हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है…कुछ इन्हीं इरादों की बनी हैं रामगढ़ क्षेत्र के नथुवाखान निवासी रमा बिष्ट।
एक महिला को परिवार का साथ मिले तो वो कैसे सफलता के आयाम स्थापित करती है ये कोई रमा से सीखे। गुरुवार को विकास भवन में रमा बिष्ट को आयुक्त दीपक रावत ने सम्मानित किया।
आप कहेंगे आखिर हम रामगढ़ की रमा बिष्ट की इतनी तारीफ क्यों कर रहे हैं। तो आपको बता दें कि रमा बिष्ट पहाड़ की उन प्रेरणादाई महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत और लगन से न केवल खुद को सशक्त बनाया बल्कि क्षेत्र की दर्जनों महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा योगदान दिया है।
Apple zone के माध्यम से रमा आज स्थानीय फल और फूलों द्वारा निर्मित फ्रूट और हर्बल उत्पादों को स्थानीय महिलाओं के सहयोग से तैयार कर रही हैं। आज रमा के उत्पादों की महक और स्वाद उत्तराखंड ही नहीं दिल्ली, मुंबई, गुजरात और दूसरे राज्यों तक पहुंच गया है। आप रमा बिष्ट से उनके उत्पादों की जानकारी के लिए 9012721964 पर संपर्क कर सकते हैं।
कुल मिलाकर जिले के कृषि, बागवानी जैसे विभागों के अलावा रमा अपने दम पर उत्तराखंड सरकार के विजन को वर्षों से साकार कर रही हैं लेकिन अफसोस आज दिन तक उत्तराखंड की सरकार ने इस मजबूत इरादों वाली मातृशक्ति को प्रदेश स्तर पर सम्मानित करना भी जरूरी नहीं समझा।
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि रमा सिर्फ अपनी मेहनत पर भरोसा रखती हैं। राजनीति और चापलूसी उनके संस्कारों में नहीं। रमा कभी मीडिया को मैनेज नहीं कर पाई। ऐसे में उनके पास अपने कामों को गिनाने के लिए न तो अखबारों की कटिंग है और न ही सेटिंग…
यही वजह है कि आज दिन तक पहाड़ की यह कर्मठ मातृशक्ति तीलू रौतेली जैसे पुरस्कार से वंचित है।वीरबाला तीलू रौतेली के नाम पर साल 2006 में राज्य सरकार ने ‘तीलू रौतेली राज्य स्त्री शक्ति’ पुरस्कार की शुरुआत की थी। तब से यह सम्मान हर साल महिलाओं को दिया जाता है। अफसोस आज दिन तक जमीन पर काम करने वाली रमा बिष्ट जैसी मातृशक्ति इस सम्मान से दूर हैं। ये हाल तब है जब उत्तराखंड में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्या हैं।
जिस महिला को प्रदेश सरकार को दूसरी महिलाओं के लिए आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाना चाहिए, उसकी प्रतिभा रामगढ़ क्षेत्र तक सीमित है।
बताते चलें कि रामगढ़ क्षेत्र की जिन महिलाओं की जिंदगी कभी अपने घर और खेत तक सीमित थी, आज रमा की वजह से वो भी आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार की ताकत बनी हैं।
कुल मिलाकर एक अकेली रमा ने आज क्षेत्र के दर्जनों परिवारों में आत्मनिर्भर मुस्कान बिखेरी है। साथ हीं पहाड़ से पलायन करने वालों को अपनी माटी में रिवर्स पलायन के लिए भी मजबूर किया है। रमा के इस सफर का करीब एक दशक से ज्यादा का समय बीत गया है।
सोशल मीडिया के इस दौर में रमा के उत्पादों तक देश के कोने कोने से लोग पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं आज कृषि बागवानी से लेकर विकास भवन के अधिकारी, हर कोई रमा के कार्यों का श्रेय लेने से नहीं चूकता। जिले में सरकारी स्तर पर रमा कई बार सम्मानित हो चुकी हैं लेकिन प्रदेश स्तर पर अब भी रमा को सम्मानित करने में सरकार पीछे है।