
नैनीताल, प्रेस 15 न्यूज। 25 साल के उत्तराखंड के हिस्से में भी गजब विकास आया। यहां आपदा में अवसर के कारनामे आपको कदम कदम गांव – गांव शहर – शहर मिल जाएंगे लेकिन जब बात असल मदद की आती है तो सिस्टम को सांप सूंघ जाता है।
नैनीताल के वीवीआईपी सिस्टम में हर कोई बैठना चाहता है। उसके लिए आईएएस से लेकर आईपीएस दिल्ली से लेकर देहरादून तक जुगत लगाते हैं। ऐसे में इन अफसरों से जमीन पर काम करने और आम लोगों को सुविधा पहुंचाने की उम्मीद बेईमानी सी है।

नैनीताल जिले का एक ऐसा गांव है जहां न तो शासन प्रशासन की विकास वाली नजर पड़ती है। ऐसे में गांव को जाने वाली पगडंडी से बरसातों में आए भारी भरकम मलबे को हटाना तो दूर की बात है। ऐसे में यहाँ के लोग श्रमदान कर अपना रास्ता खुद ही सुगम बनाते हैं।
देखें वीडियो: गैरीखेत गांव के युवाओं की हिम्मत को सलाम🔴🙏
नैनीताल के मल्लीताल में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज से गैरीखेत गांव को जाने वाली पग़डण्डी आधी सीमेंट से बनी है तो आधी पथरीली है। सामान्य सड़क के अभाव में ग्रामीणों को रोजाना इस पथरीले रास्तों से 6 किलोमीटर गुजरकर आना जाना पड़ता है। मोटर मार्ग नहीं होने के कारण नैनीताल से चंद किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव के लोगों को पैदल ही अपना मार्ग तय करना पड़ता है।
ये तब ज्यादा मुश्किल हो जाता है जब बीमार बुजुर्ग या गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लेकर जाना पड़ता है। छोटे बच्चों को प्रतिदिन स्कूल आने जाने, फल, सब्जी, दूध आदि को समय से मंडी पहुंचाने में मुश्किलें होती हैं। गांव वालों के लिए बाजार का सामान घर ले जाना भी एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण पतली सी उबड़खाबड़ पगडंडी से चलकर बमुश्किल मोटर मार्ग तक पहुंचते हैं।
पिछले दिनों की भारी बरसात के बाद पहाड़ी से पत्थर और मलुवा इस पगडंडी पर आ गया। इससे मार्ग अवरुद्ध हो गया और ग्रामीणों ने पूर्ववत शासन प्रशासन का मुंह ताकने के बजाए श्रमदान कर सड़क को खोलना आसान समझा।
वीडियो में आप साफ देख सकते हैं कि ग्रामीण खुद इन भारी भरकम पत्थरों को बीच सड़क से हटाकर किनारे रख रहे हैं। ग्रामीणों ने रविवार और सोमवार की छुट्टी को इस सकारात्मक कार्य को करने में इस्तेमाल किया है।
(नैनीताल से वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ✍️)
