हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। पति की लंबी उम्र की कामना के साथ आज देश भर में पत्नियों ने करवाचौथ का व्रत लिया है। चन्द्रमा के दर्शन के बाद व्रत पूरा होगा। ऐसे में सजने संवरने में महिलाओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। खासकर हाथों में मनभावन मेंहदी लगाना पत्नियां नहीं भूली। लेकिन हल्द्वानी में एक मेहंदी ने सबको चौंका दिया। यह मेहंदी पत्नी ने अपने हाथों के बजाय पति की पीठ पर जो सजाई थी। पति की पीठ पर मेहंदी लगाने के पीछे की कहानी ने सबको प्रेरित किया।
दरअसल, समाजसेवा के लिए अपने अनूठे अंदाज से लोगों को प्रेरित करने वाले एमबीपीजी कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक डॉ. संतोष मिश्र ने एक बार फिर देहदान के लिए प्रेरित किया है। इस बार जागरूकता की इस मुहीम में उनका साथ उनकी धर्मपत्नी गीता मिश्र ने दिया।
करवाचौथ के पावन पर्व पर जहां एक ओर सुहागिनें अपने हाथों में मेहंदी रचाकर पति के दीर्घायु होने की कामना कर रही हैं, वहीं कुंतीपुरम, हिम्मतपुर तल्ला ऊंचापुल निवासी गीता मिश्र ने देहदान मुहिम को आगे बढ़ाते हुए पति की पीठ पर मेहंदी से मेडिकल कॉलेज की प्रॉपर्टी लिखकर सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया।
गीता मिश्र ने कहा कि मरणोपरांत मेडिकल कालेज को यदि बॉडी मिलती है तो मेडिकल स्टूडेंट्स प्रयोग के द्वारा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हुए कुशल चिकित्सक बनेंगे, जिससे पति सहित परिवार के सभी सदस्य दीर्घायु होने के साथ-साथ बीमारियों से दूर उत्तम स्वास्थ्य वाले भी होंगे।
गीता के पति डॉ. सन्तोष मिश्र ने कहा कि उनके परिवार ने 2013 में देहदान का संकल्प लिया था और अब अपने परिचितों और समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को नेत्रदान, देहदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
डॉ. मिश्र ने लोगों से आग्रह किया कि इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय मेडिकल कालेज के एनाटॉमी विभाग से सम्पर्क करें। हल्द्वानी में अनमोल संकल्प सिद्धि फाउंडेशन को देहदान और नेत्रदान संबंधी संकल्प पूरा कराने में सहयोग कर रही है।
इससे पहले कफन ओढ़कर, अर्थी पर लेटकर जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण मुक्त ग्रीन सिटी हल्द्वानी के लिए एमबीपीजी के पूर्व प्राध्यापक डॉ सन्तोष मिश्र ने विद्युत शवदाह गृह के प्रयोग के प्रति जनसामान्य को जागरूक किया था।
आम जनमानस की वर्षों की मांग पर रानीबाग में करोड़ों की लागत से बने विद्युत शवदाह गृह में सिर्फ लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। हल्द्वानी, काठगोदाम नगर निगम के द्वारा दाह संस्कार निःशुल्क करने के बावजूद लोग इसे अपनाने में हिचक रहे हैं।
जबकि शहरों की बढ़ती आबादी और घटते जंगल इस बात के लिए आगाह कर रहे हैं कि हमें परम्परागत साधनों के साथ बिजली और गैस आधारित शवदाह गृहों को यथाशीघ्र अपनाने की आवश्यकता है। राजधानी दिल्ली सहित देश के सभी बड़े शहरों में वर्षों से इन्हें अन्तिम संस्कार के लिए लोग प्रयोग कर रहे हैं।
डॉ मिश्र इससे पहले भी रिश्तों की गर्माहट, आइ बैंक इन हल्द्वानी, देहदान, अंगदान, नेत्रदान जैसे मानवतावादी अभियानों का संचालन करते रहे हैं।