हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। साल भर से ज्यादा के इंतजार के बाद अब अगले कुछ दिनों बाद शहर की सरकार बनने जा रही है। निकाय चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया सम्पन्न हो गई है। अब दो जनवरी को नाम वापसी के लिए निर्धारित है। उसके बाद ही तें जनवरी को चुनाव चिन्ह दिए जाएंगे और फिर निकाय चुनाव का माहौल तेजी से आगे बढ़ते नजर आएगा।
हल्द्वानी में मेयर बनने के लिए जिन 12 लोगों ने नामांकन कराया है, उनमें से कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें हल्द्वानी की जनता ने किसी भी समाज हित के काम को करते नहीं देखा। यानी सिर्फ और सिर्फ सुर्खियां बटोरने और माहौल बनाने के इरादे से ये चुनावी मैदान में उतरे हैं। उतरें भी क्यों ना, यही तो लोकतंत्र है।
चर्चित मेयर दावेदारों में कांग्रेस के ललित जोशी, भाजपा का गजराज सिंह बिष्ट, उत्तराखंड क्रांति दल के मोहन कांडपाल के साथ साथ सपा से शोएब अहमद का नाम है।
बात अगर ललित जोशी की करें तो वो हल्द्वानी के लोगों के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। राज्य आंदोलन से लेकर जमरानी बांध आंदोलन हो , हर बार उनके जुनून को जनता ने करीब से देखा है।
हल्द्वानी में किसान आंदोलन हो या फिर बेरोजगार युवाओं की लड़ाई या महंगाई, कानून व्यवस्था की बात, हर बार ललित जोशी की सड़क पर उठी दहाड़ शासन- प्रशासन के कानों तक पहुंची। कुल मिलाकर ललित जोशी से हल्द्वानी के 60 वार्डों के वोटर्स अच्छी तरह से वाकिफ हैं।
भाजपा के प्रत्याशी गजराज सिंह बिष्ट भी हल्द्वानी के लोगों के लिए जाने पहचाने नाम हैं। छात्रसंघ चुनाव से लेकर भारतीय जनता पार्टी की विभिन्न जिम्मेदारियों को संभालने वाले गजराज सिंह बिष्ट ने इस चुनाव में खुद को ओबीसी नेता के तौर पर जनता के सामने रखा है।
उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी मोहन कांडपाल भी पहाड़ के जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने के लिए जाने जाते हैं। हल्द्वानी के लोगों ने उन्हें समय समय पर बेरोजगारी, महंगाई जैसे आम आदमी से जुड़े दर्द को बुलंद करते देखा है।
कोहली कॉलोनी कुसुमखेड़ा निवासी पेशे से एडवोकेट मोहन कांडपाल का जनसरोकारों से जुड़ाव का एक पहलू उनकी स्वतंत्र पत्रकारिता के जरिए भी सामने आता है। जन हुंकार डिजिटल और प्रिंट मीडिया के माध्यम से मोहन कांडपाल पत्रकारिता को नए तेवर और कलेवर देने के पथ पर अग्रसर है।
हल्द्वानी का मेयर पद के इरादे से बनभूलपुरा के दो मुस्लिम नेताओं ने भी कदम बढ़ाए हैं। हालाकि इन दोनों नेताओं को बीते कुछ सालों में शहर के लोगों ने कभी भी बनभूलपुरा के मुद्दों पर सड़क पर निकलते या लड़ाई लड़ते नहीं देखा है।
लेकिन इस चुनाव में ये दोनों नेता एकजुट नजर आ रहे हैं। बनभूलपुरा में बीते आठ फरवरी को हुए अराजक उत्पात हो या अतिक्रमण, इन दोनों नेताओं ने हर बार पर्दे के पीछे से ही बेटिंग की है।
ऐसे में हल्द्वानी ही नहीं बनभूलपुरा के लोग भी यही कह रहे हैं कि जो नेता क्षेत्र के मसलों को अपने दफ्तर में बैठकर ही निपटाने में महारथी हों, वो अचानक मेयर बनने और बनाने को कैसे तैयार हो गए? इस जादू का असली जादूगर कौन है?
लोग कह रहे हैं कि पिछले 24 सालों में बनभूलपुरा के लोगों का अपने बीच के किसी नेता पर भरोसा न करना ये साफ दर्शाता है कि यहां के नेताओं की कथनी करनी और नियत में कुछ तो झोल है।
जो बनभूलपुरा के लोगों के असल रहनुमा नहीं बन सके, वो कैसे 60 वार्डों वाले विशाल नगर निगम और यहां के वाशिंदों से न्याय कर पाएंगे? यह भी सवाल है।
चर्चा तो यह भी गर्म है कि अचानक मुस्लिम नेताओं का साथ आना और दावेदारी कहीं भाजपा की बी टीम का हिस्सा या भीतरघात में माहिर किसी कांग्रेसी की कारस्तानी तो नहीं है?
ऐसे में इस बार भी समाजवादी पार्टी से जुड़े शोएब अहमद की दावेदारी कांग्रेस प्रत्याशी की राह मुश्किल करने और भाजपा प्रत्याशी की राह को आसान बनाने के तौर पर भी देखी जा रही है। क्योंकि बीते सालों के यही आंकड़े हैं कि बनभूलपुरा के लोगों के वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस प्रत्याशी को ही मिला है।
ऐसे में अचानक मेयर पद के लिए शोएब अहमद की दावेदारी और उन्हें अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी अब्दुल मतीन सिद्दीकी का साथ मिलना, साफ बात रहा है कि हल्द्वानी मेयर की कुर्सी किसी भी हाल में पाना राजनीतिक हस्तियों के लिए कितना मायने रखता है।
आप भी इस लिस्ट में गौर कीजिए और खुद तय कीजिए इन 12 नामों में किस नाम को आपने हल्द्वानी में सबसे ज्यादा बुलंद होते देखा है।
हालाकि एक नाम तो वो भी आपको मिलेगा जिसने खुद का तो छोड़िए चुनाव परम्परा का भी मजाक बनाने के इरादे से नामांकन कराया है। इस निर्दलीय प्रत्याशी ने अपनी जाति के साथ भी झोल किया है।
इस निर्दलीय प्रत्याशी ने रोजाना की जिंदगी की तरह चुनाव में भी अपनी असल जाति को छुपाते हुए खुद को सामान्य दर्शाकर शहर को भ्रमित किया है। अब आप ऐसे लोगों से क्या ही उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन जैसा हमने पहले भी कहा कि ये लोकतंत्र है यहां सबको आजादी है।
कुछ प्रत्याशियों का कहना है कि वो हल्द्वानी बदलने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरे हैं। लेकिन हकीकत ये है कि कभी भी हल्द्वानी के लोगों ने उन्हें हल्द्वानी की समस्याओं के लिए मुखर होते नहीं देखा। कभी ये चुनाव लड़ने वाले दावेदार जनता की समस्याओं के लिए पुलिस प्रशासन से भिड़ते नजर नहीं आए।
साफ है कि कई प्रत्याशियों के लिए मेयर का चुनाव लड़ना या लड़ाना महज खुद की पहचान को जिंदा रखना है। तो कुछ सुर्खियां पाने का शौक पाले हैं। लेकिन अपनी जमानत जब्त वाली असल हकीकत ये सब जानते हैं।
चर्चा तो यहां तक है कि देखते जाइए नाम वापसी का दिन दो जनवरी निर्धारित है, उसके बाद क्या कुछ होता है। चुनावी इतिहास में नाम वापसी करने वालों को मालामाल होते भी देखा गया है।
अब कुल मिलाकर गेंद आम जनता के पाले में है। 23 जनवरी 2025 को फैसला जनता को ही करना है कि वो किस प्रत्याशी को अपने लिए योग्य समझती है। वो प्रत्याशी जो आने वाले पांच साल तक घर से बाहर निकलने पर उसे ( जनता) सड़क, स्ट्रीट लाइट जैसी सुविधाओं के साथ साथ शहर को विकास के पथ पर अग्रसर कर सके। बाकी खाना कमाना तो जनता को अपनी मेहनत मजदूरी से ही है।