हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तराखंड निकाय चुनाव में जीत के झंडे गाढ़ना इतना भी आसान नहीं लग रहा है। खासकर उन निकायों में जहां आरक्षण का झुनझुना बदला गया है।
बीते दिनों जिस तरह से प्रदेश की जनता ने आरक्षण को लेकर बदलाव की पिक्चर देखी, उससे साफ है कि खासकर ओबीसी के साथ साथ एससी एसटी वर्ग भी भाजपा से रूठा है। उन्हें लग रहा है कि यह उनके वर्ग के साथ धोखा है।
बात अगर उत्तराखंड के दूसरे सबसे बड़े शहर हल्द्वानी नगर निगम की करें तो यहां करीब 30 फीसदी वोटर्स के मन में आरक्षण में बदलाव के चलते भारी नाराजगी है। हालांकि ये नाराजगी खुलकर सामने नहीं आ रही है लेकिन ये तय है आने वाली 23 जनवरी को वोटर बैलेट पेपर पर इसे जाहिर जरूर करेगा क्योंकि यहां बात शहर की सरकार की है।
दरअसल, जैसे ही हल्द्वानी मेयर पद ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित होने की खबर आई थी तो यकायक ही हल्द्वानी की राजनीति में भूचाल आ गया था। फिर चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों तरफ तैयारी में जुटे सामान्य वर्ग के नेता हक्केबक्के रह गए थे। हालाकि कांग्रेस के लोग कह रहे थे कि ये भाजपा है कुछ भी कर सकती है।
हालाकि इस फैसले के बाद हल्द्वानी की राजनीति में खासकर ओबीसी वर्ग से जुड़े नेताओं में उम्मीद की किरण भी जगी थी। लंबे समय के बाद हल्द्वानी जैसी वीवीआईपी मेयर की कुर्सी ओबीसी वर्ग के नेता के पास आती तो जाहिर सी बात है समाज के इस वर्ग के लोगों में खुशी चरम पर होती।
ओबीसी आरक्षण ने हल्द्वानी के लोगों को यह भी बता दिया कि कौन कौन नेता अब तक सामान्य जाति का दामन ओढ़े थे। यानी लोग उन्हें समझ कुछ रहे थे और वो निकले कुछ।
फिलहाल कुछ ही दिनों तक हल्द्वानी की निकाय राजनीति में ओबीसी आरक्षण के रहने से आमजनमानस का यह सामान्य ज्ञान भी दुरस्त हुआ कि कौन कौन सी जातियां ओबीसी वर्ग में आती हैं।
ओबीसी आरक्षण ने भाजपा और कांग्रेस में ऐसे ऐसे युवा और उम्रदराज नेताओं को सपने दिखाए कि उन्होंने हल्द्वानी की हर सड़क पर बड़े बड़े यूनीपोल और होर्डिंग में रातों रात अपनी तस्वीर लगा डाली। पार्षद का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे नेता भी सीधे मेयर बनने का सपना देखने लगे। अच्छी बात है लोकतंत्र में सबको सपने देखने का हक है।
लेकिन जैसे ही यह सपना परवान चढ़ने वाला था, भाजपा के चाणक्यों ने पूरा खेल बदल दिया और सीट ओबीसी से सामान्य करवाकर ही मानें।
अनंतिम अधिसूचना में हल्द्वानी मेयर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित होने के बाद इस वर्ग के दावेदार काफी खुश थे। उन्हें लग रहा था कि अब काफी समय बाद शहर का प्रथम नागरिक ओबीसी वर्ग से होगा। सात दिन बाद ही उनके आगे से आरक्षण वाली खुशियों भरी थाली खिसक गई।
अब सोचिए करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ओबीसी वर्ग की ये नाराजगी किसके सिर जाएगी? आखिर क्यों ओबीसी वर्ग को सपने दिखाए गए? आखिर सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के नारे का क्या हुआ? ये तमाम सवाल का जवाब अब 23 जनवरी को ओबीसी वर्ग के नेता और उनके समर्थक बैलेट पेपर पर देंगे।
27 दिसंबर से यानी आज से नामांकन होने हैं। लेकिन अब तक भाजपा का मेयर दावेदार तय न होना साफ दर्शा रहा है है कि भाजपा में किस कदर घमासान मचा हुआ है।
भाजपा में ओबीसी वर्ग से प्रबल दावेदारों में गजराज सिंह बिष्ट का नाम है लेकिन सीट सामान्य होने से अब गजराज की दावेदारी को झटका लगा है।
जैसा हल्द्वानी शहर के लोग जानते हैं कि गजराज सिंह बिष्ट पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी हैं और बीजेपी के कालाढूंगी विधायक बंशीधर भगत से उनका छत्तीस का आंकड़ा है।
ऐसे में कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर गजराज को टिकट नहीं मिला तो वो निर्दलीय दावेदारी कर सकते हैं। गजराज के शुभचिंतक भी उन्हें ऐसा करने की सलाह और मनोबल दे रहे हैं। वैसे गजराज सिंह बिष्ट को अपनी राजनीतिक पकड़ को जिंदा रखने का इससे अच्छा अवसर शायद ही फिर कभी मिलेगा।
गजराज के समर्थकों का कहना है कि आखिर कब तक गजराज सिंह बिष्ट पार्टी के अनुशासन के नाम पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का गला घोंटते रहेंगे। इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी उन्हें बैठाया गया था। आखिर कब तक वो भाजपा की भीतरघात का शिकार बनेंगे? ये सवाल भाजपा से जुड़े गजराज सिंह बिष्ट के समर्थक लगातार पूछ रहे हैं।
शहर में चर्चा यह भी है कि अगर गजराज सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा के संभावित उम्मीदवार डॉ. जोगेंद्र पाल सिंह रौतेला की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालाकि बीते 10 वर्षों की एंटी इंकम्बेंसी का असर भी इस चुनाव में देखने को मिलेगा।
इसके साथ ही खासकर हल्द्वानी नगर निगम में शामिल ग्रामीण इलाकों के वार्डों में विकास कार्यों की अनदेखी भी भाजपा की राह मुश्किल बनाएगी। गैस पाइप लाइन बीते साल भर से जंग खा रही है जबकि लोगों से एडवांस में शुल्क भी वसूला गया है।
ऐन चुनाव से पहले पेयजल लाइन के नाम पर गली मोहल्लों की सड़कों को खोदा जा रहा है। लेकिन ये कोई नहीं बता रहा कि इन पाइपों में पानी कहां से आएगा।
अब तक शहर को जल भंडारण क्षमता का नया ठिकाना नहीं दिया गया। यह काम भी फाइलों और बैठकों तक सीमित है। यानी शीशमहल के वर्षों पुराने कम क्षमता वाले फिल्टर प्लांट से हल्द्वानी की बड़ी आबादी को जलापूर्ति हो रही है जो नाकाफी है।
जाहिर तौर पर इन सब जन मुद्दों का फायदा कांग्रेस के प्रबल दावेदार माने जा रहे राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी को मिलना तय है। अगर ऐसा हुआ तो नगर निगम मेयर पद पर कांग्रेस के बीते 10 वर्षों का सूखा खत्म होगा। कहीं न कहीं पार्टी को इसका फायदा 2027 के विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा।
सोचिए व्यापारी नेता नवीन वर्मा और श्रीकृष्ण भक्त मोहन गिरी गोस्वामी भी मेयर का टिकट पाने की लालसा में ही भाजपा में शामिल हुए हैं। हालाकि मीडिया से दोनों ने ही भाजपा से अपने सनातन प्रेम की बात कही है। इन दोनों का भी अपना छोटा ही सही वोट बैंक तो है ही, जो अपने पसंदीदा प्रत्याशी को टिकट न मिलने पर छिटकेगा जरूर ये भी तय है।
ऐसे में अनंतिम अधिसूचना में हल्द्वानी की मेयर सीट ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित कराकर भाजपा अपने ही जाल में फंसती नजर आ रही है। भाजपा के ओबीसी से लेकर सामान्य वर्ग के नेताओं में सिर फुटव्वल की नौबत पैदा हो गई।
हालाकि सच यह भी है कि भाजपा में जिसका नाम भी मेयर दावेदारी के लिए फाइनल होगा, पार्टी से जुड़े हर कार्यकर्ता की बाहरी तौर से ही सही उसका समर्थन करना मजबूरी होगा।
बात अगर हल्द्वानी नगर निगम क्षेत्र के 60 वार्डों की कुल जनसंख्या की करें तो यहां 2,81,215 में से 2,42,010 संख्या मतदाताओं की हैं।
अनुसूचित जाति के 26,726 मतदाता हैं, जो कुल जनसंख्या के 9.5 फीसदी हैं। जनजाति के मतदाता 1937 (0.69 फीसदी) हैं। जबकि ओबीसी की मतदाता 51,789 (18.42 फीसदी) हैं। करीब 70 फीसदी से ज्यादा आबादी सामान्य वर्ग के मतदाताओं की है।