हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में बेजुबान जानवरों के लिए भी विद्युत शवदाह गृह बनाने की मांग उठी है। हर बार की तरह समाज को बेहतर बनाने की यह मांग भी देहदान, रक्तदान, नेत्रदान, कपड़ा दान, शिक्षा दान जैसी मुहीम चलाने वाले डॉ. संतोष मिश्र ने की है। इसके लिए उन्होंने बकायदा नगर निगम को पत्र भी लिखा है।
इससे पहले डॉ. मिश्र हल्द्वानी के चित्रशिला घाट में पारंपरिक अंतिम संस्कार की जगह यहां बने विद्युत शवदाह गृह का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए भी आमजन मानस से अपील कर चुके हैं।
✍️….डॉ. संतोष मिश्र की कलम से
एक तरफ पूरे शहर के चौक, चौराहों का चौड़ीकरण कर खूबसूरत रूप देने का प्रयास किया जा रहा है। हल्द्वानी-काठगोदाम रोड पर दोनों ओर सरकारी विभागों की चहारदीवारी व निजी भवनों की चहारदीवारी व पार्कों में सदाबहार और महक वाले बेलदार फूलों के पौधे रोपने की तैयारी है, वहीं पर अगर सड़क पर चलते हुए अचानक किसी नहर, नाली या आसपास से उठती दुर्गंध से बचने के लिए नाक पर रुमाल रखना पड़े तो यह अच्छी बात नहीं है।
एमबीपीजी कॉलेज के हिंदी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. संतोष मिश्र ने नगर निगम को पत्र भेजकर यह आग्रह किया है कि नगरवासियों को प्रदूषण, दुर्गंध तथा संक्रामक बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए विद्युत आधारित पशु शवदाह गृह का निर्माण यथाशीघ्र किया जाए।
हल्द्वानी में प्रतिदिन 50 से अधिक आवारा और पालतू जानवर मरते हैं। इनमें कुत्ते, गाय, सांड़, बैल, बकरी, बिल्ली आदि पशु शामिल हैं। इनकी मौत होने पर फिलहाल लोग या तो इन्हें गाड़ देते हैं या शहर के सुनसान इलाकों में यहां-वहां फेंक देते हैं।
इस वजह से पशु प्रेमियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पालतू पशु की मृत्यु होने के बाद यहां वहां गाड़ने व फेंकने से शव कई-कई दिन तक सड़ता रहता है। प्रदूषण व पर्यावरण की दृष्टि से यह हानिकारक तो है ही साथ ही दुर्गंध से आसपास रहने वालों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
वर्तमान में शव गाड़ने की प्रक्रिया कठिन है और इसमें श्रमिकों को समय भी लगता है। निजी और सरकारी श्मशान घाटों की अनुपस्थिति में पालतू जानवरों के मालिकों के लिए अपने पालतू जानवरों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने के विकल्प सीमित हैं।
पशुओं के श्मशान घाट में इलेक्ट्रिक मशीन इस तकनीक से लैस हो कि अंतिम संस्कार के बाद किसी प्रकार की दुर्गंध न आ सके। वहीं, पर्यावरण पर भी किसी प्रकार का दुष्प्रभाव न हो।
पालतू पशु के लिए लगाया जाए शुल्क
शवदाह गृह में आवारा पशुओं का निःशुल्क दाह संस्कार किया जाय, जबकि घरेलू और पालतू पशुओं के लिए शुल्क तय किया जाए। इसी शुल्क से शवदाह गृह का रखरखाव किया जाए।
सम्मानजनक संस्कार की चाह भी होगी पूरी
बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें अपने पालतू पशु से खासा लगाव होता है और वे पशु का परिवार के सदस्य के समान ख्याल रखते हैं। इसी लगाव होने की वजह से वह उनका सम्मान से दाह संस्कार करना चाहते हैं। अभी पशु शवदाह गृह न होने से पालतू पशु की मृत्यु पर लोग उन्हें जंगल में फेंक आते हैं या कई बार नदी किनारे छोड़ आते हैं। शवदाह गृह बनने के बाद ऐसे व्यक्तियों को काफी राहत मिलेगी। दाह संस्कार करने के बाद अगर कोई पालतू पशु की अस्थियां ले जाना चाहता है तो वह ले जा सकेगा।
वर्तमान में ये है नियम
मृतक पशुओं के शव निस्तारण हेतु स्थान, क्षेत्र का निर्धारण लाइसेंसिंग अधिकारी द्वारा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के दृष्टिगत नियत किया जाता है। यदि कोई पशु स्वामी अपने पशु को दफन करना चाहें तो उसके लिये यह अनिवार्य होता है कि उसको दो मीटर नीचे गड्ढे में पशु की मृत्यु से 06 घंटे के भीतर दफनाकर असंक्रमित कर तुरन्त इसकी लिखित सूचना कारण सहित नगर आयुक्त तथा लाइसेन्स ठेकेदार, समिति को दी जानी चाहिए।
पशु की मृत्यु के 06 घंटे की भीतर लाइसेन्सधारी, ठेकेदार, समिति द्वारा पशु के शव का निस्तारण कराया जाना चाहिए तथा इस संबंध में दिए गए विस्तृत दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
पर्यावरण प्रदूषण एवं संक्रमण की दृष्टि से यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी दशा में मृतक पशुओं के शव का निस्तारण नदी, नाले, नहर, तालाब, खुले स्थान, किसी आबादी, स्कूल अथवा धार्मिक स्थल आदि के आसपास न किया जाए।