा संयासी, कपिलधारा वाराणसी के सचिव श्री महंत कालूगिरी महाराज बताते हैं कि प्रयागराज में महाकुंभ तभी लगता है, जब गुरु बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं। इसी के कारण 12 साल के बाद ही प्रयागराज में महाकुंभ में आयोजन किया जाता है। इस बारे में शास्त्रों में भी उल्लेख किया गया है।

हिंदू धर्म में महाकुंभ का विशेष महत्व है। साल 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ लगने वाला है, जो पूरे 12 सालों के बाद लगने वाला है। ऐसे में देश के कोने-कोने से साधु-संतों के साथ-साथ श्रद्धालु पहुंचते हैं।

नए साल में महाकुंभ 13 जनवरी से आरंभ हो रहा है, जो 26 फरवरी को समाप्त हो रहा है। पूरे 45 दिनों तक चलने वाले इस महाकुंभ में ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति में काफी बदलाव देखने को मिलने वाला है, जिससे महाकुंभ में स्नान करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति हो सकती है।

साल 2025 में महाकुंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन से आरंभ होगा, जो महाशिवरात्रि यानी 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा।

श्री अलख नाथ मंदिर एवं श्री कालूसिद्ध मंदिर धमार्थ समिति के अध्यक्ष एवं मठाधीश और श्री तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा पंचायती दसनाम नागा संयासी, कपिलधारा वाराणसी के सचिव श्री महंत कालूगिरी महाराज ने विस्तार से महाकुंभ के बारे में जानकारी दी।

कुंभ की उत्पत्ति विषयक पौराणिक कथा

श्री महंत कालूगिरी महाराज ने बताया कि कुंभ पर्व की उत्पत्ति के सम्बन्ध में स्कन्द पुराण में वर्णन हैं। देवों और दानवों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मन्धन किया। अमृत कुंभ हाथों में लिए धन्वन्तरि भगवान समुद्र से हाथ में अमृत कलश लिए हुए प्रकट हुए। उन्होंने वह अमृत कुंम्भ देवताओं को समर्पित किया।

देवता और दानव चाहते थे कि वे अमृत पीकर अमर और अजेय हो जायें। दोनों में अमृत के लिए विवाद होने लगा। मोहिनी रुपधारी भगवान विष्णु ने मध्यस्थता कर अमृत कुंम्भ इन्द्र के पुत्र जयन्त को सौंप दिया। उनकी रक्षा का भार सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति और शनि को दिया गया।

देवताओं का संकेत पाकर जयन्त कलश लेकर भागा। दैत्यों ने उनका पीछा किया। हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर (नासिक) इन चार स्थानों पर अमृत कलश की बुन्दे गिरने से वहाँ कुंम्भ पर्व माना गया। जिस समय जिस योग में अमृत कुंम्भ इन चारों स्थानों पर रखा गया था, उसी योग में वहीं कुंम्भ पर्व माने गये। यह कुंम्भ पर्व बारह वर्ष पर पड़ता है।

प्रयाग कुंम्भ स्नान – महात्म्य

प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत् फलम् । आश्वमेदसहखेण तत्फलं लभते भुवि ।।

श्री महंत कालूगिरी महाराज ने बताया कि माघमास में तीर्थराज प्रयाग त्रिवेणी में तीन बार मकर सन्क्रान्ति, मौनी अमावस्या तथा बसन्त पन्चमी के स्नान का जो फल होता है वह हजारों अश्वमेध यज्ञों के करने से भी नहीं होता है।

त्रिवेणी क्षेत्र में श्री आनन्द अखाड़ा पंचायती प्रयाग द्वारा यज्ञ अनुष्ठान होता है। महामण्डलेश्वरों, महन्तों, सन्तों और विद्वानों के धार्मिक प्रवचन होंगे। माघ मास तक क्षेत्र में साधू, महात्मा तथा सन्त एवं महन्तगण कल्पवास करेंगे। अखाड़ा की ओर से अन्नक्षेत्र खुला रहेगा। जिसमें साधु, सन्तों, महात्माओं और भक्तों के भोजन की व्यवस्था रहेगी। अतः धर्मानुरागी सज्जनों को ऐसे शुभ अवसर पर तीर्थराज प्रयाग में पधारकर कुम्भ पर्व के उक्त स्नान पर्वो में त्रिवेणी में स्नान करें एवं साधु, सन्तों महात्माओं के दर्शन का लाभ अवश्य उठाएं।

त्रिवेणी माधवं सोमं भारद्वाजं च वासुकिम्। वन्दे अक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम् ।।

महाकुम्भ पर्व, विक्रम संवत् 2081, शाके 1946, 2024- 25

धर्मध्वाजारोहण
सोमवार, 30/12/2024
समयः प्रातः 10 बजे

प्रथम राजसी स्नान
मंकर संक्रान्ती मंगलवार, 14/01/2025

छावनी प्रवेश (शोभायात्रा)
सोमवार, 06/01/2025
समयः प्रातः 9.30 से 10.30 बजे के बीच

द्वितीय राजसी स्नान
मुख्य स्नान, मौनी अमावस्या मंगलवार, 29/01/2025

तृतीय राजसी स्नान
बसंत पंचमी
सोमवार, 03/02/2025

ये हैं शाही स्नान की तिथियां

1. 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा के दिन पहला शाही स्नान होगा।
2. 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति के दिन दूसरा शाही स्नान होगा।
3. 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या के दिन तीसरा शाही स्नान होगा।
4. 3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी के दिन चौथा शाही स्नान होगा।
5. 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा के दिन पांचवा शाही स्नान होगा।
6. 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान होगा।

शाही स्नान का ये है महत्व

प्रयागराज के संगम स्थल गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है। यही वजह है कि इस स्थान का विशेष धार्मिक महत्व है।इसी संगम स्थल पर शाही स्नान होता है। मान्यता है कि कुंभ मेले में स्नान करने व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाकुंभ मेले के आयोजन को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तब अमृत निकला था। इस अमृत को पाने के लिए देवता और असुरों में युद्ध हुआ था, जो 12 दिव्य दिनों तक चला था। ऐसा माना जाता है कि ये 12 दिव्य दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर हैं इसलिए 12 सालों के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

दूसरी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने असुरों से अमृत कलश को बचाने के लिए अपने वाहन गरुड़ को दे दिया था। जब दानवों ने गरुड़ से इस अमृत कलश को छिनने की कोशिश की तो अमृत के घड़े से छींटे उड़कर 12 स्थानों पर गिरे थे। इनमें से चार स्थान पृथ्वी पर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। आठ स्थान देव लोक में हैं। इसी के चलते इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेला लगता है।

ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी के इन चारों जगहों पर अमृत की बूंदे गिरी थीं, तो वहां की नदियां अमृत में बदल गई थीं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक बृहस्पति ग्रह हर 12 सालों में 12 राशियों का चक्कर पूरा करते हैं. ऐसे में कुंभ मेले का आयोजन उसी समय होता है जब बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होते हैं। महाकुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख नदियों गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा के तट पर आयोजित होता है।

अलख नाथ मंदिर एवं श्री कालूसिद्ध मंदिर धमार्थ समिति के अध्यक्ष एवं मठाधीश और श्री तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा पंचायती दसनाम नागा संयासी, कपिलधारा वाराणसी के सचिव श्री महंत कालूगिरी महाराज ने सभी धर्मप्रेमी जनों से इस धार्मिक आयोजन में शामिल होने की अपील की है।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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