सितारगंज, प्रेस 15 न्यूज। अपराधी मानसिकता के लोगों के हौसले उत्तराखंड में यूं ही बुलंद नहीं हैं। इसके पीछे समाज के वो लोग भी जिम्मेदार हैं जो खामोशी से अपनी नजरों के सामने अपराध होते देखते हैं।
फिर चाहे सड़क हो या घर, बेटियों और महिलाओं के साथ लगातार अपराध घट रहे हैं लेकिन विरोध का स्वर कभी भी समाज की ओर से नहीं उठता। विरोध के बजाय तमाशबीन बन जाते हैं। और कुछ तो मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने और वायरल करने में जुट जाते हैं।
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रहा सहा योगदान मोमबत्ती जलाकर और ज्ञापन देकर और प्रदर्शन कर पूरा कर दिया जाता है। ठीक सांप के निकलने के बाद लाठी पीटने जैसा…
यही वजह है कि आज शहर और गांव बदल रहे हैं और हर जगह शैतानी लोगों के निशाने पर बेटियां, महिलाएं और मासूम बच्चे हैं।
अब समाज के निकम्मेपन और काहिली की इस खबर पर भी नजर डालिए। शनिवार दोपहर को सितारगंज सिविल न्यायालय से अपना काम निपटाकर महिला अधिवक्ता बस से किच्छा कोर्ट जा रही थीं।
इस दौरान गांव सिसैया के पास बस में चढ़े दो लफंगों ने उनके साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। जब अधिवक्ता ने विरोध किया तो दोनों लफंगे उनसे गालीगलौज करने लगे। इतना ही नहीं अगले स्टॉपेज पर दोनों लफंगे अधिवक्ता का दुप्पटा छीनते हुए और धमकाते हुए बस से उतर गए।
आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि यात्रियों से भरी बस में ड्राइवर कंडक्टर से लेकर किसी भी यात्री तक ने शैतानों का विरोध तक नहीं किया।
लेकिन इस बार विकारी मानसिकता के इन गुंडों का पाला हिम्मती और जागरूक महिला अधिवक्ता से पड़ा था।
पुलिस को दी तहरीर में महिला अधिवक्ता ने दोनों लफंगों की करतूत को बेपर्दा कर दिया। बताया कि दोनों ही लफंगों की बस कंडक्टर से पहचान थी। दोनों अपराधी अक्सर गांव सिसैया से कटगरी तक बस में सफर करते हैं।
जिसके बाद हरकत में आई पुलिस ने हल्द्वानी निवासी यासीन और बहेड़ी निवासी नौशाद को गिरफ्त में लिया।
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जिस देश में दुष्कर्म जैसे अपराध के बाद भी अपराधियों को सजा मिलने में सालों लग जाते हैं उस देश में छेड़खानी, धमकाने जैसे अपराध में आप उम्मीद भी क्या कर सकते हैं।
इधर, मामले में अधिवक्ताओं में आक्रोश है। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दयानंद सिंह ने अपने सभी साथियों से दोनों आरोपियों की पैरवी नहीं करने की अपील की है।
उन्होंने कहा कि बार काउंसिल को घटना की जानकारी दी जाएगी। साथ ही मंगलवार को बार एसोसिएशन की बैठक कर मामले को लेकर आगे की रणनीति तय की जाएगी। उन्होंने पुलिस से आरोपियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग की है।
कुल मिलाकर इस घटना ने समाज के लोगों की असंवेदनशीलता को बेनकाब किया है। यह दुस्साहस इन दोनों लफंगों ने भरी दोपहर में किया।
बस में महिलाएं भी थी पुरुष भी थे लेकिन किसी ने भी अपराध के खिलाफ आवाज नहीं उठाई। शायद उन्हें लफंगों से डर लग गया होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या महिला अधिवक्ता की जगह अगर उनकी बहन बेटी होती तो क्या तब भी बस में बैठे लोग तमाशबीन बने रहते?
यहां बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं के जज्बे को भी सलाम जिन्होंने एकजुट होकर समाज के दुश्मनों के खिलाफ फैसला दिया है। सितारगंज के अधिवक्ताओं ने महिला अपराध में शामिल लोगों की पैरवी न करने का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। काश! ऐसी पहल राज्य के बाकी शहरों के अधिवक्ता भी करते।