हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा जिला, गांव या शहर हो जहां सरकारी जमीनों पर कब्जा न हो। बावजूद इसके न तो प्रशासनिक अधिकारी और न ही जिला प्रशासन कभी संजीदा हुआ। उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज सरकारों का तो क्या ही कहना।
यही वजह है कि आज उत्तराखंड का हर शहर अतिक्रमण का दंश झेल रहा है। बात अगर हल्द्वानी की ही करें तो यहां साल में कभी कभार नगर निगम और प्रशासन की ओर से अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई जरूर होती है लेकिन शिद्दत से कभी भी अतिक्रमण के खिलाफ एक्शन हुआ ही नहीं।
हल्द्वानी के तिकोनिया चौराहे से रोडवेज बस स्टैंड को जाने वाली सड़क के दोनों और लंबे समय से सड़क और फुटपाथ को घेरकर पूरी दबंगई के साथ वाहन रिपेयरिंग का कारोबार चलता है।
सुबह से शाम तक इस महत्वपूर्ण सड़क के किनारे खुलेआम खाने पीने के ठेलों की आड़ में शराब के जाम छलकते हैं, लेकिन आज दिन तक नगर निगम और प्रशासन के अधिकारी इस महत्वपूर्ण सड़क को अतिक्रमण और अराजकता से मुक्त नहीं करा पाए।
वैसे ये हल्द्वानी की कोई अकेली सड़क नहीं है जहां अतिक्रमण और अराजकता हावी हो, हर सड़क का यही हाल है। सोचिए हल्द्वानी जैसे वीआईपी मूवमेंट वाले शहर का जब यह हाल है तो जिले और कुमाऊं के दूसरे शहरों क्या हाल होगा।
सरकारी जमीनों पर बेखौफ होकर कब्जाने वालों के हौंसले बुलंद ये बताने के लिए काफी है कि शहर और जिले के साथ साथ मंडल के उच्चाधिकारी अपनी दुनिया में मस्त हैं। वास्तव में सरकारी जमीनों को अतिक्रमण से मुक्त कराने से उनका कोई वास्ता है ही नहीं।
हल्द्वानी में करीब 10 किलोमीटर लंबे रकसिया नाले के दोनों तरफ सरकारी नजूल जमीन पर बेखौफ होकर लोगों ने पक्के निर्माण कर दिए गए। न तो सिंचाई विभाग और न हीं प्रशासन के किसी अधिकारी ने कभी भी सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने की सोची।
यही वजह है आज अतिक्रमणकारियों ने नजूल जमीन के साथ ही रकसिया नाले को भी कब्जा कर संकरा बना दिया है। नतीजा यह है कि हर साल बरसात के दिनों में संकरे नाले से पानी ओवरफ्लो होकर बमौरी, लालडांठ से लेकर प्रेमपुर लोसज्ञानी तक कहर बरपाता है।
हर बार बाढ़ की तबाही देखने सरकारी अधिकारी मौके पर पहुंचते हैं और उनका यह दौरा अगले दिन अखबारों की हेडिंग भी बनता है लेकिन समस्या के स्थायी समाधान के प्रति कभी रुचि नहीं दिखाई गई।
यह तो अतिक्रमण के खिलाफ सरकारी तंत्र की मंशा को दर्शाने के लिए एक बानगी भर है, पूरे शहर में यही हाल है। जगह जगह अतिक्रमणकारी कहीं फुटपाथ तो कहीं सरकारी जमीन को कब्जा कर धंधा चला रहे हैं।
ये हाल तब है जब इस शहर में कुमाऊं आयुक्त से लेकर डीएम और तमाम जिला और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के आवास और दफ्तर हैं।
इस बीच मंगलवार को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को लेकर कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत के एक आदेश ने सबको चौंका दिया।
शहरी क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने कुमाऊं मंडल के सभी जिलाधिकारी और विभागाध्यक्ष को 15 वर्ष से पुराने अतिक्रमण को चिह्नित करते हुए 15 दिन के भीतर आख्या उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए हैं।
उन्होंने अतिक्रमण को चिन्हित करने के लिए हर जिले में पूर्व में गठित जिला स्तर कमेटी को सक्रिय होकर कार्य करने के निर्देश दिए है।
आयुक्त ने समस्त विभागाध्यक्ष को निर्देश दिए हैं कि उनके अधीन सरकारी संपत्ति पर जो भी अतिक्रमण है उसको चिन्हित करते हुए अग्रिम कार्यवाही की जाए। यह विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी है कि उनकी सरकारी संपत्ति पर किसी के द्वारा अतिक्रमण न किया जाए। इसके लिए संबंधित विभाग के अधिकारी जिम्मेदार रहेंगे।
अब कुमाऊं आयुक्त के इस आदेश का क्या नतीजा होगा, क्या कुमाऊं की सरकारी जमीनें वाकई अतिक्रमण से मुक्त हो पाएंगी या हर बार की तरह यह सरकारी आदेश भी महज अखबारों और मीडिया की सुर्खियां बनकर दम तोड़ देता है…इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।