देहरादून, प्रेस 15 न्यूज। विकास की उम्मीद में जिस उत्तराखंड राज्य के निर्माण 42 शहादतें हुई हों, उस राज्य को भ्रष्ट आचरण वालों ने अपना ठिकाना बना डाला। इस काम में उनकी मदद उत्तराखंड के ही नेताओं ने की। नतीजा यह रहा कि राज्य के मूल निवासियों हक मरता गया और छल कपट और प्रपंच करने वालों की मौज हुई।
उत्तराखंड पेयजल निगम प्रबंधन ने राज्य में गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी पाने वाले चार अधिशासी अभियंताओं की सेवाएं समाप्त की हैं। इनमें से तीन की भर्ती साल 2005 और एक की भर्ती 2007 में हुई थी।
2005 में भर्ती हुआ अधिशासी अभियंता सुमित आनंद और मुनीष करारा दूसरे राज्य के निवासी हैं, जिन्होंने उत्तराखंड में अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ लिया। इसी आधार पर दोनों को नौकरी मिली।
वहीं, 2005 बैच के मुजम्मिल हसन भी उत्तर प्रदेश का निवासी है, इसने भी उत्तराखंड में ओबीसी आरक्षण का गलत लाभ लेकर सरकारी नौकरी पर कब्जा किया। 2007 में भर्ती हुई सरिता गुप्ता ने भी बाहरी राज्य की निवासी होने के बाद भी मिलीभगत से उत्तराखंड महिला वर्ग का आरक्षण लाभ लिया।
जबकि नियम यह है कि दूसरे राज्यों के सभी श्रेणियों के आवेदक, उत्तराखंड में सामान्य वर्ग के तहत ही एंट्री पा सकते थे।
इन चारों की जांच के बाद कार्रवाई पर सलाह के लिए पेयजल निगम प्रबंधन ने फाइल कार्मिक विभाग को भेजी थी। कार्मिक विभाग के निर्देश के तहत चारों आरोपी इंजीनियरों को पक्ष रखने का मौका दिया गया। संतोषजनक जवाब न मिलने पर चारों की सेवाएं समाप्त की गईं। इसकी पुष्टि पेयजल निगम के एमडी रणवीर सिंह चौहान ने की है।
ऐसे में सवाल उठता है कि चार इंजीनियरों की सेवाएं तो समाप्त कर दी गईं, लेकिन इन चारों को नियमों को ताक पर रखकर भर्ती करने वालों पर क्या कार्रवाई होगी? क्योंकि जितने दोषी ये चार इंजीनियर हैं, उससे कई गुना ज्यादा दोषी वो लोग हैं जिन्होंने इन्हें गलत तरीके से सरकारी दामाद बनाया।
बताया जा रहा कि जिन अधिकारियों के समय में ये भर्ती हुई थी, उन्हें रिटायर हुए चार साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, ऐसे में इन भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हो सकती।
ऐसे में सवाल यही है कि आखिर रिटायर होने के बाद भी आखिर क्यों इन भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हो सकती? अगर ये जीवित हैं तो इन्हें घसीटकर जनता के सामने लाना चाहिए क्योंकि इन्होंने राज्य के मूल निवासियों का हक मारा है।
सच ये भी कि अभी तो महज चार शातिर इंजीनियर पकड़े गए हेड, न जाने ऐसे कितने ही अभी उत्तराखंड में सरकारी नौकरी में जमे होंगे? अफसोस कि सरकार का ध्यान इस बात पर नहीं जाएगा। जो अगर सरकार वाकई भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ गंभीर होती, तो इतने साल तक ये चार इंजीनियर मौज नहीं मारते। खैर देर आए दुरुस्त आए, और क्या कह सकते हैं।
यही वजह है कि राज्य के लोग लंबे समय से सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 की मांग कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार है कि लगातार मांग को अनसुना कर मुद्दे को भटकाने की राह पर डटी हुई है। जो यूसीसी राज्य के लोगों ने कभी मांगा ही नहीं, उस UCC को राज्य की सरकार उत्तराखंड में लेकर आई। जबकि राज्य के लोग चीख चीखकर सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 मांग रहे थे।
यह सच्चाई है कि आज उत्तराखंड के पहाड़ों की अधिकतर जमीन बाहरी राज्यों के लोगों के कब्जे में है। ऐसे में एक तरफ पहाड़ की बहुमूल्य कृषि भूमि ठिकाने लग रही है तो वहीं पुरखों की संजोई भूमि और देवों के पावन धाम की पवित्रता भी प्रभावित हुई है।
वहीं, राज्य के युवाओं और मूल निवासियों के हक में बाहरी राज्यों के सेटिंगबाज नजरें गड़ाए हुए हैं। यूकेएसएसएससी घोटाला, विधानसभा भर्ती घोटाला, नर्सिंग स्टाफ घोटाला … ऐसे तमाम घोटाले हैं जिन्होंने चीख चीखकर बताया कि कैसे राज्य के युवाओं का हक राज्य के ही जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से बाहरी राज्यों के गिद्दों ने डंके की चोट पर खाया।