उत्तराखंड में VIP दर्शन के नाम पर कब तक होता रहेगा अमीर- गरीब में भेदभाव, भगवान के धामों को तो छोड़ दो सरकार !

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम लंबे समय से वीआईपी और वीवीआईपी दर्शन के बोझ तले दबे हुए हैं। भले ही अमीर भक्त मंदिर समिति को मालामाल करते हों लेकिन अमीर गरीब का भेद करने वाली इस व्यवस्था से लाखों श्रद्धालुओं के आस्था से भरे मन को ठेस भी पहुंचती है।

धर्म और आस्था के पावन दरबार में आराध्य के दर्शनों के लिए अमीर और गरीब का फर्क करने वाले इस सिस्टम के चलते उत्तराखंड मूल के साथ साथ दूसरे प्रदेशों के आम श्रद्धालुओं में रोष बना हुआ है। लेकिन सिस्टम है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेता।

जब भगवान के पवित्र धामों में भी “पैसा फेकों तमाशा देखो” का सिद्धांत चलेगा तो फिर सरकारी दफ्तरों और इन शक्तिपीठों में क्या फर्क रह जाएगा?

बताते चलें कि साल 2024 में इस बार 10 मई को गंगोत्री धाम, यमुनोत्री धाम के साथ साथ केदारनाथ धाम के कपाट खुलने जा रहे हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 मई को खुलेंगे।

आगामी 10 मई से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा में गत वर्षों की भांति शुरुआती दिनों में 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। इतने सारे श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था बनाना प्रशासन के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं होता। ऐसे में राज्य सरकार ने यात्रा के पहले 15 दिनों के दौरान VIP दर्शन पर रोक लगाने का फैसला लिया है।

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने देश भर के प्रदेशों के मुख्य सचिवों को यह जानकारी देने के लिए पत्र भेजा है। पत्र में मुख्य सचिव की ओर से अनुरोध किया गया है कि असुविधा से बचने के लिए कोई भी डेलीगेट्स यात्रा के शुरुवाती 15 दिन तक नहीं आएं।

सवाल उठता है कि आखिर सरकार उत्तराखंड के चार धामों में पूरी तरह से वीआईपी दर्शन की व्यवस्था पर रोक क्यों नहीं लगाती है? जिन धामों में देश विदेश के करोड़ों श्रद्धालु आने को लालायित रहते हों, उन धामों में वीआईपी दर्शन के नाम पर भेदभाव वाली इस व्यवस्था के चलते आम श्रद्धालुओं के मन में उत्तराखंड की बेहतर छवि भी नहीं बनती है।

बनेगी भी कैसे, जब कोई सामान्य श्रद्धालु घंटों लाइन में खड़ा रहे और कोई वीआईपी अपने पैसों के दम पर मिनटों में धाम के भीतर प्रवेश पा जाए तो यह व्यवस्था कैसे जायज ठहराई जा सकती है?

पिछले कुछ सालों में हमने देखा भी है कि कई बार आवेशित श्रद्धालु वीआईपी दर्शन की इस व्यवस्था के खिलाफ अपनी पीड़ा और गुस्सा जाहिर भी कर चुके हैं, जिसका वीडियो सोशल मीडिया के जरिए देश विदेश तक पहुंच जाता है।

श्रद्धालुओं के गुस्से का यह वायरल संदेश उत्तराखंड के गौरव को नहीं बढ़ाता और न ही पवित्र धामों की ख्याति में इजाफा करता है। बल्कि इससे चारधाम यात्रा की छवि धूमिल ही होती है… इस बात को राज्य सरकार को समझना होगा।

राज्य सरकार को पवित्र धामों की गरिमा को बढ़ाने और दर्शन के नाम पर पैसों के इस खेल को बंद करने की पहल करनी चाहिए। आखिर कोई तो ऐसी जगह बचे जहां अमीर गरीब का भेदभाव न हो और भगवान के पवित्र धामों से बेहतर इसकी शुरुआत और कहां हो सकती है…

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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