नैनीताल: बसगांव ग्राम प्रधान ने भू माफिया के खिलाफ लड़ाई लड़ने से किया इनकार, गांव बचाने को आगे आए जागरूक युवा

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हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के सिमराड पोस्ट ऑफिस वाले गांव बसगांव में बीते दिनों जमीन का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है।

ग्राम प्रधान ललिता देवी और प्रधान पति मोहन चंद्र जोशी ने भू माफिया के खिलाफ वादी बनने से साफ इनकार कर दिया है। गांव के लोग भी ग्राम प्रधान और प्रधान पति के इस फैसले से हैरान हैं। जिसके बाद अब गांव के जागरूक लोगों ने गांव को भू माफिया से बचाने का बीड़ा उठाया है।

देखें वीडियो : बसगांव बेचने वाले दलाल बेनकाब

कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत की जनसुनवाई में बसगांव की 13 नाली 07 मुट्ठी जमीन के फर्जीवाड़े का मामला सामने आया था। जिसके बाद आयुक्त ने दोनों पक्षों को बुलाकर पड़ताल की।

बसगांव से सटे छीमी गांव निवासी और सुयालबाड़ी में चाय और मिठाई की दुकान चलाने वाले मोहन सिंह छिम्वाल ने बताया था कि करीब 13 नाली 07 मुट्ठी जमीन उसने मुरलीधर जोशी और जयकिशन जोशी से खरीदी। लेकिन जमीन के असली मालिक से वह कभी नहीं मिला और सीधा इसी साल की 16 अगस्त को नैनीताल सब रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्री के लिए मिले।

इसके साथ ही रजिस्ट्री में 14 लाख का चेक सबूत के तौर पर लगाया है जिसे खरीदार ने अभी तक भुनाया नहीं है। ग्राम प्रधान पति के साथ गांव से आए लोगों का कहना था कि जिसके नाम पर भूमि दर्ज है, उन दोनों व्यक्तियों को पिछले 70 सालों में कभी नहीं देखा गया।

मामले की संदिग्धता को देखते आयुक्त ने रजिस्ट्री में बेचने वालों के आधार कार्ड की मौके पर ई डिस्ट्रिक्ट मैनेजर से जांच कराई जिसमें दोनों के आधार कार्ड नम्बर फर्जी पाए गए। जो मोबाइल नम्बर खरीदार मोहन सिंह छिम्वाल ने रजिस्ट्री में दिया है, वह भी हरीश पांडेय नामक व्यक्ति का सामने आया। जिसके नाम पर उसी दिन जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी भी हुई है। जो सीधे तौर पर जमीनों की खरीद फरोख्त में धोखाधड़ी दर्शाता है। मोहन सिंह छिम्वाल की भूमिका भी संदिग्ध है।

पूछताछ में पता चला कि जिस दिन जमीन की रजिस्ट्री हुई उस दिन ग्राम प्रधान पति मोहन चंद्र जोशी भी रजिस्ट्री कार्यालय में मौजूद थे। हालाकि प्रधानपति की सफाई थी कि वह दूसरे काम से वहां मौजूद थे, फर्जीवाड़े की जमीन से कोई लेना देना नहीं है।

सुबह से शाम तक मोहन सिंह छिम्वाल ने कुमाऊं आयुक्त के सामने यही कहा कि इस जमीन को बेचने के इंतजाम ग्राम प्रधान पति मोहन चंद्र जोशी और पटवारी ने किए जिसके बाद रजिस्ट्री भी हो गई।

लेकिन भूमिका संदिग्ध लगने पर जब कमिश्नर की सख्ती बढ़ी तो मोहन सिंह छिम्वाल ने यह भी बताया कि क्षेत्र के हरीश पांडेय और भगवंत भंडारी ने पूरे खेल में अहम भूमिका निभाई। विक्रेताओं को भी वही लाए थे। वर्तमान में हरीश पांडेय कमोली पंप हाउस में लाइनमैन है।

इस पर आयुक्त ने मामले को लैंड फ्रॉड समिति में रखने और मामले की तह तक जाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़ा करने वाले बक्शे नहीं जाएंगे।

बसगांव जमीन फर्जीवाड़े में जांच अधिकारी बनाए गए खैरना चौकी इंचार्ज दिलीप कुमार जब बीते 13 नवंबर को बसगांव पहुंचे थे तो उन्होंने गांव वालों के सामने  ग्राम प्रधान ललिता देवी से पूछा था कि इस मामले में पूरे गांव को नहीं बल्कि एक व्यक्ति को वादी बनना पड़ेगा। चूंकि जमीन फर्जीवाड़े में प्रधान की मुहर का भी इस्तेमाल हुआ है। ऐसे में यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है वह इस मामले में वादी बनें जिससे आरोपियों के खिलाफ मजबूती से कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ सके।

ग्राम प्रधान ललिता देवी ने प्रधानपति मोहन चंद्र जोशी की मौजूदगी में जांच अधिकारी खैरना चौकी इंचार्ज दिलीप कुमार से कहा कि वह महिला है, कैसे मुकदमा करा सकती हैं।

जिस पर खैरना चौकी इंचार्ज दिलीप कुमार ने कहा कि जब आप प्रधान पद की शपथ ले रही थी, तब आपने ये तो नहीं कहा था कि आप महिला हैं। यह तो आपके गांव का सवाल है। सोचिए जो अगर आपकी मुहर के दम पर गांव की उस जमीन की दाखिल खारिज हो जाती तो गांव के बाकी लोगों का भविष्य भी खतरे में पड़ जाता। वो तो गनीमत है कि समय रहते करतूत बेनकाब हो गई।

खैरना चौकी इंचार्ज दिलीप कुमार की इस बात पर ग्राम प्रधान ललिता देवी और प्रधानपति मोहन चंद्र जोशी खामोश रहे। जिसके बाद दिलीप कुमार जरूरी प्रपत्रों की फोटो कॉपी और अन्य मूल दस्तावेजों की प्रति उपलब्ध कराने की बात कहकर गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा का प्रसाद खाकर अपने दो कांस्टेबल के साथ गांव से आगे बढ़ गए।

यानी साफ था कि ग्राम प्रधान ललिता देवी और प्रधान पति मोहन चंद्र जोशी इस बात से बेफ्रिक हो चले हैं कि उनका इस जमीन फर्जीवाड़े से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में अब कानूनी पचड़े में पड़कर क्या फायदा। वैसे भी 30 नवंबर को कार्यकाल खत्म हो रहा है। लेकिन अभी भी प्रधान की उस मुहर से पर्दा नहीं उठा है जो जमीन ठिकाने लगाने के दौरान इस्तेमाल हुई थी।

लेकिन गांव के लोगों को खासकर जागरूक युवाओं को अब गांव के अस्तित्व की चिंता सताने लगी है। युवाओं का साफ कहना है कि वो गांव में भू माफिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे। जो काम ग्राम प्रधान को करना चाहिए था, अब वो काम गांव के दूसरे लोग करेंगे।

तय हुआ है कि गांव के युवा जमीन फर्जीवाड़े के इस मामले में वादी बनेंगे और जो भी लोग बसगांव की जमीन को खुर्दबुर्द करने के साजिश में शामिल हैं, उन्हें बेनकाब कर सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा। इसके साथ ही भविष्य के लिए भी बसगांव ग्राम सभा की जमीन को सुरक्षित करने के इंतजाम किए जाएंगे।

यह भी तय हुआ है कि आने वाले दिनों में ग्राम सभा सुरक्षा समिति के रजिस्ट्रेशन की कवायद को भी आगे बढ़ाया जाएगा। जिसके बाद बसगांव में बाहरियों को जमीन की बिक्री पर रोक और फेरीवालों की इंट्री पर भी रोक लगाने जैसे सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।

बताते चलें कि पहाड़ में रहने वाले ही कुछ लोग पहाड़ को खोखला करने में लगे हैं। जिस गांव की जमीन को उनके बाप, दादा और पुरखे बसाकर गए, आज उसी जमीन की दलाली कर रहे हैं। मकसद कमीशन कमाना और शॉर्ट कट में अमीर बनना है।

बसगांव का ये जमीन फर्जीवाड़ा जिसने भी सुना वो सन्न रह गया। यहां स्वर्ग सिधार चुके व्यक्ति की जमीन को ठिकाने लगाने का खेल रचा गया। इसके लिए बकायदा मृतक का फर्जी आधार कार्ड तक बनवा दिया गया। बकायदा ग्राम प्रधान की मुहर का भी इस्तेमाल हुआ। और पटवारी की मिलीभगत से जमीन की रजिस्ट्री भी हो गई।

ये तय है कि इस मामले में अगर गांववालों की नजर बनी रही और सलीके से जांच हुई और गांव की जमीन बचाने का संघर्ष जारी रहा तो गांव और आसपास के कई कमीशनखोर जेल में होंगे।

बताते चलें कि शांत और सुकून भरे गांव बसगांव में फल , सब्जी और दुग्ध उत्पादन ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख आधार है। इसके अलावा गांव के लोग स्वरोजगार से भी जुड़े हैं। लेकिन बीते कुछ सालों में गांव के युवा पीढ़ी का हल्द्वानी बसने का सिलसिला तेजी से शुरू हो चुका है। युवा पीढ़ी इंटर के बाद भविष्य संवारने के लिए गांव छोड़ रही है। ऐसे में गांव में अब गिने चुने परिवार और उनमें भी बुजुर्ग बचे हैं।

गांव के लोग बताते हैं कि जब से सड़क पहुंची है तभी से यहां जमीन बेचकर कमीशन खाने वाले सक्रिय हो गए हैं। आज स्थिति यह है कि गांव में बाहरी राज्य के व्यक्ति ने होम स्टे तक खोल दिया है। जिसके बाद सुबह से रात तक गांव की सड़क में दिल्ली, हरियाणा की गाड़ियों की धमक रहती है।

इतना ही नहीं गांव की जमीनों पर बाहरी और समुदाय विशेष के लोगों का कब्जा हो चुका है। लेकिन गांव के जिम्मेदार ग्राम प्रधान और दूसरे जनप्रतिनिधियों की तरफ से कभी भी गांव की जमीनों की खरीद फरोख्त के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई।

गांव के आसपास कई लोग सत्ताधारी दल के नेता भी बने हुए हैं, जो नेतागिरी और ठेकेदारी से खुद को चमका रहे हैं। लेकिन गांव की अस्मिता को बचाने और बाहरियों की घुसपैठ रोकने से उन्हें खास मतलब नहीं है। अब जब बसगांव का यह जमीन फर्जीवाड़ा सामने आया है तो जरूर कुछ लोगों में खुद को आगे रखने की हलचल बढ़ी है।

गांव की जमीनों को गांव के चंद लोगों ने कमीशन खाने का जरिया बनाया और जमीन पर हर वो शख्स बसाया गया जिसके लिए पहाड़ सिर्फ और सिर्फ अय्याशी और कमाई का ऐशगाह है। गांव के चंद लोग अपने पुरखों की जमीन को ठिकाने लगाकर हल्द्वानी में जमीन लेकर मकान बनाने की राह पर निकल चले हैं। उन्हें लग रहा है कि हल्द्वानी में मकान होना ही उनके जीवन की सफलता और कामयाबी है।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि अपने पितरों और ईष्ट देवों की भूमि को बाहरी लोगों के हवाले करने वाले चाहे कितनी मर्जी दलाली कर लें, लेकिन कभी सुखी नहीं रह सकते। आज भले गांव की अस्मिता को तार तार करने वाले मौज काट रहे हों लेकिन उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए बदहाली, दुर्भाग्य और आंसुओं के बीज बो दिए हैं।

गांव के लोग बताते हैं कि एक तरफ गढ़वाल के कई गांव है जहां के ग्राम प्रधान और जन प्रतिनिधियों ने गांव की जमीन किसी भी बाहरी को न बेचने और गांव में जमीनों के दलालों की एंट्री पर रोक लगाई है, वहीं बसगांव में जिम्मेदार ही जमीन के दलाल बने हुए हैं।

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संजय पाठक

संपादक - प्रेस 15 न्यूज | अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूं... हां मैं एक पत्रकार हूं

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