देहरादून, प्रेस15 न्यूज। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा चुनाव आयोग को सौंप दिया है। जिसके बाद चुनाव आयोग ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर यह डेटा अपलोड कर दिया है। वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है।
अब देश की आम जनता भी यह जान सकती है कि किस राजनीतिक दल को कितना चुनावी चंदा किन किन लोगों से मिला है।
चुनावी बांड के माध्यम से पैसा जुटाने वालों में भाजपा, कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, बीआरएस, शिव सेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, राजद, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी शामिल हैं।
इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से चुनावी बांड का ब्योरा सार्वजनिक करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था। जिस आवेदन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मंगलवार शाम चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड का डेटा सौंप दिया था। जिसके बाद गुरुवार को चुनाव आयोग ने इस जानकारी को सार्वजनिक कर दिया है।
भारतीय चुनाव आयोग ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर चुनावी बांड पर एसबीआई से प्राप्त डेटा को अपलोड किया है। एसबीआई से प्राप्त डेटा को आप भी इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं https://www.eci.gov.in/candidate-politicparty
जानिए क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
2017 में अरुण जेटली ने दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। जबकि दूसरे पक्ष का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।
जिसके बाद इलेक्टोरल bond योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।