हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। इसे कहते हैं मांगो कुछ और मिले कुछ…राज्य की जनता खासतौर पर पहाड़ी जिलों के लोग पिछले 24 सालों से अपने क्षेत्रों में जंगली जानवरों से मुक्ति, सड़क पर घूमते गऊवंश, एक अदद सड़क, डॉक्टर दवाई वाले अस्पताल, मोबाइल टावर, रोजगार, नशामुक्ति, शिक्षक वाले स्कूल, पेयजल और अन्य मुद्दों की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज दिन तक सरकारों ने गंभीरता से नहीं लिया।
या यूं कहें, जनता को उसके हाल में छोड़ने पर मजबूर किया लेकिन आज उत्तराखंड के जोशीमठ और कोश्याकुटोली तहसील के नाम बदलकर सरकार ऐसे प्रचारित कर रही है मानो यह बहुत बड़ी उपलब्धि हो। इसे महान उपलब्धि बताकर टीवी अखबारों में प्रचारित प्रसारित भी किया जाएगा।
इन दोनों जगहों में रहने वाले लोगों की क्या तकलीफें हैं? यहां के लोग किन परिस्थितियों में अपना गुजर बसर कर रहे हैं? इसे जानना सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।
जिस ऐतिहासिक और पौराणिक जोशीमठ के लोग लंबे समय विनाशकारी जल विद्युत परियोजनाओं और फोरलेन के नाम पर डायनामाइट से पहाड़ों को चीरने का विरोध कर रहे हैं, वो आवाज हुक्मरानों के कानों में नहीं पड़ी और जोशीमठ का नाम बदलने को सरकार ने अपना लक्ष्य बना लिया।
कोई पूछे तो जोशीमठ के उन लोगों से कि क्यों अपने पुश्तैनी घर से दूर देहरादून और दूसरी जगहों में रहने को मजबूर हैं। लेकिन सरकार है कि जनभावनाओं को दरकिनार कर जोशीमठ का नाम बदलने को ही बड़ी उपलब्धि और जनभावनाओं का सम्मान जता रही है।
चमोली की जोशीमठ तहसील का नाम बदलकर “ज्योतिर्मठ” और नैनीताल की तहसील कोश्याकुटोली का नाम परिवर्तन कर परगना “श्री कैंची धाम” करने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार से मंजूरी मिल गई है। ठीक वैसे ही जैसे 2007 में उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बीते साल जोशीमठ का नाम बदलकर ज्योतिर्मठ करने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुरूप प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार को भेज दिया गया था। एक साल बाद केंद्र ने ज्योतिर्मठ तहसील के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
वहीं, मुख्यमंत्री धामी ने बीते वर्ष ही कैंची धाम मंदिर के स्थापना दिवस (15 जून) समारोह के मौके पर कोश्याकुटोली तहसील को कैंची धाम के नाम पर करने की घोषणा की थी। सरकार की ओर से भेजे गए तहसील नाम परिवर्तन के इस प्रस्ताव को भारत सरकार से मंजूरी मिल गई है।
कैंची धाम में श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां की सड़कें और लोग रोजाना जाम से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार के विकास वाले प्लान मीटिंगों और फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पा रहे।
अब देखिए न जब दो जगहों के नाम बदलने में ही साल भर लग जा रहा है तो विकास के जमीनी कार्यों को होने में कितना वक्त लगेगा, यह आप यानी जनता खुद अनुमान लगा ले।
बाबा नीमकरौली के जिस पावन कैंची धाम को पीएम मोदी ने मानसखण्ड मन्दिर माला मिशन में भी शामिल किया हो, वह आजकल जाम की वजहों से ज्यादा चर्चा में है।
कब तक इस धाम में पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी, यह भविष्य के गर्त में है। यह सवाल इसलिए भी क्योंकि जाम और दूसरी अव्यवस्थाओं में फंसा सैलानी उत्तराखंड की बेहतर छवि लेकर वापस अपने घर नहीं जा रहा है। ऐसे में स्थानीय लोगों की परेशानी पूछे कौन?