संजय पाठक, प्रेस 15 न्यूज, हल्द्वानी। भले आप किसी भी क्षेत्र में हों, ये सच है कि आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा मन के भीतर जन्म लेती ही है। राजनीति का क्षेत्र भी इस महत्वाकांक्षा से अछूता नहीं है। यहां नेताजी का सपना ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत, फिर नगर निकाय, विधानसभा चुनाव और आखिर में सांसद बनने का होता ही है। मंत्री या प्रधानमंत्री बन गए तो फिर सोने पे सुहागा।
इस राजनीतिक सफर में किसी दल की राजनीतिक विचारधारा ने नेताजी का साथ दिया तो ठीक वरना अपना सियासी कद भांपकर पाला बदलने वालों की आज के दौर में कमी नहीं है। ऐसा नहीं है कि आज से पहले पाला बदलने वाले नेता नहीं थे लेकिन 2014 के बाद जैसा पतझड़ आया वैसा देश और प्रदेश की राजनीति में पहले नहीं देखा गया।
कहते हैं मुसीबत और कठिन वक्त में हीं अपनों की पहचान होती है। अब कांग्रेस पार्टी को ही ले लीजिए। इस वक्त देशभर में कांग्रेस पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। लोकसभा चुनाव सिर पर है। ऐसे में पार्टी के साथ मजबूती से खड़े होने के बजाय कांग्रेस के कद्दावर नेता ही धुर विरोधी पार्टी भाजपा का दामन थाम रहे हैं। इन दिनों उत्तराखंड इसका जीता जागता उदाहरण बना हुआ है।
गढ़वाल में कांग्रेस के दिग्गज मालचंद, विजयपाल सजवाण, धन सिंह नेगी, अनुकृति गुंसाई, राजेंद्र सिंह भंडारी के बाद अब कुमाऊं में कांग्रेस को डूबता जहाज समझकर दूर होने वालों का सिलसिला शुरू हो चुका है।
कुछ दिन पहले जैसे ही नैनीताल- उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से प्रत्याशी के तौर पर प्रकाश जोशी का नाम फाइनल हुआ तो हल्द्वानी निवासी प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया ने सबसे पहले पार्टी से नाता तोड़ा। ये वही दीपक बल्यूटिया हैं जो कुछ दिन पहले तक 35 साल की अपनी कांग्रेस की राजनीति और विकास पुरुष पंडित नारायण दत्त तिवारी के भतीजे होने की बात को अपना सबसे बड़ा सियासी दांव जता रहे थे।
आज 31 मार्च को कालाढूंगी विधानसभा निवासी प्रदेश महासचिव महेश शर्मा ने ऐन चुनाव के वक्त पर कांग्रेस से दूर होकर भाजपा का दामन थाम लिया।
ये वही महेश शर्मा हैं जो चार दिन पहले 27 मार्च को कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश जोशी के नामांकन के दौरान रुद्रपुर पहुंचे थे। ऐसे में आप समझ सकते हैं राजनीति कैसा दलदल है यहां जो आपके साथ खड़े होने का दिखावा कर रहा होता है, असल में वही आपके साथ नहीं होता।
सोच कर देखिए अगर इस वक्त कांग्रेस पार्टी न होकर कोई व्यक्ति होती तो उस पर क्या बीतती? कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश जोशी रात दिन एक करके लोगों के बीच जाकर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी की कसमें खाने वाले ये नेता उनका साथ छोड़ रहे हैं। ऐसे में पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता और सत्ता में बदलाव की आस पाल रही जनता के मन का हाल कैसा होगा, आप समझ सकते हैं।
कालाढूंगी क्षेत्र में पकड़ रखने का दावा करने वाले महेश शर्मा 2012 और 2017 में भी कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों ही चुनावों में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश जोशी की जीत के राह में रोड़ा अटकाया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पार्टी ने कद्दावर कांग्रेस नेता हरीश रावत की पैरवी की बाद महेश शर्मा को आखिरी वक्त में टिकट दिया लेकिन तीसरी बार भी महेश शर्मा जीत नहीं सके।
कालाढूंगी विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। इस विधानसभा सीट के लिए पहली बार 2012 के चुनाव में मतदान हुआ था।
2017 के चुनाव बाद पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्व. इंदिरा हृदयेश के प्रयासों से महेश शर्मा पार्टी में शामिल हुए थे। अब एक बार फिर महेश शर्मा कांग्रेस से दूर होकर भाजपा में शामिल हो गए।
देहरादून में भाजपा ज्वाइन करने के दौरान आज महेश शर्मा जिन नेताओं के साथ कतार में बैठे थे, उनमें भाजपा के कद्दावर नेता बंशीधर भगत भी शामिल थे। ये वही बंशीधर भगत हैं जिन्हें पिछले कई सालों से महेश शर्मा पानी पी- पीकर कोसते रहे। सिर्फ बंशीधर भगत ही क्यों कुछ दिन पहले तक यही महेश शर्मा पूरी की पूरी भाजपा को जनविरोधी बताते नहीं थकते थे।
चाहे दीपक बल्यूटिया हों या फिर महेश शर्मा दोनों ने ही कांग्रेस का साथ उस वक्त छोड़ा, जिस वक्त पार्टी को इन नेताओं को सबसे ज्यादा जरूरत थी। लेकिन पार्टी हित को ताक पर रखकर दोनों ही नेताओं ने खुद की महत्वाकांक्षा को तवज्जो दी।
अब बुरे दौर में कांग्रेस से किनारा करने का यह फैसला दीपक बल्यूटिया और महेश शर्मा को कितना सियासी फायदा पहुंचाता है, यह तो वक्त बताएगा लेकिन इन सबके बीच भस्मासुर की कहानी याद आ गई।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भस्मासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। जिसकी चाहत संपूर्ण विश्व पर राज करने की थी। अपने इसी प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए भस्मासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। अंत में भोलेनाथ भस्मासुर की बरसों की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देते हैं। तब भस्मासुर भगवान शिव से अमर होने का वरदान मांगता है।
अमर होने का वरदान सृष्टि विरुद्ध विधान होने के कारण भगवान शिव उसकी यह मांग नकार देते हैं। तब भस्मासुर अपनी मांग बदल कर यह वरदान मांगता है कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए। शिवजी उसे यह वरदान दे देते हैं। तब भस्मासुर शिवजी को ही भस्म करने उसके पीछे दौड़ पड़ता है।
जैसे-तैसे अपनी जान बचा कर भोलेनाथ, भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उन्हे पूरी बात बताते हैं। भगवान विष्णु फिर भस्मासुर का अंत करने के लिए मोहिनी रूप रचते हैं।
मोहनी की सुंदरता से मुग्ध होकर भस्मासुर मोहिनी से विवाह का प्रस्ताव रख देता है। मोहिनी जवाब में कहती है कि वह सिर्फ उसी युवक से विवाह करेगी जो उसकी तरह नृत्य में प्रवीण हो। अब भस्मासुर को नृत्य आता नहीं था तो उसने इस कार्य में मोहिनी से मदद मांगी। नृत्य सिखाते-सिखाते मोहिनी ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा और उसकी देखा देखी भस्मासुर भी शिव का वरदान भूल कर अपना ही हाथ अपने सिर पर रख बैठा और खुद ही भस्म हो गया। इस तरह विष्णु भगवान की सहायता से भोलेनाथ की विकट समस्या का हल हो गया।
अब इस पौराणिक कहानी और इसके किरदारों को तो आप समझ गए। उत्तराखंड कांग्रेस भी इन दिनों कुछ ऐसे ही भष्मासुरों के दौर से गुजर रही है। जिस कांग्रेस ने इन नेताओं को इतने लंबे वक्त तक समाज में एक पहचान दी, जिस कांग्रेस के नाम का सहारा लेकर इन नेताओं ने अपना करोड़ों- अरबों का कारोबार खड़ा किया, आज अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते ये नेता कांग्रेस को ही भस्म करने चले हैं।
मोहनी रूप में भाजपा भले ही कांग्रेस को छोड़ने वाले इन नेताओं को मोहित करने में सफल हो गई लेकिन ये तय है कि यह मोह फांस इनके राजनीतिक करियर को बीच मंझदार में छोड़कर इन्हें ‘कमल’ के दलदल से बाहर नहीं आने देगा। सोचकर देखिए कि मोहनी के कहने पर कांग्रेस से अलग हुआ इन नेताओं का हाथ जब इनके खुद के सिर पर पड़ेगा, तब क्या होगा…