हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। पंडित जगदीश चंद्र भट्ट, डॉ. नवीन जोशी, गोपाल दत्त भट्ट, दीपक जोशी (रामदत्त जोशी पंचांग निर्माता), डॉ. मंजू जोशी, गोपाल दत्त त्रिपाठी, डॉ. नवीन बेलवाल, डॉ. राजेश जोशी, मनोज उपाध्याय, आचार्य निर्मल त्रिपाठी… ये नाम कोई आम व्यक्तियों के नहीं हैं बल्कि हल्द्वानी में सनातन शिक्षा के ध्वजवाहक और ज्योतिष के मर्मज्ञ विद्वानों के हैं।
पांच दिन तक मनाए जाने वाले दीपोत्सव का हर दिन विशेष महत्व रखता है। पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दीपावली, तीसरे दिन दीपावली पर्व, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। लेकिन साल 2024 में उत्तराखंड में दीपावली के दिन को लेकर संशय बन गया।
देखें वीडियो : दीपावली कब है बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य आचार्य निर्मल त्रिपाठी
आखिर हमारा समाज जो सोशल मीडिया के दौर वाला बन गया है। सबसे पहले यूपी से छपे अखबार की वो कटिंग जिसमें दीपावली को 31 अक्टूबर के दिन मनाए जाने की बात हेडिंग बनी थी, वह सोशल मीडिया में तैरने लगी। फिर क्या था सोशल मीडिया के दौर में जीने वाले हर उस शख्स ने अपने विचार दे डाले जिसे ज्योतिष विद्या या कहें विज्ञान का “क” भी नहीं पता।
खैर, जब बहस तेज हुई तो हर कोई यही कहता दिखा आखिर इस बार दीपावली कब है? ठीक वैसे ही जैसे कुछ महीने पहले पूछा था होली कब है?
इस बीच बीते रोज जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बयान आया कि जब दिवाली मनानी है तो हमें मध्यरात्रि में भी अमावस्या तिथि चाहिए और प्रदोष काल में भी अमावस्या तिथि चाहिए। तो ऐसी स्थिति में हमें 31 अक्टूबर को मिल रही है। उन्होंने कहा कि रजनी भी अमावस्या से संयुक्त होनी चाहिए। तो दूसरे दिन की जो अमावस्या है, वह प्रदोष काल में तो है, लेकिन वज रजनी (रात) को स्पर्श नहीं कर रही है। तो स्वाभाविक है कि 31 को ही दिवाली मनाई जानी चाहिए।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि उत्तराखंड शासन ने क्या जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के बयान को महत्ता दी? क्योंकि कल तक तो उत्तराखंड शासन ने भी एक नवंबर को ही दीपावली निश्चित की थी।
अगर ऐसा है तो यह भी चौंकाने जैसा है क्योंकि उत्तराखंड के हित में जोशीमठ आपदा से लेकर गौ माता के हाल जैसे कई सुझाव जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती कई बार दे चुके हैं लेकिन उनकी शासन स्तर से कोई प्रभावी सुनवाई हुई हो, यह देखा नहीं गया।
प्रेस 15 न्यूज ने भी दीपावली को लेकर इस संशय को खत्म करने और ज्योतिष विज्ञान की महत्ता को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से हल्द्वानी के जाने माने युवा ज्योतिषाचार्य आचार्य निर्मल त्रिपाठी से बात की। आचार्य निर्मल त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि जिस पथ पर श्रेष्ठ लोग चलें हैं वहीं अनुकरणीय मार्ग है। उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और सालों से विश्वसनीय पंचांग के निर्माता रामदत्त जोशी के अनुसार , दीपावली का पर्व एक नवंबर को मनाना हल्द्वानी और उत्तराखंड के समाज हित में रहेगा।
यही बात सभी ज्योतिषाचार्यों ने एकमत होकर कही थी कि प्रदोष काल में दो दिन अमावस्या होने पर दूसरे दिन दीपावली मनाई जाती है, इसलिए सभी ने सर्वसम्मति से एक नवंबर को दीपावली मनाने का निर्णय लिया था।
हल्द्वानी समेत उत्तराखंड में दीपावली कब है, इसका संशय भले ही हल्द्वानी के जाने माने ज्योतिषियों ने खत्म कर दिया हो लेकिन एक बार फिर उत्तराखंड शासन ने लोगों को असमंजस में डाल दिया है।
दरअसल, हल्द्वानी के अधिकतर ज्योतिषियों ने प्रसिद्ध रामदत जोशी पंचाग समेत दूसरे जाने माने पंचांगों के आधार पर एक नवंबर के दिन दीपावली का पर्व मनाने की राय दी। जबकि काशी और दूसरे पंचाग के आधार पर 31 अक्टूबर को देश में दीपावली मनाने की तैयारी है।
अब एक बार फिर उत्तराखंड शासन ने भी दीपावली कब है… इस संशय के मैदान में एंट्री ली है। 29 अक्टूबर की शाम शासन ने आदेश जारी कर पूर्व में एक नवंबर को दीपावली के घोषित अवकाश को निरस्त करते हुए अब 31 अक्टूबर को दीपावली का सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया है। आदेश में साफ कहा गया है कि एक नवंबर को सरकारी संस्थान खुलेंगे।
यानी पिछले दिनों से दीपावली कब है, इस सवाल को लेकर हर आमोखास के बीच चल रही बहस में उत्तराखंड शासन ने अपनी मुहर लगाते हुए साफ किया है कि सरकार को हल्द्वानी समेत उत्तराखंड के किसी भी ज्योतिषाचार्य के ज्ञान पर भरोसा नहीं है। उत्तराखंड के जो विद्वान ज्योतिषाचार्य यहां के प्रचलित पंचांगों के आधार पर साफ कह रहे थे कि दीपावली का पर्व एक नवंबर को मनाना लोकहित में है, उनकी बात को सिरे से दरकिनार कर दिया गया।
शासन का यह निर्णय कहीं न कहीं उत्तराखंड के स्थानीय ज्योतिष विद्या पर सवाल है। क्योंकि आज दिन तक उत्तराखंड के लोग अपने क्षेत्र के प्रचलित और विद्वानों के ज्ञान से परिपूर्ण पंचांगों के आधार पर ही अपने जीवन के शुभ और महत्वपूर्ण निर्णय लिया करते हैं।
लेकिन यह बीती होली के बाद अब दीपावली में स्थानीय विद्वानों की राय को दरकिनार करने की यह परिपाठी कहीं न कहीं उत्तराखंड के रीति रिवाजों और जड़ों को सिंचित करने वाली खगोलीय और ज्योतिष विद्या के साथ खिलवाड़ भी है।
आज जो लोग उत्तराखंड के पंचांगों का मजाक बना रहे हैं ये वही लोग हैं जिन्हें उत्तराखंड में भू कानून, मूल निवास और बिगड़ी डेमोग्राफी से कोई वास्ता नहीं। ऐसे में उत्तराखंड के विद्वानों और पंचांगों के निर्णय को ये कैसे पचा सकते हैं?
सोशल मीडिया के दौर में जीने वाले उत्तराखंड के बहुसंख्य समाज से उम्मीद भी क्या की जा सकती है कि वो अपने स्थानीय पंचांगों और विद्वानों के निर्णय का सम्मान करेगा। लेकिन यह तय है उत्तराखंड के विद्वानों के ज्ञान और विद्या के अपमान का जो दौर शुरू हो रहा है, यह कहीं न कहीं उत्तराखंड के लोगों के लिए अपनी जड़ों से दूर जाने के अफसोस का कारण बनेगा।
एक और बात, दीपावली कब है, से लेकर उत्तराखंड शासन के आखिरी फैसले तक वो लोग भी बहुत खुश हैं जो रहते और खाते तो उत्तराखंड में है लेकिन उत्तराखंड के रीतिरिवाज़ों और संस्कारों का मजाक बनाने में नहीं चूकते।
इसे समझना है तो इस खबर के बाद सोशल मीडिया में कमेंट गौर कीजियेगा। सोशल मीडिया की परवरिश वाला कोई न कोई प्रतापी आपको बता ही देगा कि उत्तराखंड के विद्वान, ज्योतिषी और पंचांग उसके लिए क्या मायने रहते हैं और क्यों दीपावली एक नवम्बर के बजाय 31अक्टूबर को मनानी चाहिए।
खैर यह निर्णय आपका है कि आप दीपावली कब मनाएं। अपने विवेक से जब भी आप अपने परिवार और ईष्ट मित्रों के साथ दीपोत्सव या कहें खुशियां पाने और बांटने का पर्व दीपावली मनाएं, यह आपके लिए शुभ हो। आपको दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं….🪔🪔