नैनीताल, प्रेस 15 न्यूज। एनसीपीसीआर यानी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for the Protection of Child Rights) ने देश के 100 ऐसे जिलों को चिह्नित किया है जिनमें बाल तस्करी की संभावना सबसे ज्यादा है।
आप हैरान रह जाएंगे कि बाल तस्करी की संभावना के लिए चिह्नित इन जिलों में सात जिले देवभूमि उत्तराखंड के भी हैं। इनमें नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत, उत्तरकाशी, हरिद्वार, चमोली, उधमसिंह नगर जिले शामिल हैं।
24 साल के उत्तराखंड का यह सच उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डा. गीता खन्ना ने बयां किया है। यह आज के उत्तराखंड का वो कड़वा और डरावना सच है जिसे सुनकर ही रूह कांप जाए। सोचिए जिस मां बाप के कलेजे का टुकड़ा उससे बिछड़ जाए उस पर ताउम्र क्या बीतती होगी?
गुरुवार को उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डा. गीता खन्ना की अध्यक्षता में डीएम कार्यालय सभागार में बाल तस्करी से आजादी 2.0 अभियान विषय में बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में मुख्य रुप से बाल तस्करी, चाइल्ड हैल्पलाइन, प्रताडित, लावारिस, खोए हुए बच्चे, बाल संरक्षण निराश्रित बच्चों के बारे में चर्चा की गई। इस दौरान एडीएम पीआर चौहान, जिला प्रोबेशन अधिकारी वर्षा आर्या, सीएमओ डा. श्वेता भंडारी, एसपी सिटी प्रकाश चंद्र आदि रहे।
डा. गीता खन्ना ने बताया कि बाल तस्करी, शिक्षा, किशोर न्याय के लिए पुलिस तंत्र, श्रम के अलावा अन्य विभागों को भी सहयोग करना चाहिए। लोगों को “हर बच्चा – मेरा बच्चा” के भाव के साथ अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। यह जिम्मेदारी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि समाज की है।
उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की बाल तस्करी, बाल श्रम, बाल विवाह, भिक्षावृ्त्ति आदि को रोकने के लिए ग्रामीण और शहरी इलाकों में जागरुकता अभियान चलाना जरुरी है। जिसमें विद्यालय, बाल मित्र थाना, स्वास्थ्य विभाग, सरकारी योजनाओं के माध्यम से भी बाल श्रम, ड्रग, अपराध, तस्करी आदि को रोका जा सकता है।
डा. गीता ने कहा कि बाल तस्करी, अपराध के शिकार सिर्फ कमजोर वर्ग ही नहीं बल्कि समाज के हर परिवार के बच्चे हैं। बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, राज्य- अंतराष्ट्रीय बाडर, होटल, धर्मशाला आदि इलाकों में बाल तस्करी की संभावना ज्यादा रहती है। तस्करी के बाद बच्चों को कम्पनियों, होटलों, स्पा सेंटरो, ड्रग सप्लाई आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा कि ऐसे इलाकों में पुलिस, खुफिया तंत्र समेत अन्य विभागों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। साथ चाइल्ड हैल्पलाइन नंबर 1098 में संपर्क कर सकते हैं।
डा. गीता खन्ना ने कहा कि बाल तस्करी के लिए संभावित 6 जिलों में जिलों में जागरुकता अभियान चलाया जा चुका है। साथ ही एनसीपीसीआर द्वारा 1 से 30 जून तक पूरे भारत वर्ष में बाल श्रम मुक्त भारत अभियान चलाया जा रहा है। साथ ही जो परिजन बच्चों की शिक्षा या अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं, ऐसे बच्चों को चिह्नित कर शिक्षा, संरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। जिसके लिए हर जिले में टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
उन्होंने बताया कि पहले समय में बच्चों का दायरा परिवार तक ही सीमित था, लेकिन आज के आधुनिक समय में बच्चा समाज से जल्दी जुड़ता है। जिससे बच्चों का व्यवहार में परिवर्तन होता है, ऐसी स्थिति में परिजनों को सतर्क रहने की जरुरत है।
ऐसे में अगर बच्चों के स्वभाव, पहनावे, खेलकूद, खानपान या परिजनों को समय नहीं देना या मोबाइल का प्रयोग अधिक करना जैसी स्थिति होती है, तो परिजनों को बच्चों की घर में काउंसिलिंग करने की आवश्यकता है।
सवाल यह भी कि 24 साल के उत्तराखंड को यहां की सत्ता में काबिज हुक्मरान और नौकरशाह कैसा समाज दे पाए हैं? प्रदेश में आपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
देहरादून से लेकर पहाड़ के हर छोटे बड़े कस्बे में अराजकतत्वों का बोलबाला है लेकिन अब भी शासन प्रशासन के प्रभावी निर्णयों और उन फैसलों के धरातल पर उतरने का इंतजार है। मूल निवास 1950 और भू कानून की मांग भी उत्तराखंड के बेहतर समाज निर्माण की राह है, जिसे आज भी पूरा होने की दरकार है।
ऐसे में हम आपसे यही निवदेन करेंगे कि बच्चों की सुरक्षा के प्रति थोड़ा सतर्क रहिए। खासतौर पर सार्वजनिक स्थानों पर। क्योंकि यह सच है सरकारी सिस्टम में बैठे अधिकारी तो केवल अपनी ड्यूटी का पालन कर रहे हैं, बच्चा आपका है, उसकी हिफाजत की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।