हल्द्वानी न हुआ लुटेरों का अड्डा बन गया, स्कूल खोलो अस्पताल खोलो… कोई मरे जिए इनकी बला से

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। एक वक्त था जब चोर, लुटेरे बंदूक, चाकू दिखाकर लूटा करते थे लेकिन बदलते वक्त के साथ अब चोर लुटेरे प्रवृति के लोगों ने बंदूक, चाकू किनारे रख दिए हैं। अब सबने अपने मन मुताबिक दुकानें खोल ली हैं। यानी चाकू दिखाकर न लूटा तो किसी ने सामान बेचकर तो किसी ने इलाज या फिर शिक्षा के नाम पर लूटना शुरू कर दिया। ऐसे में ये लुटेरे समाज में छद्म इज्जत का लबादा ओढ़े घूम रहे हैं और न जाने कितने ही घरों की खुशियां हर रोज तबाह हो रही हैं।

यह बात पूरी जिम्मेदारी से लिख रहे हैं कि हल्द्वानी न हुआ लुटेरों का अड्डा हो गया। यहां अस्पताल खोलो स्कूल खोलो… कोई मरे जिए इनकी बला से। आने वाले दिनों में हल्द्वानी के नामी अस्पतालों और नामी स्कूलों की ऐसी करतूत को भी हम बेनकाब करेंगे जिन्होंने इस पवित्र पेशे को लूट का जरिया बनाया है।

ये सच है कि बीते सालों में जिस तेजी से हल्द्वानी में प्राइवेट अस्पतालों के खुलने का सिलसिला शुरू हुआ है उसी तेजी से प्राइवेट स्कूल भी खुले हैं।

अब आप कहेंगे आखिर इसमें क्या दिक्कत है। अस्पताल और स्कूल दोनों ही जनसामान्य को सुविधा देने के लिए ही तो हैं। तो आपको बताएं दिक्कत अस्पताल और स्कूल के खुलने से नहीं है बल्कि इनकी आड़ में लूट का धंधा चलाने वालों से है।

हल्द्वानी में बहुत कम ऐसे प्राइवेट अस्पताल और प्राइवेट स्कूल हैं जो जनसामान्य को इंसान समझते हैं और उसी हिसाब से व्यवहार भी करते हैं लेकिन अधिकतर प्राइवेट अस्पतालों के लिए मरीज एक सोना देने की मुर्गी बन गए हैं। जब तक लूट सको लूटो और जब लगे खतरा है तो रेफर कर दो। सच यह भी कि हल्द्वानी में अधिकतर मरीज पहाड़ों से आते हैं। ऐसे में उन्हें घेरने का एंबुलेंस से अस्पताल तक का पूरा नेटवर्क चलता है। इस पर अगली खबर में बात करेंगे।

और अधिकतर स्कूल संचालकों के लिए भी बच्चे दुधारू गाय की तरह हैं जिनके भविष्य को बनाने के नाम पर अभिभावकों को एडमिशन से लेकर साल भर खुल्लम खुल्ला लूटा जाता है वो भी डंके की चोट पर…

आज बात हल्द्वानी में संचालित एक प्राइवेट स्कूल की उस लापरवाही की जिसकी वजह से पहाड़ के एक परिवार ने अपनी 17 साल की होनहार बेटी को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया।

हल्द्वानी के हीरानगर स्थित केवीएम स्कूल से टूर पर बरेली के फन सिटी गई 12वीं की 17 वर्षीय छात्रा अंजली रावत की मौत ने जहां परिजनों को असीम और कभी न भूलने वाले दुख से भर दिया है वहीं इस घटना ने हल्द्वानी के उन अभिभावकों को भी सोच में डाल दिया है जिनके बच्चे इन महंगी फीस वसूलने वाले स्कूलों में पढ़ते हैं।

स्कूल प्रबंधन के लोगों ने पुलिस को बताया कि स्लाइडिंग करते हुए अंजली स्विमिंग पूल में गिरी और पानी में डूब गई। जबकि कुमाऊं रेजीमेंट में नायब सूबेदार अंजली के पिता राजेंद्र सिंह रावत पिता ने स्कूल प्रबंधन पर झूठी कहानी गढ़ने और लापरवाही का आरोप लगाते हुए मुखानी थाने में तहरीर देते हुए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। जिसके बाद अब हीरानगर स्थित केवीएम स्कूल प्रबंधन के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ है।

कुमाऊं रेजीमेंट में नायब सूबेदार राजेंद्र सिंह रावत वर्तमान में शाहजहांपुर में तैनात हैं। उनका परिवार हल्द्वानी के मुखानी थाना क्षेत्र के जयसिंह भगवानपुर इलाके की नैनी व्यू कॉलोनी में रहता है। अंजली के अलावा परिवार में पत्नी सरिता और 10 साल का बेटा हिमांशु है। हिमांशु भी केवीएम स्कूल में कक्षा पांच में पढ़ता है।

मिली जानकारी के अनुसार, बीते बृहस्पतिवार सुबह स्कूल के शिक्षकों के साथ ढाई सौ बच्चे बरेली स्थित फन सिटी गए थे, जो कक्षा नौ से 12वीं तक के थे।

फन सिटी में बच्चे झूले और स्विमिंग पूल का आनंद ले ही रहे थे तभी इस बीच अंजली स्लाइडिंग करते हुए पूल में गिरी और पानी में डूब गई। सहेलियों व शिक्षकों ने उसे बाहर निकाला, तब तक वह बेहोश हो गई थी। उसे तत्काल बरेली के निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां मृत घोषित कर दिया गया। लेकिन इस कहानी पर अंजली के माता पिता और परिवार को यकीन नहीं है। उनका कहना है कि स्कूल प्रबंधन सच्चाई छुपा रहा है।

14 नवंबर को दोपहर तीन बजे अंजली का शव घर पहुंचा तो परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इधर, शाम छह बजे पिता नायब सूबेदार राजेंद्र सिंह रावत जब शाहजहांपुर से घर पहुंचे तो उन्होंने मुखानी पुलिस को बुलाकर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ तहरीर दी। परिजनों ने हत्या की भी आशंका जताई है। शुक्रवार सुबह पोस्टमार्टम हुआ। उसकी रिपोर्ट के आधार पर अब आगे की कार्रवाई होगी।

सवाल यही है कि अगर स्कूल प्रबंधन की इस पूरे मामले में कोई गलती नहीं भी है तो क्यों उन्होंने दुख की इस घड़ी में परिवार को विश्वास में नहीं लिया। क्यों पिता के कहने पर भी अंजली के शव को बरेली के बजाय आनन फानन में हल्द्वानी लाया गया? जब घटना बरेली में हुई तो क्यों अंजली का पोस्टमार्टम बरेली में नहीं किया गया? यही वजह है अब इस पूरे मामले को बरेली पुलिस को सौंपा जा रहा है।

सवाल यह भी है कि प्राइवेट स्कूल अलग-अलग गतिविधियों के लिए सालभर अभिभावकों से शुल्क वसूलते हैं। साथ ही भ्रमण कार्यक्रमों के लिए भी रुपए लिए जाते हैं। जो मां बाप सक्षम हैं तो ठीक और जो नहीं भी होते हैं वो भी किसी तरह खा न खाकर स्कूल की हर मांग को पूरा करते हैं।

ऐसे में अगर बच्चों को स्कूल में सुविधा और सुरक्षा मिले तो रुपए देने पर कोई हर्ज भी नहीं है, लेकिन जब स्कूल और टूर में बच्चों की सुरक्षा और निगरानी सही से नहीं की जाती है तो मोटा शुल्क क्यों वसूल किया जाता है?

क्यों स्कूल प्रबंधन भ्रमण कार्यक्रमों में सुरक्षा और मेडिकल व्यवस्था के उचित इंतजाम नहीं करता? मामले को लेकर केवीएम स्कूल के प्रबंधन का पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन जिम्मेदारों का फोन नहीं उठा। उन्हें भी लग रहा होगा क्या करें फोन उठाकर पहले किसी तरह इस मामले से अपनी जान तो छुड़ाएं।

फिलहाल होनहार बेटी अंजली तो अब इस दुनिया में नहीं रही। इस मामले में असल दोषियों पर कोई कार्रवाई होगी या नहीं होगी, इसके भी कोई आसार नहीं है। लेकिन आगे फिर कभी ये दर्द किसी और अभिभावक को न मिले इसके लिए हल्द्वानी में संचालित सभी प्राइवेट स्कूलों को सबक लेना चाहिए।

जो अगर स्कूल प्रबंधन घटना आई गई वाली प्रवत्ति से बाहर नहीं निकले तो वो दिन दूर नहीं जब अभिभावकों का आक्रोश भारी पड़ सकता है। हालाकि केवीएम स्कूल के मामले में हल्द्वानी में सिवाय उस दुखी परिवार के अभी तक विरोध का कोई सामूहिक स्वर सुनाई नहीं पड़ा है।

अफसोस उत्तराखंड के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की तरफ से भी कभी स्कूल और अस्पतालों की इस मनमानी के खिलाफ कोई प्रभावी एक्शन नहीं होता। एक्शन के नाम पर सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले बयान जरूर जारी होते हैं।

वैसे एक सच यह भी है कि 24 साल के उत्तराखंड में अगर सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य और शिक्षा को प्रमुखता दी गई होती तो आज कम से कम हल्द्वानी में खासतौर पर पहाड़ के लोगों को मेडिकल और एजुकेशन माफिया से यूं जूझना नहीं पड़ता।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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