
हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। कोई पूछे कि उत्तराखंड में इन दिनों क्या चल रहा है तो जवाब होगा उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा में हुए पेपर लीक का आक्रोश… उत्तराखंड का शायद ही कोई गांव शहर होगा जहां युवा आक्रोशित नहीं हैं।
राजधानी देहरादून से लेकर हल्द्वानी और पिथौरागढ़ तक युवा सिर्फ और सिर्फ एक मांग पर अडिग हैं कि पेपर लीक प्रकरण की सीबीआई जांच हो और युवाओं के भविष्य पर कुंडली मारकर बैठे नकल माफिया का खात्मा हो।

देहरादून में शुरू हुए आंदोलन के बाद शुक्रवार को हल्द्वानी में लगातार दूसरे दिन भारी विरोध प्रदर्शन हुआ जिसमें युवाओं ने अनिश्चितकालीन धरने की घोषणा कर दी और उत्तराखंड सरकार से सीबीआई जांच और स्नातक-स्तरीय परीक्षा के तत्काल रद्दीकरण की मांग की।
बुद्ध पार्क में उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र कोरंगा का आमरण अनशन दूसरे दिन भी जारी रहा। युवाओं के प्रदर्शन की शुरुआत हनुमान चालीसा के पाठ के साथ हुई। शाम होते होते हल्द्वानी में आंदोलन और तेज हो गया।
दोपहर करीब तीन बजे सैकड़ों युवाओं ने सिटी मजिस्ट्रेट गोपाल सिंह चौहान के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित सैकड़ों ज्ञापनों को प्रधानमंत्री को भिजवाया।
इन सभी ज्ञापनों में प्रदेश की स्नातक स्तरीय परीक्षा में पारदर्शिता और सीबीआई जांच, स्नातक स्तरीय परीक्षा रद्द करने, आयोग को भंग कर उसके पुनर्गठन के लिए राज्य सरकार को निर्देशित करने की मांग प्रमुख थी।
वही गुस्से से भरे छात्रों ने भ्रष्ट तंत्र और लीक होती परीक्षाओं का अनोखा इलाज खोज निकाला। इस दौरान उन्होंने सरकार, आयोग और जिम्मेदार तंत्र को एम-सील (M-Seal) का पैकेट भेजकर लीक तंत्र पर सील लगाने की मांग की।

यह कदम युवाओं द्वारा किए गए व्यंग्यपूर्ण विरोध का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य यह दर्शाना था कि जब तक भौतिक रूप में लीकेज बंद नहीं होता, तब तक शब्दों में बंद होना मायने नहीं रखता है। परीक्षार्थी रहे धीरज कुमार ने कहा कि ‘एम-सील’ सरकार और आयोग की कार्यप्रणाली पर व्यंग्यात्मक प्रकाश डालने का एक तरीका है, जिससे यह पूछा जा रहा है कि लीकेज का किस स्तर तक सामान्यीकरण हो चुका है।
आमरण अनशन पर बैठे उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के उपाध्यक्ष भूपेंद्र कोरंगा का कहना था कि जब सरकार और आयोग “लीकेज” रोकने में नाकाम हैं, तो क्यों न उन्हें एम-सील भेजकर यह याद दिला दिया जाए कि लीक बंद करना कैसे होता है।
उत्तराखंड युवा एकता मंच के संयोजक पीयूष जोशी ने तंज कसते हुए कहा कि जब आयोग के कैमरे, फाइलें और सवाल पत्र हर बार लीक हो जाते हैं, तो हमें लगा अब एम-सील ही आखिरी उपाय है। सरकार चाहे तो इसे तिजोरी, परीक्षा हॉल और यहां तक कि अपने वादों पर भी चिपका सकती है।
राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी ने कहा कि जब-जब भर्ती परीक्षाएं होती हैं, तब-तब “लीकेज” की खबरें अखबारों में सुर्खियां बन जाती हैं। ऐसे में अब आयोग के भवन पर एम-सील लगाकर ही असली ताले का काम किया जा सकता है।
युवा पार्षद शैलेंद्र दानू का कहना था कि यदि सरकार सच में गंभीर है तो वह केवल धरनों पर पुलिस भेजने के बजाय पेपर लीक कराने वाले माफियाओं पर शिकंजा कसे।
अधिवक्ता भानू कबडाल ने कटाक्ष किया कि अगर सरकार बेरोजगार युवाओं का भविष्य नहीं बचा सकती तो कम से कम एम-सील से सवाल पत्र तो बचा ले।
इस दौरान धरना स्थल “पूरा सिस्टम वीक है तभी तो पेपर लीक है”, “पेपर हो या पाइपलाइन, सब जगह लीकेज! सरकार ले लो एम-सील का पैकेज”, “नौकरी चाहिए पारदर्शी, आयोग को चाहिए एम-सील भारी”, “लीकेज रोकना मुश्किल है सरकार से, अब एम-सील ही सहारा है” जैसे नारों से गूंज उठा।
इस दौरान किसान मंच प्रदेश अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय, छात्रा उपाध्यक्ष ज्योति दानू, खीमेश पनेरु, ममता मेहरा, विशाल सिंह भोजक, प्रियंका भट्ट, गिरीश चंद्र आर्य, आयुषी बिष्ट, कविता दानू, पायल बिष्ट, पूजा बिष्ट, सूरज रावत, नीरज गंगोला, गोकुल मेलकानी समेत सैकड़ों युवा मौजूद रहे।

