उत्तराखंड का दिव्य शक्तिपीठ जहां मां काली करती हैं वास, भारतीय सेना की सबसे पराक्रमी कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी हैं मां

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Center of unwavering faith: Temple of Maa Haat Kalika in Gangolihat, Pithoragarh news: प्रेस15 न्यूज। देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है। यह बात महज कहने भर की नहीं है, यहां रहने वाले लोग इस बात को महसूस भी करते हैं। प्रकृति, परमेश्वर का अनूठा संगम यहां देखने को बरबस ही मिल जाता है। ऐसा ही दिव्य और अलौकिक दरबार देवदार के घने जंगलों के बीच गंगोलीहाट में स्थित है, जिसे हाट कालिका मां के सिद्धपीठ के रुप पर जाना जाता है। कहा जाता है कि हाट कालिका मंदिर की जड़ में पाताल गंगा बहती है। जितनी मान्‍यता काली कलकत्‍ते वाली मां की है, उतनी ही मान्‍यता हाट कालिका मां की भी है।

मां हाट कालिका यहां करती हैं वास

पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में मां काली को समर्पित हाटकालिका मंदिर उत्तराखंड ही नहीं देश दुनिया के लोगों की अटूट आस्था का केंद्र हैं। ऐसा विश्वास है कि हाट कालिका मंदिर में मां काली विश्राम करती हैं। यही कारण है कि शक्तिपीठ के पास महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है। इतना ही नहीं सुबह के समय इस बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं, जो संकेत देती हैं कि यहां पर मां ने विश्राम किया था। यही वजह है कि हाट कालिका मंदिर में महाकाली के चरणों में जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी हाजिरी लगाता है वह रोग, शोक और दरिद्रता से दूर हो जाता है।

भारतीय सेना की सबसे पराक्रमी कुमाऊं रेजीमेंट के जांबाज जवान।

कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं मां हाट कालिका

हाट कालिका मां को भारतीय सेना में सबसे पराक्रमी कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी के रुप में भी जाना जाता है। इसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है बहुत साल पहले युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की एक यूनिट समुद्र मार्ग से कहीं जा रही थी। समुद्री तूफान आने से जहाज डूबने लगा तो जहाज में सवार जवान घबरा गए और अपने परिजनों को याद करने लगे। तब पिथौरागढ़ निवासी कुमाऊं रेजिमेंट के जवान ने रक्षा के लिए मां महाकाली को पुकारा।

कहा जाता है कि उसके बाद जहाज समुद्र तट तक सकुशल पहुंच गया। जिसके बाद हाट कालिका मां कुमाऊं रेजीमेंट की अराध्य देवी बन गईं। यही वजह है कि कुमाऊं रेजिमेंट के वीर जवान ‘कालिका माता की जय’ के युद्धघोष के साथ आराध्य देवी हाट कालिका माता का जयकारा करते हैं। तब से मां काली के इस पावन और अलौकिक धाम की देखरेख के साथ ही नियमित सेवा भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान करते हैं। कुमाऊं रेजिमेंट ने हाट कालिका मां के इस धाम में अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ यहां पर गेस्ट हाउस भी बनाया है, जहां भक्तों को रात्रि विश्राम की सुविधा मिलती है।

देवदार के वृक्षों की छाया में स्थित मां हाट कालिका का पावन अलौकिक शक्तिपीठ।

चुनरी बांधकर मनोकामना पूरी करते हैं भक्त

मान्यता के अनुसार, हाट कालिका मां के मंदिर में रात के समय मां का डोला चलता है। इस डोले के साथ मां कालिका के गण, आंण व बांण की सेना भी चलती है। कहा जाता है कि अगर कोई इस डोले के दर्शन मात्र भी कर ले तो उसे मां का दिव्य वरदान मिलता है। मां के इस धाम में हर रोज भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपनी मनोकामना मां तक पहुंचाते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है। गंगोलीहाट स्‍थि‍त हाट कालिका को मूल रूप माना जाता है, वहीं हाट कालिका का एक रूप पिथौरागढ़ से करीब 20 किलोमीटर दूर लछैर नामक जगह पर भी है। यहां पर भी कालिका मंदिर स्थापित है। जो लोग मां के दर्शन के दर्शनों के लिए हाट कालिका मंदिर नहीं पहुंच पाते, वे लछैर स्‍थ‍ित कालिका मंदिर में मां के स्वरुप का दर्शन कर लेते हैं।

स्कंद पुराण में है मां हाट कालिका की शक्तियों का वर्णन

स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि सुम्या नाम के दैत्य का इस पूरे क्षेत्र में प्रकोप था। उसने देवताओं को भी पराजित कर दिया था। जिसके बाद देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर दैत्य से मुक्ति पाने के लिए देवी मां की स्तुति की। देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और फिर सुम्या दैत्य का वध किया। जिसके बाद से ही इस स्थान पर महाकाली की शक्तिपीठ के रूप में पूजा होने लगी। वहीं धर्मशास्त्रों में यह भी उल्‍लेख है कि महाकाली ने महिषासुर और रक्तबीज जैसे राक्षसों का भी वध भी इसी स्थान पर किया था।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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