उत्तराखंड में पांच साल बाद भी शत प्रतिशत लाभार्थियों के नहीं बन सके आयुष्मान कार्ड, भगवान भरोसे जान

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Even after five years in Uttarakhand, Ayushman cards could not be made for 100% beneficiaries: हल्द्वानी/ देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। 24 साल के सफर में इसे उत्तराखंड का दुर्भाग्य न कहें तो और क्या कहें कि आज भी किसी हादसे या बीमारी में जान बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है।

प्रदेश के दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों की बात तो छोड़िए, कुमाऊं और गढ़वाल के जिला मुख्यालयों के आसपास की आबादी को भी अपने आसपास जिंदा रख पाने वाला इलाज मिलना किस्मत की बात है।

पैसे वालों के लिए तो प्राइवेट अस्पतालों के फाइव स्टार सुविधाओं वाले बेड हैं लेकिन एक निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार का क्या? दो ही विकल्प हैं या तो गरीब परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन या जेवर बेचकर इलाज करे या फिर किसी से ब्याज में उधार लेकर इलाज कराए। ये दोनों विकल्प भी नहीं तो फिर मरीज की जान भगवान भरोसे।

भला हो सोशल मीडिया का जहां पर किसी गरीब के इलाज के लिए क्राउड फंडिंग जुटाने का विकल्प खुला है। जिसमें आम व्यक्ति अपनी हैसियत के हिसाब से पैसा देकर गरीब मरीज की जान बचाने को आगे आते हैं।

राज्य के हर छोटे बड़े शहर या कस्बे में भले ही आज प्राइवेट अस्पतालों का बोलबाला हो लेकिन प्रदेश के माननीय नेता जब भी बीमार पड़ते हैं तो दिल्ली या विदेशों के अस्पताल का रुख करते हैं।

यह बात साफ इशारा करती है कि 24 साल बाद भी राज्य के सरकारी और प्राइवेट अस्पताल वो भरोसा कायम नहीं कर पाए, जैसी उनसे उम्मीद थी।

ऐसे में सवाल उठता है कि नेताजी या दूसरे धनी लोग अपना और अपनों का इलाज राज्य या देश के बाहर करा लेंगें लेकिन जिन लोगों के लिए यह राज्य बना, उन आम उत्तराखण्डियों का क्या होगा?

प्रदेश के सरकारी अस्पताल आज महज रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। हल्द्वानी और देहरादून के सरकारी अस्पतालों में कुमाऊं और गढ़वाल के आम जनमानस निर्भर हैं। हैरानी की बात यह है कि आज दिन तक हल्द्वानी और देहरादून के सरकारी अस्पतालों में भी राज्य की सरकार सभी मूलभूत व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं करा सकी है।

कहने को राज्य के इन दोनों शहरों में अक्सर वीआईपी और वीवीआईपी भ्रमण रहता है। देहरादून में तो नौकरशाह और पूरी की पूरी राज्य कैबिनेट बैठती है लेकिन बावजूद इसके राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं।

सरकारी अस्पतालों में कमीशन के खेल में डॉक्टर जेनरिक दवाओं के बजाय महंगी दवाएं मरीजों को लिखते हैं, बावजूद इसके दोषी डॉक्टरों पर कार्रवाई के बजाय जांच का हवाला देकर मामले को ठंडे बस्ते में डालने का खेल चलता है। आखिर ग़रीब उत्तराखंडी करे तो करे क्या? आखिर जिए तो जिए कैसे?

अब देखिए ना, कहने को देश और राज्य में आयुष्मान योजना लागू है लेकिन पांच साल बाद भी शत प्रतिशत लाभार्थियों का आयुष्मान कार्ड नहीं बन पाया है। बिना आयुष्मान कार्ड के किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा नहीं है। राज्य आयुष्मान योजना के तहत 30 लाख लाभार्थी मुफ्त इलाज से वंचित हैं।

लाखों परिवार ऐसे हैं, जिनके पास राशन कार्ड न होने के कारण वह योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। राज्य सरकार ने दिसंबर 2018 में प्रदेश के सभी 23 लाख से अधिक राशन कार्डधारकों को पांच लाख तक मुफ्त इलाज देने के लिए आयुष्मान योजना शुरू की थी। योजना के तहत लगभग 82 लाख लाभार्थियों के कार्ड बनाए जाने हैं, लेकिन अभी तक 52 लाख लाभार्थियों के कार्ड बन सके हैं।

आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए राशन कार्ड होना अनिवार्य है, लेकिन कई ऐसे परिवार हैं, उनके पास राशनकार्ड नहीं है। ऐसे परिवारों के लिए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने विभागीय अधिकारियों को आधार कार्ड या अन्य विकल्प पर विचार करने के निर्देश दिए थे। लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो सका है।

बताते चलें कि राज्य ने अब तक 52 लाख आयुष्मान कार्ड बन चुके हैं। जिनमें से 11.69 लाख मरीजों का उपचार हुआ है। मरीजों के इलाज में 2342 करोड़ का खर्च आया है।

स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि हर लाभार्थी का आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रयासरत है। सभी अस्पतालों में आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से शिविर भी लगाए जा रहे हैं, लेकिन पात्र लाभार्थी ही कार्ड बनाने में रुचि नहीं ले रहे हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि न तो स्वास्थ्य विभाग और न ही राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने कभी ऐसा संकल्प लिया कि राज्य के लोगों का शत प्रतिशत आयुष्मान कार्ड बने।

उदाहरण के लिए हल्द्वानी के बेस हॉस्पिटल की बात करें तो यहां आयुष्मान कार्ड बनाने के सवाल पर जब आप अस्पताल के निर्धारित कक्ष में पहुंचते हैं तो यहां मौजूद कर्मचारी आपसे आयुष्मान कार्ड ऐप डाउनलोड करने को कहते हैं।

ऐसा कहकर वो कर्मचारी आपको फौरन कक्ष से विदा कर देता है। और स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि स्वास्थ्य महकमा आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए गंभीर है। आप ही बताइए कोई व्यक्ति जिसके पास स्मार्ट फोन नहीं है, वो कैसे आयुष्मान कार्ड बनाए?

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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