हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। हल्द्वानी के 60 वार्डों में रहने वाले लोगों को मेयर के तौर पर गजराज सिंह बिष्ट मिल चुके हैं। लगातार तीसरी बार हल्द्वानी नगर निगम में मेयर के तौर पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत की हैट्रिक लगाई है। ऐसे में 23 जनवरी की रात से भाजपा के खेमे में उत्साह चरम पर है जो लाजिमी है।
लेकिन शहर भर में जीत से ज्यादा चर्चा उस नाम की है जिसने निगम के चुनाव में पहली बार राजनीति के मायने बदल दिए। बात ललित जोशी की हो रही है। ललित जोशी भले कांग्रेस के प्रत्याशी थे लेकिन ये पूरा चुनाव उनकी व्यक्तिगत छवि के इर्दगिर्द ही घूमता रहा।
32 साल के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में ललित जोशी ने जनता के बीच रहकर जो कुछ कमाया, इस चुनाव में खासकर हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने उसे लौटा दिया।
अब सवाल उठता है जब ललित जोशी का हल्द्वानी के 60 वार्डों से समर्थन मिला तो फिर ललित जोशी जीत के आंकड़े को छू क्यों नहीं पाए?
क्या भाजपा के गजराज ने ललित जोशी को कड़ी टक्कर दी? क्या वोटिंग के दिन नियम कायदों को ताक पर रखकर कटोगे बटोगे, एक हैं तो सेफ हैं जैसी होर्डिंग गजराज की ताकत बने? या पूरे चुनाव प्रचार में बनभूलपुरा के खिलाफ गजराज बिष्ट के बयानों ने हिंदू वोटर को उनके पक्ष में वोट करने को मजबूर किया?
या सनातन और इस्लाम, हल्द्वानी वर्सेस बनभूलपूरा जैसे मुद्दे ललित जोशी पर भारी पड़े?
इस सभी सवालों का असल जवाब जानिए जो नतीजों के बाद जनता और कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं के मन से बाहर आ रहे हैं।
दरअसल, ललित जोशी के जीत के आंकड़े को न छू पाने की एक बड़ी वजह कांग्रेस के भीतर छुपे वो ठेकेदार भी हैं जो पूरे चुनाव में रहे तो उनके आसपास लेकिन पीठ पीछे उन्होंने ललित जोशी को हराने की साजिश रची।
दिन के उजाले में ललित जोशी के खास बनकर घूमने वाले रात को उन्हें हराने के लिए वॉर्ड वार्ड घर घर घूम रहे थे।
खुद को कांग्रेस का माई बाप समझने वाले कुछ नेता तो सिर्फ फोटो और खबरों में छाने मात्र के लिए ललित जोशी की कन्वेंसिंग में शामिल होते दिखे। जबकि इन्हें अपने अपने वार्डों में जनता के बीच जाना चाहिए था।
हल्द्वानी में राजपुरा और दमुआढूंगा के अलावा कांग्रेस के स्वयंभू ठेकेदारों ने वोटर्स के बीच कहीं कोई मीटिंग तक नहीं आयोजित की गई। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के फुस्स स्वयंभू ठेकेदारों की लॉबी कितनी शिद्दत से ललित जोशी को चुनाव हराने में जुटी थी।
पूरे प्रचार के दौरान कांग्रेस के इन स्वयंभू मठाधीशों ने ये जताया कि इनसे बड़ा ललित जोशी का कोई हितेषी नहीं है। और ललित जोशी को जीताने में सारी कसर इन्होंने ही झोंकी हुई है। लेकिन इन्होंने गुब्बारे को फूलाकर उसकी हवा निकालने जैसा काम किया।
सच ये था कि कांग्रेस के इन दीमकों ने ललित जोशी की जीत की राह में फूल तो छोड़िए कांटे बिछाने का काम किया। इतना ही नहीं एक लॉबी ने तो चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं तक को ललित जोशी से दूर कर दिया।
लेकिन एक सच यह भी है कि भले आज कांग्रेस के इन ठेकेदारों को ललित जोशी की हार से सुकून मिल रहा हो लेकिन इस हार से इन ठेकेदारों की आगे की राजनीति भी खत्म सी हो गई है जो इन्होंने कांग्रेस के नाम से जीती है।
क्योंकि चुनाव में बीजेपी के मजबूत संगठन को ये कड़ी टक्कर कांग्रेस के ललित जोशी ने नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ ललित जोशी ने दी है। इस बात को हर वरिष्ठ कांग्रेसी स्वीकार भी कर रहा है।
खबर पक्की है कि हल्द्वानी के राजपुरा, दमुआढूंगा और गांधीनगर में कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता जी जान से घर घर जा रहे थे तो कांग्रेस का दामन ओढ़े ठेकेदारों ने एन चुनाव से पहले ललित जोशी के खिलाफ माहौल बनाया। और रातों रात वोट पलटने का सौदा कर दिया।
कांग्रेस से जुड़े जो पार्षद आज जीते या हारे हैं, उन्होंने पूरे चुनाव में ललित जोशी की रैलियों को अपने पक्ष में भुनाया लेकिन ललित जोशी की एक अदद फोटो तक अपने प्रचार में शामिल नहीं की। जबकि वहीं, भाजपा से जुड़े हर पार्षद ने अपने प्रचार में गजराज सिंह बिष्ट को प्रमुखता दी और उनके पक्ष में माहौल बनाया।
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो चुनाव प्रचार के दौरान ही ललित जोशी को खुद के साथ करीबी बनकर घूमने वालों के छल का पता चल गया था लेकिन फिर भी वो बड़े मन के साथ सभी को साथ लेकर आगे बढ़े। और यही ललित जोशी की बड़ी राजनीतिक भूल साबित हुई।
यानि साफ है ललित जोशी को भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह बिष्ट ने शिकस्त दी हो या नहीं लेकिन कांग्रेस के उन जयचंदों की वजह से यह हार जरूर मिली है।
हालांकि ललित जोशी की कोर टीम के समर्पित सदस्य मतगणना प्रकिया पर भी सवाल उठा रहे हैं। कह रहे हैं कि इस बार मतगणना का फॉर्मेट भी प्रशासन ने उलझाया। एक वार्ड में बूथों के वोटों की काउंटिंग अलग अलग राउंड में हुई। छह राउंड तक समझ ही नहीं आया कि निर्वाचन से जुड़े जिम्मेदार किस तरह से मतगणना को आगे बढ़ा रहे हैं।
वो कह रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ कि करीब 4 हजार वोट ऐसे हैं जो कैंसिल हुए हैं उनमें मुहर पंजे पर लगी है लेकिन साथ में अंगूठा या इंक का निशान भी लगा है।
काउंटिंग के दौरान किसी किसी बेलेट पेपर तो हैरान करने वाला नजारा भी देखने को मिला। उनमें मुहर हाथ के पंजे पर थी और पेन से कमल के निशान के आगे गजराज लिखा था। यानि अगर वोटर को गजराज सिंह बिष्ट को ही वोट देना था तो फिर क्यों उसने हाथ के सामने मुहर लगाई?
आखिर मेयर के बेलेट पेपर में ही इतने ज्यादा वोट क्यों कैंसिल हुए जबकि लोगों ने पार्षदों के लिए भी बढ़चढकर मुहर लगाई है।
ऐसे कई सवाल हैं जो मतगणना के बाद ललित जोशी के समर्थक उठा रहे हैं। ये सारी बातें तो इशारा कर रही हैं कि कोई न कोई झोल जरूर हुआ है? हालाकि यह सब जांच का विषय है। वो जांच जिसके होने के आसार बहुत कम यानी ना के बराबर हैं।
फिलहाल चुनाव का नतीजा भाजपा के गजराज सिंह बिष्ट के पक्ष में आ चुका है। लेकिन जो सवाल कांग्रेस के भीतर छुपे जयचंदों से लेकर मतगणना को लेकर उठ रहे हैं, उन्हें जानना तो पब्लिक चाहती ही है। नतीजों ने गजराज सिंह बिष्ट को मेयर बनाया है तो हल्द्वानी में ललित जोशी भी जननेता बनकर सामने आए हैं।