Gadh kumaon movie review: प्रेस 15 न्यूज, हल्द्वानी। किसी भी समाज के उन पहलुओं को दिखाने का काम तो हर निर्देशक कर सकता है जो सुखद और मजाकिया हों लेकिन समाज के भीतर छुपे उस रार को बड़े पर्दे पर दिखाने का साहस वही कर सकता है जिसे अपनी जड़ों पर विश्वास और काबिलियत पर भरोसा हो।
एक बार फिर उत्तराखंड मूल के लेखक निर्देशक अनुज जोशी ने “गढ़- कुमौ” फिल्म के जरिए ये साबित करके दिखाया है। वाकई फिल्म में जिस बेबाकी और सहजता के साथ कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों के दिल में घर कर गई बातों और सवालों को दिखाया गया है वह साबित करता है कि लेखक को अपने उत्तराखंड से बेइंतहा प्यार है।
देखिए वीडियो कैसे गढ़ कुमौ का जादू दर्शकों पर चला
फिल्म में दिखाया गया है और जो सच भी है कि कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों का रहन सहन, खानपान एक ही तरह का है। फिल्म में जहां रोमांस और ट्रेजडी का संगम है वहीं गढ़वाली व कुमाऊंनी परिवारों के साथ गुदगुदाती भी है। कुछ बेहतरीन रोमांटिक गीत संगीत के साथ फिल्म का कथानक भी रोचक है और उत्सुकता बनाकर रखता है। कुल मिला कर फिल्म “गढ़ कुमौ” गढ़वाल व कुमाऊं के रिश्तों को एक बेहतरीन संदेश के साथ पेश करती है।
जैसा निर्देशक अनुज जोशी कह भी रहे हैं कि उनकी फिल्म कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों के रिश्तों में जमी सालों पुरानी बर्फ को पिघलाने की कोशिश है।
फिल्म”गढ़ कुमौ” उत्तराखंड के दोनों समाजों के बीच कथित वैमनस्य की ऐतिहासिक और सामाजिक परतों को खूबसूरती से खोलती है और साबित भी करती है कि गढ़वाल और कुमाऊं के दोनों पहाड़ी समाजों में भाषाई, सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक समानताएं हैं।
कुल मिलाकर यह फिल्म उत्तराखंड के दोनों पहाड़ी क्षेत्रों गढ़वाल और कुमाऊं के आपसी रिश्तों पर आधारित एक सोशल फैमिली ड्रामा है। जो पहाड़ी समाजों के बीच सदियों पुरानी कड़वाहट पर खुल कर बात करती है।
“गढ़- कुमौ” फिल्म में कुमाऊंनी और गढ़वाली मातृभाषाओं के साथ भी अनोखा मेल हुआ है। यह पहली बार है जब किसी उत्तराखंडी फिल्म में दोनों लोकभाषाओं के साथ बराबर का न्याय हुआ हो।
ये बात पूरे दावे से कही जा सकती है कि अगर इस फिल्म को उत्तराखंड की नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाए तो उनमें अपने गांव पहाड़ के लिए प्रेम में इजाफा ही होगा। साफतौर पर इससे समृद्ध उत्तराखंड की नींव ही मजबूत होगी। साथ ही फिल्म से जुड़े लोगों की मेहनत भी सफल होगी। जाहिर तौर पर इससे फिल्मकारों को नई ऊर्जा के साथ नए प्रोजेक्ट की शुरुआत करने का मनोबल भी मिलेगा।
“गढ़- कुमौ” फिल्म के लेखक निर्देशक अनुज जोशी Super Exclusive 🔴 👇👇
बात अगर फिल्मांकन की करें तो निर्देशक अनुज जोशी के मायानगरी का अनुभव साफ झलकता है। कुमाऊं और गढ़वाल की दिल को छूने वाली लोकेशन, गांव पहाड़ के पाथर वाले घरों को देखकर दर्शकों को अपने गांव पहाड़ की याद ताजा हुई।
गीत संगीत ने भी दशकों को पूरी फिल्म में जोड़े रखा। फिल्म के तीनों गीत बेहद कर्णप्रिय हैं।
फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि ये कि कलाकारों ने अपने किरदार के साथ गजब का न्याय किया है। अभिनेत्री अंकिता परिहार की बात करें तो जब जब वो पर्दे पर हंसती मुस्कुराती नजर आई तब तब दर्शकों के चेहरे भी खिले। और जब जब अंकिता परिहार अपने किरदार प्रभा के साथ रोई हैं तो दर्शकों की आंखें भी नम हुई। जिस शिद्दत के साथ अभिनेत्री अंकिता परिहार ने अपने किरदार को निभाया है, यह उनकी अभिनय यात्रा को आने वाले दिनों में शिखर पर ले जाएगा।
अभिनेता संजू सिलोड़ी के अभिनय ने भी दर्शकों को निराश नहीं किया। संजू सिलोड़ी के प्रभावी और स्वछंद गढ़वाली डायलॉग दर्शकों के दिल को छू गए। सबसे अच्छी बात यह कि अभिनेत्री अंकिता परिहार और अभिनेता संजू सिलोड़ी की ऑनस्क्रीन बॉन्डिंग कमाल की लगी। इस खूबसूरत बॉन्डिंग के लिए भी निर्देशक अनुज जोशी बधाई के पात्र हैं।
फिल्म के जुड़े सह कलाकारों ने भी फिल्म को रोचक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दरअसल फिल्म में कुमाऊं और गढ़वाल के मंझे हुए रंगमंच के कलाकारों ने सह कलाकार की भूमिका निभाई है। अनिल शर्मा, राजीव शर्मा, राकेश गौड़, मोहन जोशी, गम्भीर जायरा, आशा पांडेय, शंभू दत्त साहिल के किरदारों ने फिल्म में जान फूंकी है। निर्देशक अनुज जोशी ने हर किरदार के साथ न्याय किया है। यही वजह है कि फिल्म के हर किरदार का अभिनय दर्शकों को पसंद आया।
“गढ़- कुमौ” फिल्म की अभिनेत्री अंकिता परिहार Super Exclusive👇👇
कुल मिलाकर प्रेम कहानी के जरिए कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों के मन को खोलकर रखने वाली ये फिल्म उत्तराखंड सिनेमा जगत में नया और अभिनव प्रयोग है।
जिस तरह से पहले दिन हल्द्वानी और देहरादून में इस फिल्म को हर उम्र के लोगों ने हाथों हाथ लिया है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में यह फिल्म अधिक लोगों तक पहुंचेगी।
लेकिन एक उत्तराखंडी के नाते मेरे मन में एक सवाल भी कौंध रहा है। जब भी कोई उत्तराखंडी फिल्म बड़े पर्दे पर रिलीज होती है तो हर आमोखास का यह सवाल होता है कि आखिर इस फिल्म को दर्शक क्यों देखें? आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है? और भी तरह तरह के कई दूसरे सवाल जो लोगों के मन में आते हैं। और इसी सोच में हम फिल्म देखने थिएटर, मल्टीप्लेक्स तक नहीं जाते।
वहीं जब बात साउथ, तमिल और बॉलीवुड फिल्मों की आती है तो हर कोई बिना दिमाग लगाए थियेटर दौड़ पड़ता है। ऐसा क्यों होता है? इस पर भी बात करनी जरूरी है।
लेकिन एक पत्रकार की हैसियत से नहीं बल्कि एक उत्तराखंडी के नाते यह कहना चाहूंगा क्या जो सवाल हम लोगों (उत्तराखंडी मूल) के दिमाग में उत्तराखंडी फिल्म को लेकर चलते हैं, क्या कभी हमने वो दिमाग साउथ, तमिल और बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी चलाया है? गजब की मार्केटिंग और पीआर की बदौलत ये फिल्में रिलीज से पहले देश भर के लोगों के साथ साथ उत्तराखंड के लोगों के जहन में बस जाती हैं।
आखिर ऐसा माहौल उत्तराखंडी फिल्म के लिए क्यों नहीं बन पाता, ये सवाल उत्तराखंड सिनेमा जगत से जुड़े समर्पित लोगों को तो कचोटता ही है, साथ ही देवभूमि में फिल्म कला के जरिए आगे बढ़ने का सपना पाले लोगों को भी एक कदम पीछे लेने को मजबूर करता है।
लेकिन हमें समाधान की तरह बढ़ना है। उम्मीद पालनी है।उत्तराखंड के सिनेमा को देश दुनिया तक पहुंचाना है। ऐसे में फिल्म से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी बेहतर फिल्म बनाने के साथ फिल्म की मार्केटिंग और हर सिनेमा प्रेमी तक पहुंच बढ़ाने के प्रति भी बढ़ जाती है।
ये बताने की जरूरत नहीं है कि क्षेत्रीय फिल्म आगे बढ़ेंगी तो कहीं न कहीं इसका लाभ उत्तराखंड के लोगों को भी मिलेगा। यहां के कलाकार फलेंगे फूलेंगे। न केवल कलाकार बल्कि फिल्म से जुड़े दूसरे विभागों में भी रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पलायन का दंश भी कम करने में हमारी क्षेत्रीय फिल्में सकारात्मक बदलाव लाने का दम रखती हैं।
आज कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों के रिश्तों में सदियों से जमी बर्फ को एक खूबसूरत कहानी “गढ़- कुमौ” के जरिए लोगों के दिलों में उतारने की कोशिश सफल हुई है। दर्शकों के दिलों को छूने वाली ये उत्तराखंडी फिल्म देहरादून और हल्द्वानी में एक साथ रिलीज हुई। फिल्म देखने बढ़ी संख्या में लोग पहुंचे।
इस फिल्म को जिस तरह से दर्शकों का प्यार मिल रहा है यह तय है कि लेखक निर्देशक अनुज जोशी, निर्माता हरित अग्रवाल और उनकी पूरी टीम एक बार फिर उत्तराखंड सिनेमा में इतिहास रचने जा रही है। फिल्म में कमी निकालने बैठेंगे तो कई कमियां भी निकलेंगी लेकिन जब लक्ष्य बड़ा हो तो जो अच्छा हुआ है, उसकी तारीफ ज्यादा होनी चाहिए।
फिल्म के निर्देशक अनुज जोशी इससे पहले “तेरी सौं”, “मेरु गौं”, “असगार”, “अजाण” जैसी ब्लॉकबस्टर और देशभर में वाहवाही लूटने वाली मशहूर उत्तराखंडी फिल्में बना चुके हैं। चर्चित धारावाहिक “कसौटी जिंदगी” के शुरुआती एपिसोड्स का निर्देशन भी अनुज जोशी के नाम दर्ज है।
प्लान है कि फिल्म को देश के करीब 28 से ज्यादा शहरों में रिलीज किया जाएगा जिसमें रामनगर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, काशीपुर, रुद्रपुर, बेंगलौर, हैदराबाद, चंडीगढ़, लखनऊ जैसे नाम शामिल हैं।