हल्द्वानी, प्रेस 15 न्यूज। किसी भी परिवार में जब नन्हें मासूम बेटी या बेटे की किलकारी गूंजती है तो मानो उस घर में खुशियों की बरसात सी होने लगती है। वो मासूम माता पिता के साथ- साथ परिवार के हर सदस्य की आंखों में ढेर सारे सपने और उम्मीदें भर देता है।
मासूम बच्चे की नींव मजबूत करने के लिए परिवार के लोग उसे संस्कारों की पालना भी देते हैं और अपनी क्षमता से बढ़कर उसकी परवरिश में जुट जाते हैं। और एक दिन वो आता है जब वो मासूम स्कूल में दाखिला लेता है।
आप कहेंगे इसमें नई बात क्या है, ये बात तो दुनिया भर को पता है फिर क्यों हमें ये ज्ञान दिया जा रहा है। दरअसल सीधे सीधे खबर बताने के बजाय ये ज्ञान देना इसलिए जरूरी है ताकि आप अपने नौनिहालों की सुरक्षा के प्रति थोड़ा सजग हो जाएं।
आप अपनी मेहनत से कमाए पैसे से अपने बच्चे को महंगी फीस वाले स्कूल में दाखिला दिलाने वाले मां बाप में से हैं तो अब घर से स्कूल और स्कूल से घर के बीच के रास्ते के सफर में बच्चे की सुरक्षा पर भी गंभीर हो जाइए…
क्योंकि नैनीताल जिले में प्रशासन सोया हुआ है। तो जाहिर सी बात है हल्द्वानी में प्रशासन सोया ही होगा। ठीक वैसे ही है जैसे कुंभकर्ण सोया रहता था। कुंभकर्ण की कहानी तो आपको याद है ना? वो साल छह महीने में तभी जागता था जब उसे भूख लगती थी या कोई बड़ा शोर होता था।
कुछ ऐसा ही हाल हल्द्वानी में प्रशासन का भी है। वो तब ही जागता है जब कोई बड़ा हादसा होता है और उसके बाद उठता शोर… इस बात को हम सिर्फ कहने के लिए नहीं पूरी जिम्मेदारी से कह रहे हैं।
अब आप असल खबर भी जान लीजिए। दरअसल मंगलवार दोपहर रोजाना की तरह हल्द्वानी की कालाढूंगी रोड पर ट्रैफिक दौड़ रहा था। हर आदमी अपनी दौड़ में लगा था। इस बीच अचानक मुखानी चौराहे से चंद दूरी पर एक स्कूल वैन देखते ही देखते आग का गोला बन गई।
देखते ही देखते स्कूल वैन से धुएं की गुबार फूटने लगा। पैदल जाने वाले लोग आसपास थम गए और फिर सारे के सारे इस नजारे का वीडियो बनाने में व्यस्त हो गए।
इस बीच किसी जागरूक मानुष ने फायर बिग्रेड के दफ्तर फोन घुमाया तो कुछ हिम्मत वाले आग में काबू अपने के लिए पानी का इंतजाम करने लगे। सूचना पर पुलिस भी पहुंची और फायर बिग्रेड की टीम भी। और सूचना पर ही पहुंचे जिम्मेदार अधिकारी भी…
लेकिन तब तक स्कूल वैन खाक हो चुकी थी। गनीमत यह रही कि उस वक्त स्कूल वैन में कोई बच्चा नहीं था और ना ही ड्राइवर और स्टाफ। इतना ही नहीं जिस जगह पर वैन धूं धूंकर जल रही थी, उसके ठीक बगल में बिजली के खंभों में ट्रांसफार्मर भी लगा था। अगर आग पर समय रहते आसपास के लोगों ने काबू नहीं पाया होता तो संकट बढ़ सकता था।
अचानक भरी दोपहर स्कूल वैन में ये आग कैसे लगी, ये जांच का विषय है लेकिन ये भी एक सच है कि हल्द्वानी की सड़कों पर दौड़ने वाली आधे से ज्यादा बच्चों की गाड़ियां खटारा हालत में दौड़ रही हैं। शहर के कुछ एक स्कूलों के वाहनों को छोड़ दें तो अधिकतर स्कूलों की गाड़ियों का भगवान मालिक है।
मतलब साफ है कि इन खटारा वाहनों में रोजाना नौनिहालों को ढोया जाता है लेकिन बावजूद इसके स्कूल प्रबंधन इन गाड़ियों को सर्विसिंग और टेक्निकल जांच कराना जरूरी नहीं समझता।
हां, इतना जरूर है कि स्कूल प्रबंधन बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ने के नाम पर मनमाना किराया लेना नहीं भूलता। आप कहेंगे आखिर वो स्कूल कौन सा था जिसकी गाड़ी में आग लगी? तो आप यह जानकर करेंगे भी क्या?
क्या कल से उस स्कूल से अपने बच्चे का नाम कटवा लेंगे या फिर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कोतवाली में एफआईआर लिखवाने के लिए आगे आएंगे?
इसका जवाब हम आपको देते हैं। दरअसल न तो आप इस स्कूल से अपने बच्चे का नाम कटवाएंगे और ना ही स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कोतवाली में एफआईआर लिखवाने की जहमत उठाएंगे। तो फिर स्कूल का नाम जानकर भी क्या करेंगे?
क्योंकि ये हादसा आपके बच्चे के साथ थोड़े ना हुआ है। सोच कर देखिए भगवान न करे अगर इस धधकती स्कूल वैन में कोई मासूम होता तो? क्या तब भी अभिभावक खामोश रहते?
अगर ये हल्द्वानी के एक ही स्कूल की लापरवाही होती तो जरूर हम इस खबर में उस स्कूल का नाम भी लिखते लेकिन यह हाल हल्द्वानी के अधिकतर स्कूलों का है। ऐसे में एक स्कूल का नाम लिखकर करें भी तो क्या।
पता चला है कि जिस स्कूल वैन में आग लगी उस स्कूल में बुधवार यानी कल एक सम्मान कार्यक्रम होना था। उसी सिलसिले में स्कूल के शिक्षक ड्राइवर के साथ वैन में बैठकर सामान ढोने आए थे और तभी वैन में आग लग गई।
यानी आज स्कूल वैन में बच्चों के बजाय सामान ढोया जा रहा था। ठीक वैसे ही जैसे कभी हल्द्वानी की स्कूलों बसों में आपने शादी के दौरान बारातियों को ढोते देखा हो।
यानी आज हल्द्वानी में एक बड़ा हादसा होने से बाल बाल बच गया। अब सवाल उठता है कि जिला प्रशासन अगर महत्वपूर्ण कामों के बाद होने वाली थकान के चलते सो भी रहा है तो शहर में आरटीओ विभाग कौन सी नींद की गोली खाकर आराम फरमा रहा है?
सिवाय सड़क किनारे सरकारी गाड़ी खड़ी करके चालान काटने के आरटीओ विभाग के अधिकारी कर क्या रहे हैं? क्या स्कूली वाहनों की तकनीकी जांच को लेकर आरटीओ की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?
क्या महज चालान काटने और लाइसेंस और दूसरे कागजातों में साइन करने और मीटिंगों में नीतियां बनाने तक ही आरटीओ की ड्यूटी है?
अगर ऐसा नहीं है तो जिला प्रशासन के साथ साथ स्थानीय प्रशासन और आरटीओ बताए कि क्या हल्द्वानी के मां बाप अपने बच्चों को स्कूल की गाड़ियों में भेजना बंद दें? जो मां बाप अपने बच्चे को पालपोस सकते हैं तो वो बच्चे की पढ़ाई की खातिर ये जिम्मेदारी भी ले सकते हैं। क्योंकि जिंदगी अनमोल है एक बार गई तो फिर यादें ही रह जाती हैं।
काश, हल्द्वानी के सोए हुए सरकारी सिस्टम में मौजूद सरकारी अफसर मां- बाप बनकर न सही इंसानियत के तौर पर ही अपना फर्ज निभा देते तो आज हल्द्वानी के हजारों मां बाप को आग का गोला बनी यह स्कूल वैन नहीं डरा पाती।
उम्मीद करते हैं कि अब कभी ऐसी खबर लिखने की नौबत किसी पत्रकार को न आए जिसमें मां बाप की खुशी दांव पर लगी हो और अफसरों का वो ईमान भी जाग जाए जो बेरोजगारी के दौर में कभी उनके भीतर रहा होगा।
देखें वो VIDEO जिसने हल्द्वानी निवासी मां बाप को नौनिहालों की सुरक्षा को लेकर चिंता में डाल दिया